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जैनग्रन्थ- प्रशस्तिसंग्रह
(आद्यन्तादिभागस चयात्मक)
१- पउमचरिय [ पद्मचरित्र ] महाकवि स्वयंभु श्रादिभागः
मह एव-कमल-कोमल मणहर वर- बहल कंति मोहिल्लं । उसइस्स पायमकमलं ससुरासुरवंदियं सिरमा ॥१॥ दीहर- समास णालं सहदलं श्रत्थकेसरुग्घविय
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बुह महुयर पीयरसं सयंभु-कव्युप्पलं जयउ ॥२॥
धत्ता - जे काय - त्राय-मणे खिच्छिरिय, जे काम कोह- दुरणय तिरिय ते एक्क-मणेण सयंभुषण, वंद्रिय गुरु परमायरिय ॥
वड्ढमाण-मुह - कुहर - विणिग्गय,
रामकहा- यह एह कमागय । अक्खर वास जलोह-मणोहर, सु- अलंकार-छन्द मच्छोहर | दीह समास-पवाहावकिय, सक्कय-पायय- पुलिणालंकिय । देसी भासा उभय-तडुज्जल, क विदुक्कर - घण सह- मिलायल ॥ श्रथ बहल कल्लोलाणिट्ठिय, सासय-सम-तूह परिट्ठिय । एह राम कह- सरि सोहंती,
हर-देवहिं दि बहंती ॥
पच्छ इंदभूइ श्ररिए, पु धम्मेण गुणालंकरिए । एहिं संसारा.
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कित्तिहरेश गुत्तरवाए || रविसेायरि पसाए',
बुद्धिए श्रवगाहिय कइराए । पण जराणि गन्भ सभूए,
म. रुयएव रू- अणुराए । तलुए पईहरगत,
छिन्वर - णा में पविरल दंते । घत्ता - णिम्मल- पुण्ण पवित्त-कह- कित्तगु श्राढम्प | जेण समाज्जितपूर्ण थिरकित्ति विढप्पइ ॥२॥
हयण सयंभु प विण्णवद्द, म सरिस सन्धि कुकइ ।
व यर कयाविण जाणियउ, उ वित्तिसुत्त वक्खाणियउ ॥ एउ पच्चाहारहो तत्ति किय,
उ संधि उपरि बुद्धि थिय । उ सुिणिउ सत्त विहत्तियाउ, छव्विहउ समास पउत्तियाउ ॥
छक्कारय दस लयार ण सुय, वीसोवसग्ग पच्चय बहुय ।
ण बलाबल घाउशिवायगणु, उ लिंग उखाइ चक्कु वयगु ॥ एउ शिसुखिउ पंच महाय कन्बु,
उ भरहु ण लक्खणु छन्दु सन्चु । उ बुज्झिड पिंगल पत्थारु,
उ भम्मह इंडियलंकारु ।
वसा तो विउ परिहरमि, वर रडावुत्त क. करमि ॥
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इय एत्य पउमचरिए धणं जामिय-सयंभुएवकए । जि- जम्मुप्पत्ति इमं पढमं चिय साहियं पव्वं ॥ अन्तिमभाग
तिहुचरण- सयंभु- गवरं एक्को कद्दराय चक्किणुप्पण्णो । पउमचरियस्प चूडामणि ब्व सेमं कथं जेण ॥१॥ कइरायस्म विजय- सेसियस्स वित्धारियो जसो भुवणे । तिहुयण-सयंभुणा पउमचरिय सेसेण हिस्सेसो ॥२॥ तिहुयण- सयभु-धवलस्स को गुणो वरिणउ जए तरह । बाले विजेण सयंभु- कव्वभारो समुन्बूढो ॥३॥ वायरण दढध श्रागम- श्रगोपमाण-वियडपथो । तिहुया सयंभु- धवलो जिए- तिथे वहउ कब्वभरं ॥४॥
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मुह - मयंभुवाण वरिणयत्थं अचक्खमाणेण । तियण-सयभु रइयं पंचमि चरियं महच्छरियं ॥ ५ सच्चे वि सुया पंजर सुयय्व पढिश्रक्खराहूँ सिक्खति । कइरायस्स सुश्रो सुयय्व सुइगम्भ संभूश्रो ॥६॥