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________________ २८०] अनेकान्त वर्ष १४ शंदड जिणवरिंद जिण-सासणु, दय-धम्मु वि भब्बह पासासणु । यंदउ गरवह पइ पालंतउ, शंदउ मुणिगणु सुत-तउ-वंतउ । णंद जिण सुहमग्गि चरंतर, भवियणु दाण-पूय विरयंतउ । कालि काति धाराहलु वरिसर, दुक्ख-दलिह, दुहिक्खु विणिरउ । घरि-घरि हारिउ रहस रावउ, घरि घरि मगलु गीड पदरिसर । घरि-घरि संखु समुद्दलु वज्जड, घरि-घरि लोड सुहेहें रंजउ ॥ चउविह संघह दाणह पोसणु, जिणवरिंद-सुय-गुर-पय अरचणु । णंदउ टोडरमल्लु दयालउ, पुत्त-कलत्त-सुयण-पह-पालउ ।। जावहि मेरुचदु रवि णहयलि, णंदउ एहु गथु ता महियलि । भवियण लोयह पाढिज्जतउ, णंदउ चिरु दुक्खिड विहुणंतउ ।। विक्कमरायह ववगय-कालें, ले समुणीस विसर अंकालें। पणरह सइ गुण्णासिह उरवालें, फागुण चंदिण पक्खिससिवालें । णवमी सुह पक्खित्त, सुहवाले, सिरि पिरथीचन्दु पसायं सुदरें। हुउ परिपुएलु कम्वु रस-मदिर, सज्जण-लोयह विणउ करेप्पिणु ॥ पिसुण-क्यण कहमेण भरेप्पिणु, विरयउ एहु चरित्तु सुबुद्धि। जह यहु अत्य-मत्त होणउ हुड, ता महु दोसु भन्दु म गहियउ॥ विणवह माणिक्क कई इम, महु खमंतु विबुह गुण मंतिम । अण्णुवि अमुणते होणहिड, मइ-जलेण जं कायमि साहिउ ॥ तं जि खमउ सुयदेवि भडारी, कइयण-जण तिल्खोयहु सारी । बुहयण रोसु ण करहु महु उप्परि, अह रोसें सोहिज्जहु गंथु वरि ॥ विसमठ गामिणि वज्जउ मंदलु, गच्च कामिणि होउ सुमंगलु । गुरयण वच्छल्लें पंडिएण, माणिक्कराज वज्जिय-मएण ॥ तं पुराणु करेप्पिणु एहु गंथु, टोडरमल्ल हत्थे दिएणु सत्थु । णिय सिरह चढाविउ तेण गंथु, पुणु तुट्ठउ टोडरमल्लु हियह गंपि ॥ दाणे सेयांसह कण्णु तं पि, पंडिड वर पट्टर्हि थविउ तेण । पुणु सम्माणिउ बहु उक्कवेण, वर वत्थई कंकण-कुंडलेहिं । अंगुलियहि मुहिम णिय-करहिं. पुजिउ आहारहि पुणु पुणु तुरंतु । हरि रोविव सजिड विणायं णिरुत्तु, गड णियधरि पंडिउ गंथु तेण । जिण-गेहि णियउबहु उच्छवेण ॥ तहि मुणिवर बंदहि सुक्क गंथु, दिएणउ गुरु-हत्थे सिवह-पंथु । वित्यारिउ अत्यु वियारि तेण, भव्वयाह सुहगइ दावणेण ॥ पुणु टोडरमल्लहं णिवसरि पुरणह लिहयइ गंध बहुसुच्छशिरु जिणगिह मुणिसंघहं तव-वय-वंतहं णाण दाणु तं दिएणु वरु॥ शुभंभूयात् । थाम्र ३३०. प्रति आमेरभंडार लिपि सं १९९२ सम्मइ-जिणचरिउ (सन्मति-जिन-चरित्र) कवि रहध ___आदिभागजय सररुहभागहुँ वढियमाणहु वड्ढमापतित्थेसरह । पणविवि पय-जमलं गह-पह-विमलं चरिउ भणमि तहहय सरह वीरस्साएत वित्ति अमर-वदि-णुदं धम्मभूयादभई, गट्ठा कम्मठवित्तिं परमगुणस्साहिरामं जिणस्स । वंदित्ता पाय-पोमं ति-जय मणामुयं धम्मचक्काहिवस्स, वोच्छ भम्वत्थजुत्त प्रणह-सुहहरं तच्चरित्त पवित्त ॥१॥ केवलयाण-सतणु-पहवती, साय-वाय-मुह-कमल हसंती।
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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