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________________ वर्ष १४] जैनग्रन्थ-प्रशस्तिसंग्रह [३७ कन्वु करंतु केम णवि लजमि, ते दहि जे लिहइ लिहावइ, तह विसेस पिय जणु किह रंजमि ॥ ते दहि जे भत्तिह भावहि । तो वि जिणिंद-धम्म-अगुराएँ, जे पुणु के बिहु पढहि पढावहि, बुहमिरि-सिद्धसेण-सुपसाएँ। ते णिय-पर-दुहु दूरे लुटावहि ॥ करमि सयं जि लिणि-दल थिउ जलु, एयहो अत्थु के वि जे पयडहिं, अणुहरेइ णिरुवमु मुत्ताहलु ॥ ताण णिरंतर सोक्खहि सुहडहिं । पत्ता-जा जयरामें आसि विरइय गाह-पबन्धि । जे णिसुणेवि परिक्खए भत्तिए, साहम्मि धम्मपरिक्ख सा पद्धड़िया-बन्धि ॥१॥ ते जुज्जहि हिम्मल मह सत्तिए । सयल पाणिवग्गहो दुहु हिज्जइ, इय धम्मपरिक्खाए चउवग्गाहिट्टियाए वित्ताए बुहहरिषेण सोम समिढिए महि सोहिज्जइ। कए पढमो सन्धी परिसमत्तो ॥ संधि । परहिय करणि विहंडिय-ग्रंहहो, अन्तिम भाग: होउ जिणत्तणु चउविह संघहो ॥ इह मेवाड-देसि-जण-संकुलि, पयडिय बहु पयाव अरिवारें, सिरिउजहर-णिग्गय-धक्कड-कुलि । यंदउभूवइ सहु परिवारें। पाव-करिंद-कुम्भ-दारण हरि, धम्म पवत्तणेण दुह-हारें, जाउ कलाहिं कुसलु णामें हरि ।। दउ पय बहुविह ववहारें। तामु पुत्त पर-णारि-सहोयरु, पत्ता-सखए दुसहसुसाहिउ सदरिया हिउ इउकह रयणु अगव्वह।। गुणगण-णिहि कुल-गयण-दिवायरु । जो हरिसेण धराधर उयहि गयणधर ताम जणउसु-भव्वहं॥ गोवढणु णामें उप्पएणउ । इय धम्म परिक्खाए चउवग्गाहिट्टियाए बुह-हरिसेण जो सम्मत्त-रयण-संपुण्णउ । कयाए एयरसमो संधि समत्तो ॥ सन्धि ११॥ तहो गोवड्ढणासु पिय गुणवइ, जो जिणवर-पय णिच्च वि पणवह । ६-जंबूसामिचरिउ [जंबूस्वामीचरित] कविवर वीर ताए जणिउ हरिसेणे णाम सुउ, रचनाकाल संवत १०७६ जो संजाउ विबुह-कइ-विस्सुउ । आदिभाग:मिरि-चित्तन्डु चइ वि अवलउरहो, विजयंतु वीर-चरणग्गि-चंपए मंदिरंमि थरहरए । गय उ-णिय-कज्जे जिणहर-पउरहो। कलम चलंतं तोए सुतरगि-लग्गंत-बिंदु-छंकारा ॥१॥ तहिं छंदालंकार-पसाहिय, सो जयउ जस्स जम्माहिसेय-पय-पूर-पडुरिज्जतो। धम्मपरिक्ख एह ते माहिय । जणियहि मसि हरिसको कणयगिरि राइओ तया ॥२ जे मज्मन्य-मण्य प्रायएणहिं, जयउ जियो जस्मारुण-णह-मणि-पडिलग्ग-चक्खु सह सक्यो। ते मिच्छत्त भाउ अवगएणहिं । अणिइच्छिय सब्वावदुयवस्थ-परिकलिय-लोयणो जाओ ॥२॥ ते सम्मत्त जेण मलु विज्जइ, समिरसु अवेय भामिय जोइमगण-जणिय-रयणि-दिणि-संके। केवलणाणु ताण उप्पजइ ॥ इय जयउ जस्स पुरो पणच्चियं चारु मुरवइणा ॥४॥ घसा-तहो पुणु केवलणाणहोणेय-पमाणहो जीव पएमर्हि सुहडिउ, सो जयउ महावीरो माणाणल-हुणिय-रइ सुहो जस्स । बाहारहिउ अणंनउ अइपयवंतउ मोक्ख-सुक्खु-फलुपयडियउ॥ णामि फुरद भुषणं एक्कं एक्खत्तमिव गयणे ॥२॥ विक्कम-णिव-परिवत्तिय कालए, जयउ जियो पासटिठय शमि-विणमि-किवाण-फुरियपडिवियो। गयए वरिस सहस चउतालए। गहियाणं रूव-जुयलोव्व ति-जय-मगु सामित्रो रिमहो ॥६॥ इउ उप्पएणु भवियजण सुहयरु, जयउ सिरिपासणाहो रहा जम्संग णीलमाभिएको । हंभ-रहिय धम्मासय-सायरु ।। फलियो तडि बिडिय णव-घणोच्च मणि-गम्भिणो फणकडप्पो
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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