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________________ २७८] अनेकान्त [ वर्ष १४ - - - - - - - असुवइ परहर तियहि विरत्तउ, जं असच्च कइया उ उत्तउ । दिउराजु जि जिण सहहि महल्लउ, णोणाही तिय रमणु वि भल्लड । तहु कुक्खि सिप्पि मुत्ताहलाई, उप्पणइं वेसु परिउ सलाई। पहिलारउ णिय कुलहं वि दीउ, हरिवंसु णामु गुणगण विदीउ ।। पत्ता-तहु भज्जा गुणहिं मणुज्जा, मेल्हाही पणिज्जए। गउरि गंग णं उहि सुया तहु कस उप्पन दिज्जई ॥१२ पुवहि अभयदाणु असु दिएणउ, तह सुउ अभयचंदु सुणि संणिउ । अवर वि गुण-रयणहिं रयणायर, देवराज सुउ सयल दिवायरु ।। रतणपालु गामें पणिज्जइ, तहु भूराही ललण वि गिज्जइ । देवराय पुगु श्रीयउ जायउ, भाभूणामें जग विक्लायड ।। तह चोवाही भज्ज काहज्जद्द, तो तेंयहु णेहें जो छिज्जह । पढमउ गायराउ तहु का मणि, सूवटही णामें जणराणि । बीयउ गेल्हु वि श्रवर पयासिउ, झाझू तीयउ पुत्तु पयासिउ। चाओ णामें जण विक्खायउ, महणासुर चुगणा पिय भास ।। डूंगरही तहु भामिणि सारी, खेतासिंघणंदण जुयहारी। सिरियपालु पुणु रायमल्लु पुणु कुंवरपालु भासिउ जडिल्लु ॥ महणा अवरु चउत्थउ णंदणु, छुटमल्लु वि जो धम्महु संदणु । फेराही अंगण मण-हारउ, दरगहमल्लु वि पंदणु रह सारउ ॥ पत्ता-करमचंदु पुणु पत्तु , बीयर जी जुवि भणिउ । साहा हिय पिय उत्तु गुरु-पय रत्त वि पाणिउ ॥१३ तहो अंतहो अंगोभव तिरिण जोय, विसुसुय पवणंजउ अज्जुणो य । पहलारउ रावण तस्स हारि, रामाही जाया अहि वियारि ॥ तहु सरीरि सुत्र चारि उवण्णा , पुहइमल्लु वि पढमु सुवण्णा । तस्स भज्ज बहु णेहालंकिय, कुलचंदही जाया बहु संकिय । कित्तिसिंघु तहु कुक्खि उयएणउ, गग्गिर गिरु णव कंचण वएणउ | पुणु जस चंदुव चंदुभणिज्जइ, लूणाही पिय यम अणुरंजह ॥ तह वि तणंधउ लक्रवण लंकित, मदणसिंघ जो पावह संकिउ । अवरुवि वीण कटु वीणावरु. पोमाही तहु कामिणि मणहरु । गरसिंघु वि तउ सुउवि गरिदृड, लच्छि पिल्लु णं पियरहं इट्टउ । पुणु लाडणु रूवें मयरद्वउ, तहु वीवोकता वि जसद्धउ । पुणु जोजा बीयउ पुत्तु सारू, णियरूवें जित्तर जेण मारु । दोदाही कामिणि अणुरंजइ, में सुहि मरणें ग्गि गमिज्जइ ॥ . जोजा अवरवि णदणु सारउ, लखमणु णाम मंडिय हारउ । मल्लाहा कार्मािण बहु णंदणु, हारू णामें जण-मण-णदशु । धत्ता-अवरुपिणंदणु तीयउ ताल्हू णामे भासिउ । बाल्हाही भणहार वे मुय ताह समासिउ ॥४॥ पढमउ पामति दामू सुहो, इच्छाही भामिणि दिएणउ सुहो । महदासु वि तहु पुत्तु पियारउ, पुणु दिवदासु बीयउ मणहारउ ।। साधारणही भज्ज मणोहरु, घणमलु णंदणु तहु पुणु सुहयरु । जगमलही कार्मािण तहु सारो, चायमल्लु सुय पासण हारी ॥ इय दिवराजहं वंसु पासिउ, काराविउ सत्थु जि रस सारउ ।
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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