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किरण]
जैनग्रन्थ-प्रशस्तिसंग्रह
भावें वैदिउ तहं पासणाहु, पुग जिय-गंथाणं गविवि साहु । सिद्धत-प्रस्थ भाविय मणेण, पुरयण सुहयारउ सुरधणेण ॥ तहं दिट्ठउ पुणु सरसह-णिवासु, माणिक्यराज जिण गुरहं दासु। तेणवि संभासणु कियउ तासु, जा गोहि पयासह बहु सुपासु ॥ संजिण अंचण पसरिय भुवेण, अक्खिउ बुहसूरां णंदणेण । भो! अयरवालकुल कमलसूर, बुहयण जणाह मण श्रास पूर ।। जिणधम्म-धुरंधर गुण-णिकेय, जसपूर दिसतर किय ससेय । चउधरिय खेमहणासुय सुणेहिं, कलिकालु पयलु णियमण धरेहिं ।। दुजण अवियहवि दोस गाहि, वति पउर पुणु पुहह माहि । इय सुकइत्तणि पुणु बद्धणाहु, णिय हियइ धरेप्पिणु पासणाहु । सत्थत्थ-कुसल लइ रसह भरिट, सिरिअमरवइरसेणहु वि चरिउ । भउ वंसु गरिठहु पुहइमजिक, णं प्राइसाह हीणंह दुसज्मि ।। जह जाय पुरिसवर तवहं धारि,
वरसीहमल्ल पमुहाइ सारि । तं वयणु सुणेप्पिणु मणि पुलएविणु अक्खइ देवराज बुहहो भो माणिक पंडिय सील अखंडिय वयणु एक महसुणहिं लड अन्तभाग:
णंदहु जिणवर सासण सारउ, जिणवाणी वि कुमग्ग-वियारउ । णंदउ बुहयण समय परिट्ठिय, शंदउ सज्जण जेवि सविटिठ्य ।। गंदउ परवह पय रखेंतउ, गाय-मग्गु लोमहं सदरिसंतड । सति वियंभउ पुष्टि वियंभउ, सुट्टि वियंभठ, दुरिउ णिसुभत ।।
सेमिउ णिग्गड गरय शिवासहु, जिराधम्मु वि पयडउ भव-वासहु । जिमच्छर मोहवि परिहरियड, सुहयज्झणि जें शियमशु धरियउ ।। हेमचंदु आरिउ वरिट्ठड, तहु सीसु वि तव-तेय-गरिठ्ठउ । पोमणंद धरणंदउ मुणिवरु, देवणंदि तहु सीसु महीवरु ॥ एयारह पडिमड धारंतर, राय-रोस-मय-मोह-हणंतउ । सुहमाणे उवसमु भावंतउ, णंदर बंभलोलु समवंतउ ।। तह पास जिणेदह-गिहनवरण, बे पंडिय णिवसहिं करायवरण । गरुवउ जसमलु गुणगण गिहाण, बीयड बहु बंधउ भब्व जाणु । सिरि संतिदास गंथत्य जाणु, चवह सिरिपारसु विगय-माणु ।। णंदउ पुणु दिवराउ जसाहिउ,
पुत्त-कलत्त-पउत्तु वि साहिड । पत्ता-रोहियासि पुरि वासि, सयलु जोड सह यंदउ ।
पास जिणहु पय-सरणु, णाणा थोत्तहिं वंदिङ १
पुणु णामावलि भणउ विसारी, दायहु केरी वरण विसारी। अइरवालु सुपसिद्ध विभासिड, सिंघल गोत्तिउ सुयण-समाहिउ ॥ बूल्हा णिवि अहिहाणे भणिउ, जे णिय-तेए कुलु संताणिउ । करमचन्दु चउधरिय गुणायरु, दिवचंदही भजहि वि मणोहरु ।। तस्स तणुरुह तिरिण वि जाया, णं पंडव इव तिरिण समाया । पढमड सत्थ-अत्थ-रस-भायणु, महणचंदु णं उड्यउ धरहणु॥ तह वणिया पेमाही सारी, पुत्तबउ किं जुव मणहारी। अग्गिमु वाणे जिड सेयंसिड, उज्जन जसरियो दि जयंसिठ॥