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________________ किरण ११-१२] वीरशासनजयन्ती और भवनोत्सव [३४१ गहबान उसके दांन अादिकी बनावटसे ही सिद्ध है। फिर अन्तमें माहनीने अपना भाषण प्रारम्भ किया और भी अपने को अहिंसक कहलाने वाली हमारी भारत सरकार प्राचार्य महाराजके व्याख्यानकी प्रशंमा करते हुए कहाखाध समस्याको हल करने के लिए दिन पर दिन मांस- महागजने धर्मरूप सरोवरसे मभीको जल पीनेका अधिकार भक्ष का प्रचार करने पर तुली हुई है। उसे ज्ञात होना बतलाया है। हमें चाहिए कि हम धर्मरूप सरोवरसे सबको चाहिए कि माम मनुष्यका प्राकृतिक आहार नहीं है, यह जलपान करने देवें। प्रागे श्रापने कहा कि भारतकी राजधानी एक मात्र उन हिम पशुओंका भोजन है जिनके कि दांत होनेके नाते यहांके जैनियोंका कर्तव्य है कि सबका समानश्रादिको रचना शाकाहारी पशुओंसे भिन्न है। आज वैशा- रूपसे कल्याण करनेवाले वीर-शासनके सिद्धान्तोंका अधिकसे निक परीक्षणोंसे यह सिद्ध हो चुका है कि जहां कमाईग्वाने अधिक प्रचार करें। तत्पश्चात् या छोटेलालजी जैनने सर्व अधिक होने हैं, वहाक वातावरणमे रहने वाले मनुष्योंकी ममागत बन्धुओंका आभार माना और साहजीसे वीरसेवाकेमिनना (अपराध करनेकी मनोवृत्ति बढ़ती है और उसमे मन्दिरके नवीन भवनके उद्घाटनकी प्रार्थना की। माहूजी मार-काट, डांकेजनी, अत्याचार और व्यभिचारको प्रोत्तं जना सभा-मण्डपसे वीरसेवा मन्दिर पधारे, वहां पर श्रीमती मिलती है। मनुष्यके स्वभावमें बर्बरता और उग्रता श्राती अजित प्रसादजीने पापको तिलक किया और साहजीके है। इसलिए दिन पर दिन बढ़ने वाले कमाईखाने और आग्रहसे अापने पं० सुमेरुचन्द्रजी उन्निनीपु तथा पं० मांसाहारके विरुद्ध मभी अहिंसा-प्रेमियोंको प्रबल आन्दोलन मिट्ठनलालजीके द्वारा मंत्रोच्चारण किये जानेके साथ वीरसेवा. करना चाहिए और मत्स्य-मुर्गी-पालनके स्थान पर गो-पालन मन्दिरका उद्घाटन किया। सर्व प्रथम श्रा० देशभूपणजी फल, उत्पादन प्रादिके प्रचार-द्वारा शाकाहारके लिए सरकार महाराजने भीतर प्रवेश किया। साहजीने उपर हॉल में और जनताको प्रेरित करना चाहिए। तथा चमड़ेसे बनी जाकर शेप विधि-विधान सम्पन्न किया। तदनन्तर सभी वस्तुयोंका व्यवहार नहीं करना चाहिये । तत्पश्चात् प्राचार्य भाई-बहिनोंको लाडुओंसे भरे हुए थैले भेंट किये गये। देशभूषण जी महाराज का भाषण हुमा । अापने वीर-शासन- इस प्रकार वीरशासनकी जयध्वनि पूर्वक प्रातःकालीन की विशेषतानीको बनलाते हुए कहा कि यह महान हर्षकी कार्यक्रम समाप्त हुआ। बात है कि श्री जुगल किशोरजी मुख्तार अपने वीर-सेवा- मायंकालको ८ बजेमे श्री टी. एन्. गमचन्द्रन्, संयुक्र मन्दिरके द्वारा वीर-शासन-जयन्ती मना करके वीर-शासनका डायरेक्टर जनरल पुरातत्त्व विभाग भारत सरकारने स्लाइडके प्रचार कर रहे हैं और माहजी उममें पार्थिक सहायता द्वारा जनमुनियों और मन्दिरोंके प्राचीन चित्रोंको दिग्वाते देकर नया जैन या न्यका प्रकाशन वग करके अपनी हप जैन संस्कृति और कलाके विषय पर अंग्रेजीमें बहुत ही लक्ष्मीको सफन कर रहे हैं । अन्नमें आपने बतलाया गम्भीर एव महत्त्वपूर्ण भाषण दिया, जिसका मार हिन्दीमें कि भ. महावीरने जैनधर्मरूपी जिम मरोवरको अपने बा. छोटेलालजी बीच-बीचमें बतलाने जाते थे। अमृतमय उपदेशरूपी जलसे भरा है, उपके जलको पानेका प्रन्येक मनुष्यको अधिकार है। अाज उस तालाबकी दूसरे दिन पा० छोटला दूसरे दिन या. छोटेलालजी मा. माजी से उनके पाच टूट रही है और उसमेंका जज समाप्त होनेका अंदेशा निवास स्थान पर मिले श्री निवास स्थान पर मिले और वीरसेवामन्दिरको आर्थिक है। इसलिए प्रत्येक मनुष्यका कर्तव्य है कि उसके स्थिति उनके सामने रखी पार बतलाया कि संस्थाको पाल में एक-एक नया कपालको मत १५ हजार रुपयोंकी तत्काल आवश्यकता है। साहुजीने बनाये रग्वें, जिससे कि सरोवरमें धर्मरूप जल बराबर भरा १५०००) क० का सहायता के १५०००)क० का सहायता देना स्वीकार किया। इसके रहे और प्रत्येक प्राणी उममें के जलका पान करके चिरकाल लिए वीर सेवामन्दिर श्रापका बहुत आभारी है। नक अपनी प्यास बुभाता रहे। मन्त्री-वीर सेवामन्दिर
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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