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________________ किरण ] जैनग्रन्थ- प्रशस्ति संग्रह कोह-मोह-भय-माण-वियारउ, जं क्खरू या किंपि विण्यासिउ || सुपसाएं वि विरुद्ध भासिउ, ".....? हं सरसइ महु खमइ भंडारी ॥ वीर जिराहो मुहु णिग्गय सारी, जे धारें ते भव-सरि-तारी । हेम-पम श्रारिविसेसें, बंभुज्जाणं गुणगरिगीसें ॥ मइ कम fer aणधरेष्पिणु, कन्व सुवहु लीहवि देष्पिणु । मत्त श्रत्थ- सोहग्ग खिवेविणु, श्रथ विरुद्ध किट्टि क े विणु ॥ सांहि एहु विमगु लाएविगु, होउ चिराउसु कब्वु रसायणु । विक्कम रायहु घवगय कालई, लेसु मुणीस विसर कालई ॥ धरण अंक सहु चतवि मार्से, सवारे सुय पंचमि दिवसें । कित्तिय क्ख सुह जोए, हुउउप्पर सुवि सुद्द जोए ।। हो वीर जिपर जग परमेसर एत्तिउ लहु महु दिज्जड । जं हि कोहु ण मागु श्रावण जागु, सासय-पय महु दिजउ ॥ १५ इय माराय-सिरिश्रमरसं ए-चरिए चउबग्ग-सुकह कहासमरण-संभरिपु सिरिपंडियमाणिकु विरइए साधुसिरिमहणायचउधरि-देवराजणा मंकिए सिरि श्रमर से मुनि पंचमग्ग-गमणवणां ग्राम सवमं इमं परिच्छेश्रो सम्मत्तो ॥ ७ ॥ X रव सह मंड सन्च भासि, गोहाण गौहु सुय सील-रासि । चंदुब्व भुवण-संतावहारि वर रूव स उण णं मुरारि ॥ छह अंग सिउ महेसु, मंदारय पुज्जिउ णं महेसु । जिण पयसी संकिउ खील केसु ।। रस दंसण पालउ सुया- तोमु, मिरि ठाकुराणि जिण बम्म धुरंधर । सुरवद्द करभुय जयलहि विमलु, सिरि इसवाल इक्खाकु वंसु ॥ सिरि जगसा दगु सुद्धवसु, टोडरुमल पा घर पयलु । जं किति तिलोयह पूरि थिरु || - प्रति आमेर भंडार सं० १५७७ कार्तिकवी चतुर्थी रविवार सुवर्णपथ ( सुनपत ) में लिखित । ते श्राइ वि जिणहरि रायणादणि श्रइयाहु जिणवंदियउ । दिट्ठ पंडि भनियम मउिउ श्रह विषयं श्रब्भत्थियउ ॥ x X X इय-चय- पंचमि सिरिणायकुमारचरिए विबुह चित्ताणुरंजिणे सिरिपडिय - माणिक्यराज - विरइए चडधरिय-जगसी ग्रन्थ प्रति श्रादिके दो पत्र न होनेसे उससे श्रागेका सुग-राय-रज-चउघरि टोडरमल्लणामं किए जयंधर- विवाहभाग दिया जाता है ३४ – गागकुमारचरिउ (नागकुमारचरित) कविमाणिक्यराज रचनाकाल सं० १५७६ आदिभागः : aणणो णाम पढमो संधि परिच्छेश्रो समत्तां । अन्तिम भाग : X [ २७६ X तहिं जिणमदिरु धवलु भन्वु, सिरि थाहाह जियबिंब दिन्वु । विस पंडिय सद्दखणि, मिरि-जयसवाल - कुल-कमल- तरणि ॥ इक्खाकुवंस मद्दियलि वरि बुह सूरा णंद सुउ गरि । उप्पण्यउ दीवा उरि रवण्णु, बहु माणिकु णामें बुहहि मगु || तत्यंतर साव इक्कु पत्त वय दाण-सील - यि मेण जुत्त । हयग्रंजणु गुण गण विमालु, विच्छिण वत्थ दिपंत भालु ॥ धम्म काम सेतु मंतु, तस जीव दयावरु सिरिमहंतु । मेव धीरु गुरागण-गहीरु, जिण गंधोपय णिम्भज सरीरु ॥
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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