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________________ वर्ष १४ जैनथ-प्रशस्तिसंग्रह पिय-जसु णिय-जसु भुवणे पसाहिउ, इन्थ सुदंसण-चरिए पंचणमोकार फल-पयासरे गय तिहुयण-सयम्भु सुरटाणहो । माणिकरणंदि-तइविज्ज-सीसु-गायणंदिणा रइए असेस जं उबरिउ किंपि सुणियाणहो। सुर संयुयं णवेवि वढमाणं जिणं तउवि पट्टणं गरयतं जबित्ति मुणिहि उद्धरियउ, परिछयो पव्वयं समोसरण संगय महापुराण-प्राउन्थणं इमाण शिए वि मुत्तु हरिवंसच्छरियउ । कय पढमो संधि मम्मत्तयो । संधि , णिय गुरु-मिरि-गुणकित्ति-पमाए, अन्तिमभाग:-- कि परिपुण्णु मणहो अगुराए। जिणंदस्स वीरस्स तित्थे महंते । सरह सणेदं (सहससंण) सेठि-आएसें, महा कुंदकुंदण्णए एत संते । कुमर-णयरि प्राविउ-सविसेसें । ससिक्वाहिहाणो तहा पोमणंगी। गावगिरिहे समीवे विसालए, पुणो विण्हुणंदी तवो गंदणंदी पणियारहे जिणवर-चेयालए । जिणुदिट्ठ-धम्म धुराणं विसुद्धो। सावयजणहो परउ वक्वाणउ, कयाणेय गंथो जयंते पसिद्धो। दिद मिच्छत्त मोहु अवमाणिउ । भवांबोहि पोत्रो महाविस्सणंदी ज अमुणते इह मइ साहिउ, खमाजुत सिद्ध तउ विसहणंदी ॥१॥ तं सुयंदवि खमउ अवराहउ । जिणिंदागमाहासणो एय-चित्तो । णदउ परवइ पय-पालन्तहो, तवायारणिट्ठाय लद्धीय जुत्तो। एंदउ भवियण-कय उच्छाहतो। रिंदामरिंदेहि सो गंदवंदी। यंदउ परवइ पय-पालंतहो, हुश्रो तस्स सीसो गणी रामणंदी ॥२॥ णंदर दय-धम्मु वि अरहतहो। असेसाण गंथम्मि पारम्मि पत्तो, कालं वि य णिच्च परिसक्कर, तवे यंग बीभव्व राईव मित्तो। कासुवि धणु कगु दिनु ण थक्कउ । गुणावाम-भूश्रो सु-तेलोक्कणंदी। भवमासि विणामिय-भवकलि, महापडिऊ तस्स माणिक्कएंदी । हुउ परिपुण्ण चउद्दमि हिम्मलि (तइविज्ज-सीमो कई णयणंदी,) पत्ता-इय चउविह सप्पह, विहुणिय-विग्घहं, भुयगप्पहाऊ इमो णाम छंदी ॥२॥ पिण्णासिय-भव-जर-मरणु । पत्ताजमवित्ति-पयासणु, श्रखलिय-सासणु पढम मीसु तहो जायउ जगविक्वायड मुणि एयणंदीअर्णिदट पयडउ मंतिसयंभु जिणु ॥१७॥ इय रिठणमिचरिए धयलइयासिय-सयंभुएच-उव्वरिए। चरिउ सुदंसण शाह हो तेरण प्रवाहहो विरइउ बुह अहिणंदिउ चा तिहुवण-सयंभु-रइए समाणियं कण्हकित्ति हरिवंसं ॥१॥ अाराम गाम-पुरवर-णिवेस। गुरु-पच्च-वासभयं सुयणाणाणुक्कसं जहां जाय। सुपसिद्ध इ.वंतीणाम देस ॥४॥ सयमिक्क-दुदह-अहियं सन्धीयो परिममत्तायो ॥२॥ सुरवइ-पुरिम्ब विबुहयण इह । इति हरिवंशपुराणं समाप्त । सन्धि ११२ तहिं अस्यि धारणयी गरिछ । ३-सुदंसणचरिउ(सुदर्शनचरित)नयनंदी रचनासं०१५०० रण दुद्धरु अरिवर सेलवज्ज । आदिभाग:-- रिद्धिए देवा सुर-जणिय-चोज्ज ॥१॥ णमो अरिहंताणं णमो सिवाणं णमो श्राइरियाणं । विहुवण णारायण सिरिणिकेउ । णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव साहुणं ॥१॥ तहिं णरवर पुंगमु भोयदेउ । इह पंच णमोकारह लहेवि गोवहु वउ-सुदमणु । मणि-गण पह-दूसिय-रवि-गभस्थि । गउमोक्खहो अक्खमि तहो चरिउ वचउ वग्गपयासणु ॥ तहिं जिणहरु बबू-विहार अस्थि ॥६॥ xxxx थिव विक्कम कालहो क्वगएसु ।
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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