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अनेकान्त
[वर्ष १४
तिहुयण-सयंभु जइ ण हुंतु णंदणो सिरि सयंभुदेवस्स ।
करि कव्वु दिएणु मइ विमलमह । कम्व कुलं कवित्त तो पच्छा को समुद्धरइ ॥७॥
इंदेण समप्पिड वायरणु, जहण हुउ छौंदचूडामणिस्स तिहुयणसयंभु लहु तणउ ।
रसु भरहें वासे वित्थरणु । तो पद्धडिया कन्वं सिरिपंचाम को समारेउ ॥८॥ पिंगलेण छन्द-पय-पत्थारु, सम्वो वि जणो गेण्हइंणियताय-विढत्त दव्व-संताणं ।
भम्मह-दक्षिणहि अलंकार । तिहुयण-सयंभुगा पुण गहियं ण सुकइत्त-पंताणं ॥६॥
वाणेण समपिउ घण घणउ, तिहुयण-सयभुमेक मोत्त ण सयंभुकम्व-मयरहरो ।
तं अक्खर-डंबरु अप्पणउ । को तरइ गतुमंतं मग्मे हिस्सेस-सीसाणं ॥१०॥
सिरिहरिसे णिय णिउत्तणउ, इय चार पोमचरियं सयभरवेण रइय सम्मत्त ।
अवेरहि मि कहहिं कइत्तणउ । तिहुयण-सयंभुणा तं समाणियं परिसमत्तमिणं ॥११॥
छड्डणिय-दुवइ-धुवएहिं जडिय, मारुय-सुय-सिरिकहराय तणय-कय-पोमचरिय अवसेसं ।
चउमहेण ममप्पिय पद्धडिय । संपुण्णं संपुण्णं वंदइरो लहउ संपुगणं ॥१२॥
जण णयणाणंद जणे रियए, गोइंद-मयण सुयणंत विरइयं (१) वंदइय-पढमतणयस्स ।
श्रासीसए सव्वहु केरियए। वच्छलदाए तिहुयण सयंभुणा रइयं महप्पयं ॥
पारंभिय पुणु हरिवंस-कहा, वंदइय-णाग-सिरिपाल-पहुइ-भव्ययण-समूहस्स ।
स-समय-पर-समय वियार-सहा । भारोगत्त समिद्धी संति सुहं होउ सच्चस्स ॥
घत्ता--पुच्छइ मागहणाहु, भव जर-मरण-वियारा । सत्त महा संसग्गी तिरयणभूसा सु रामकह-करणा।
विउ जिण सामणु केम,कहि हरिवंस भडारा ॥२॥ तिहुयण-सयंभु-जणिया परिणउ वंदइय मणतणउ॥ इय रामायण पुराण समत्तं
इय रिठणेमिचरिण धवलइयामिय मयंभुण्वकए सिरि विज्जाहर-कंडे संघीयो हुंति धीम परिमाणं ।
पढमो समुहविजयाहिलेयणामो इमो मग्गो ॥१॥ उज्माकंडंमि तहा बावीस मुणेह गणणाए ॥
अन्तिमभाग:चउदह सुंदरकंडे एक्काहिय वीसजुज्मकंडेण |
इह भारह-पुराणु सुपमिदउ, उत्तरकंडे तेरह सन्धीयो णवइ सन्चाउ ॥छ॥
मिचरिय-हरिबंगाइद्धउ । लिपिकार प्रशस्ति
वीर-जिणे भवियहो अक्विउ, संवत् १५५४ वर्षे वैशाख सुदि १५ सोमवार ग्रन्थ
पच्छइ गोयमसामिण रविवउ । संख्या १२००० ।
सोहम्में पुणु जबूसामें, २-रिटणेमिचरिउ [हरिवंश पुराण]-महाकविस्वयंभू, विण्हुकुमारे दिग्गयगामें । आदिभागः
दिमित्त अवरजिजय णाहें, सिरि परमागम-णालु मयल-कला-कोमल-दलु ।
गोवद्धणेण सुभद्दहवाहें। करहु विहसणु करणे जयव कुरुव-कुलुप्पलु ॥
एम परंपराई अणुजन्गउ,
श्रायरियह मुहाउ श्रावग्गउ । चितवइ सयम्भु काई करमि,
सुणु संखेव सुत्त अवहारिउ, हरिवंस-महण्णउ के तरम्मि ।
विउमें सय में गहि वित्थारउ, गुरु - वयण - तरंडउ लधु णवि,
पद्धडिया छन्दै सुमणोहरु । जम्महो विण जोइउ कोवि कवि।।
वियण-जण-मण-सरण-सुहकरु, एउ णाइड वाइत्तरि कलाउ,
जस परिससि कहिं जं सुएउ । एक्कु विण गंधु परिमोक्फजाउ।
तं तिहुय-सयंभु किउ पुग्णर, तहिं अवसरि सरसह धीरवइ,
तासु पुत्त पिउ-भर-णिवाहिउ ।