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________________ नन्दिसंघ सरस्वतीगच्छ बलात्कारगण की शाखा-प्रतिशाखाएं (श्री० पं० पन्नालाल सोनी) इतस्तत बिखरी हुई मामग्री के आधार पर उक्त के निवासी मुनिजन के समक्ष युग प्रतिक्रमण किया करते शाग्वा-प्रतिशाखाप्रो के मकलन का यह प्रयाम है, जो कि थे। वे जब एक बार युगान्त मे युगप्रतिक्रमण कर रहे थे अत्यन्त दुरूह है, फिर भी यह कदम बढाया जा रहा है। तब उन्होने आगत मुनिजनों से पूछा, क्या सब मुनिजन वह इस लिए कि इनकी कुछ जानकारी हासिल हो सके आ गये ? मुनिजन बोले, हां, भगवन् ! हम मब अपने २ और उनरोनर अधिकाधिक विचार-विमर्श हो सके। सघ के माथ आ गये । उनके इस प्रतिवचन को सुनकर इसके सकलन की सामग्री निम्न प्रकार विभाजित की जा भगवत् अहं दबली ने सोचा, अहो अव मे मागे इस कलियुग, सकती है। १-ग्रन्थ प्रणेताओं के उल्लेख २-उनकी मे यह जैनधर्म अपने अपने सघ भेद के पक्षपात को लिए प्रशस्तिया ३--ग्रन्थ लिखा कर देने वालो की प्रशस्तिया हुए स्थित रहेगा, उदासीन रूप से नहीं। ४-ग्रन्थ-लिपिकारो की प्रशस्तिया ५-शिलालेख ६- इम निमित्त को पाकर भगवान् अर्हबलीने पाच स्थानों प्रतिमालेख, ७-विप्रकीर्ण ८-पट्टावलिया । मे पाये हुए मुनिजनो के पांच कुल नियत कर दिए और संघोत्पत्ति उनकी पृथक पृथक् दश सज्ञाए भी निश्चित कर दी । जो गुहावास से पाये थे उनमे किन्ही की नन्दी और विन्ही सबमे प्रथम मंधो की उत्पनि कैसे हुई यह जान लेना की वीर, जो प्रशोकबाट से पाये थे उनमे किन्ही की आवश्यक है । कहते है पूर्व समय मे मुनिजन ज्ञान-विज्ञान अपगजित और किन्ही की देव, जो पचस्तूप्यनिवास में में प्रवीगा बडे प्राचार्य के पादमूल मे पचवार्षिक प्रतिक्रमण पाये थे उनमे किन्ही की सेन और किन्ही की भद्र, जो किया करते थे जो प्रति पांचवे वर्ष के अन्त मे सम्पादित शाल्मलि नाम के महाद्रुम से पाये थे उनमे किन्ही की हुया करता था । इसे युगप्रतिक्रमण भी कहते हैं। इसका गुग्णधर और किन्हीं की गुप्त नथा जो खडकेमर नाम के दूसरा नाम महिमा या महामहिमा भी है । इममे दूर दूर द्रममूल से पाये थे उनमे किन्ही की सिंह और किन्ही तक के मुनियो का समुदाय मम्मिलित हुआ करता था। की चन्द्र । दो युग प्रतिक्रमणों मे दो विशेष घटनाएं घटित हुई। एक मे पाच कुलो या चार मघो की उत्पनि हुई और इस कथन की पुष्टि में प्राचार्य इन्द्रनन्दी ने एक दूसरे में पटव डागम की उत्पनि का स्रोत प्रस्फुटित । प्राचीन पद्य भी उधृत किया है । वे मज्ञापो के सम्बन्ध में अन्य प्राचार्यों का कुछ विभिन्नता का सूचक मतभेद भी व्यक्त करते है । यद्यपि उनका मजामो के विषय मे कुछ जिसमे कुलो या मघो का नाम मकरण हुआ था मतभेद अवश्य है किन्तु कुलो के विषय मे कोई मतभेद नही वह युग प्रतिक्रमण भगवत्- अली के पादमून में हुअा था प्राचार्य प्रवर इन्द्रनन्दी थतावतार नाम के प्रवचन में है । अन्तिम उपसहार करते हुए वे ही प्राचार्य इन्द्रनन्दी कहते है-इस प्रकार मुनिजनो के संघो के प्रवर्तक प्राचार्य लिखते है कि प्राचाराग के धारक मुनियो के अनन्तर अगो __ अहंबली के अन्तेवासी मुनीन्द्र हुए हैं, जो समान कुलाऔर पूर्वो के एक देश के धारक विनयधर, श्रीदत, शिव- जह चरण के कारण सभी उपासनीय है-माननीय है । नात्पर्य दत्त और अहहत्त ये चार मुनिप्रवर हुए। इनके अनन्तर पांचों कुलो के आचरण में कोई भेद नहीं है, मभी कुलो पूर्व देश के मध्यवर्ती पुडवर्धनपुर मे मब अंगो और का प्राचरण एक सा है । प्रत उस ममानाचरण के पूर्वो के देशैकदेश के वेत्ता आचार्य अहंबली हुए | जो इम थत के प्रसारण और धारण करने में ममर्थ थे, विशुद्ध प्रतिपालक सभी मुनि अभिवंदनीय हैं। ममीचीन कियाओं के प्राचरण मे उद्यक्त थे, अष्टांग नीतिसार के विधाता प्राचार्य प्रवर द्वितीय इन्दनन्दी निमित्तो के ज्ञाता थे, संघ के अनुग्रह-निग्रह करने में समर्थ इस प्रकार कहते हैं कि जब विक्रमनृपनि और भद्र बाहथे। वे उस समय पाँच पांच वर्षों के अननर मौ योजन तक योगीश्वर स्वर्ग चले गये तब प्रजा पार मे विमोहित हई
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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