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________________ ३२] अनेकान्त [वष १४ तथा बीचमें एक मढ़िया (मन्दिर) बनी है बीचकी मढ़ियामें ध्यान नहीं है। हां, सोरईकी जैन समाज तथा मदनपुर पांच मूर्तियां खड्गासन हैं। वे निम्न क्रमशः १ चन्द्रप्रभ, के धर्मानुरागी जमींदार लोदी ठाकुर अजैन बन्धु श्री गज२ नेमिनाथ, ३ धर्मनाथ, ४ श्रेयांसनाथ और ५ कुथुनाथ राजसिंह वी० ए० तथा उनके छोटे भाई श्री रघुनाथसिंहका की है। कुछ अवश्य प्रयत्न है कि यह स्थान रक्षित हो जाये और इसमें शिलालेख है जो पढ़ा नहीं गया । सिर्फ संवत् सरकारसे रक्षित घोषित करवा दिया जाय । लेकिन यह पढ़ा गया जो आषाढ़ सुदी ५ गुरौ सं० १६२२ है। इसी महान कार्य समग्र जैन समाजके सहयोग पर ही वे कुछ कर मन्दिरकी सीढ़ियों पर एक महत्वपूर्ण शिलालेखका विशाल सकते हैं । समाजसे हमारा अनुरोध है कि वे अपने प्राचीन पत्थर और पड़ा है जो बिल्कुल अरक्षित है। अन्य चार सांस्कृतिक वैभवकी सम्हाल करें और अपनी लक्ष्मीका मढ़ियोंमेंसे सिर्फ सामनेकी एक मढ़ियामें कुछ खड्गापन उसके संरक्षणमें सुन्दर उपयोग करें । तीर्थक्षेत्र कमेटीको भी मूर्तियां विराजमान हैं जिनका विशेष परिचय मालूम नहीं इस ओर पूरा ध्यान देना चाहिये। ये ऐसे स्थान हैं जो हो सका । ये सब एक पत्थर पर उत्कीर्ण हैं। पुरातत्वकी दृष्टिसे बड़े महत्वक हैं और हमारे इतिहासकी कहना न होगा कि ये विशाल मन्दिर और मूर्तियां हमारे एक कड़ी हैं । अतएव हमें इनकी अवश्य रक्षा करनी चाहिए प्राचीन सांस्कृतिक गौरव पूर्ण वैभवको प्रकट कर रहो हैं। और शिलालेखोंको सुरक्षित करके उनमें क्या लिखा है, पर अत्यन्त दुःख है कि इनकी ओर समाजका बिलकुल प्रकाशमें लाना चाहिये। 'अनेकान्त' की पुरानी फाइलें अनेकान्त की कुछ पुरानी फाइलें वर्ष ४-५, और वर्ष से १३ वें वर्षतक की अवशिष्ट हैं, जिनमें समाजके लब्ध-प्रतिष्ठ विद्वानों द्वारा इतिहास, पुरातत्त्व, दर्शन और साहित्यके सम्बन्धमें खोजपूर्ण लेख लिखे गये हैं और अनेक नई खोजों द्वारा ऐतिहासिक गुत्थियोंको सुलझानेका प्रयत्न किया गया है । लेखोंकी भाषा संयत सम्बद्ध और सरल है । लेख पठनीय एवं संग्रहणीय हैं। फाइलें थोड़ी ही शेष रह गई हैं। अतः मंगानेमें शीघ्रता करें । प्रचारकी दृष्टिसे अनेकान्त हाल की ११वें १२वें १३वें वर्षकी फाइलें दशलक्षणपर्वके उपलक्षमें अर्ध मूल्यमें दी जायेगी और शेष वर्षोंकी फाइलें लागत मूल्यमें दी जायेगी । पोस्टेज खर्च अलग होगा । मैनेजर-'अनेकान्त', समाज से निवेदन अनेकान्त जैन समाज का एक साहित्यिक और ऐतिहासिक सचित्र मासिक पत्र है । उसमें अनेक खोजपूर्ण पठनीय लेख निकलते रहते हैं । पाठकोंको चाहिये कि वे ऐसे उपयोगी मासिक पत्रके ग्राहक बनाकर तथा संरक्षक या सहायक बनकर उसको समर्थ बनाएं। हमें दो सौ इक्यावन तथा एक सौ एक रुपया देकर संरक्षक व सहायक श्रेणी में नाम लिखानेवाले केवल दो सौ सज्जनों को आवश्यकता है। आशा है समाज के महानुभाव एक सौ एक रुपया प्रदान कर सहायक श्रेणीमें अपना नाम अवश्य लिखाकर साहित्य-सेवामें हमारा हाथ बटाएंगे। मैनेजर 'अनेकान्त
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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