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चीर शासन-जयतीके उपलक्षमें समारोहके अध्यक्ष साहू शान्तिप्रसादजीके प्रति
रचयिता : ताराचन्द जैन 'प्रेमी
धरा धन्य हो गई किसे पा गया धैर्य भी जीत रे!
लक्ष्मी और सरस्वती दोनों ___ गाती किसके गीत रे?
बीता तिमिर निशा का प्राची पर प्रकाश की अरुणाई उषा आज पुजारिन बनकर
केशर थाल सजा लाई।
मेघ मगन होकर धरती पर क्यों निझर झर झर झरते? जाने किस वरदानी के
चरणों का प्रक्षालन करते'
मां मूरति का हृदयस्थल भारत भर का आल्हाद है देश जाति का गौरव येही
साहू शान्ति प्रसाद है।
सम्य साधना से विश्वासी गया भाग्य को जीत रे लक्ष्मी और सरस्वती दोनों
गाती इसके गीत
रे।
वृक्षों की डालें मुक झुक कर करती हैं मम्मान रे भ्रमरों की टोलियाँ झूम कर गाती हैं गुण गान ।
(८) गिरि की उँची चोटी जैसा
सूरज को दोपक दिखलाऊँ उन्नत हृदय महान् रे।
क्या कुछ कह कर मात रे? और सिन्धु की गहराई सा
लचमी और सरस्वती दोनों गहरा इनका ज्ञान रे।
गाती इनके गीत रे।
(१०) नहीं मेघ की दूंदें हैं ये
उपवन भी पाना अांचल सुर बालाओं के श्रम कण !
सुरभित फूलों से भर लाया। अथवा पायल के घुघरू हैं
आज सरलता से मिलने को या श्रद्धा के सजल नयन ।
इन्द्र हृदय भर कर पाया। (११) व्या. न हो पाती शब्दों में अन्तर तम की प्रीत रे । लक्ष्मी और सरस्वती दोनों
गाती इनके गीत रे।