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________________ २७६ अनेकान्त [वष १४ - तहिं साहि सिकंदरु सामिसालु, पर-स्यणह णं उप्पत्ति-खाणि, खिय पहपालइ अरियण भयालु। जा वीणा इव कलयंठि वाणि। तं रज्जि वसइ वणिवरु पहाणु, सोहमा-रूव-चेलणि य दिछ, दुक्खिय-जण-पोसणु गुण-णिहाणु । सिरि रामहु सीया जिह वरिष्ठ । जो अयरवाल कुल-कमल-भाशु, सहि वीर उवण्णा स्यण चारि, सिंघल-कुवलयहु वि सेय-भाणु । णं गत चउक्क सुरूव-धारि । मिच्छत्त-वसण-वासण विरत्तु, तम्मज्मि पढमु वियसियसुवर्ग, जिण-सासणि गंथह पाय-भत्तु ॥ नक्खण-लक्खंकिउ वसथ-चत्तु ॥ चउधरिय णाम चीमा सतोसु, अतुलिय-साहसु सहसेकणेहु, जो वंसह मंडणु सुयण-पोसु । चाएण कण्णु संपइहिं गेहू। तं भामिणि गुण गण-सील-खाणि, धीरें गिरि गंभीरें सायरु, मल्हाहीण में महुर-वाणि ॥ णं धरणीधरु णं रवि-ससि सुरु । तंगंदणु णिरुवम गुण शिवासु, णं सुरतरु पइ पोसणु सुहहरु, चउधरिय करमचंदु अरहदासु। णं जिणधम्मु पयहु थिउ वसु वरु। जिणधम्मोवरि जें बद्धगाहु, जि शियजसि परिय दाणि महि, णिव हिया इटु पुरयणह याहु ।। जो णिव सुह पालउ सुयणसुहि ॥ जिण वरणोदएण वि जो पवित्त, दिउराजु णामु चउधरिय सुर्दि, मायम-रस-भत्तउ जासु चित्तु । जिणधम्म-धुरंधरु धम्मणिहि । उद्धरिड चडग्विह-संघभारु, विण्णाण कुसमु बीयउ सुपुत्तु, पायरिड विसावय-चरिउ चार॥ जो मुणइ जिणेसर धम्मसुत्तु । पडदाणवंतु णं गंध-हरिथ, सुपवीणराय-वावार-कज्जि, वियरेह णिच्च जो धम्म-पंथि । गंभीर जसायरु बहुगुणिज्ज । सम्मत्त-यण-लंकिय सरीरु, माझू चउधरिय विसुद्ध भाइ, कणयायलु म्व णिक्कंपु धीरु ॥ जो णिव-मणु रंजइ विविह भाइ । सुहि परिया-कहरव-वहिं हंसु, अपणु वितीयउ रिसिदेव-भत्तु, जिणवर-सहमज्में लबू-संसु। गिह-भार-धुरंधरु कमल-वत्तु । तं भामिणि दिउचंदहि मियच्छि, चुगनाणामें चउधरित उत्तु, जिण-सुय-गुरु भत्तिय सील सुमिछ। जो करह णिच्च उवयारु त:॥ तं जायउ णंदणु सील खाणि, पुणु चउथउ णदणु कुल-पयासु, चउमहणा यामें श्रमिय-वाणि । अवगमिय सयल-विजा-विलासु । धण-कण-कंचणु-संपुण्णा संतु, जिण-समयामय-रस-तित चितु, पंडियह वि पंडियगुण-महंतु ॥ छुट्टाणामें चउरिय उत्तु । दुहि-यण-दुह-गासलु बुह कुल-सासणु जिण सासण-रह-धुर-धवलु एचड भाइय जिणमइ-राइय, दिउराजुणामु गरुवड सुपई बिज्जा बच्छी घर स्वें पायरु मह णिसु किण विह उद्धरण॥ याणासुह विलसइ कइयण पोसइ पियकुल कमजज्जु पुहई ५ तं पणइणि-पणह-णिबद्ध-देह, भएणहि दिणि जिणवर गंथदत्यु, शामें खेमाही पिय-सणेह। सम्मत्त-रयण-लंकयहि पत्थु । सुर-सिंधुर-गह सहवाह-विलील, गड अरुह-गेहि दिउराज साहु, परिवारहु पोलय सुबसील ॥ पठधरिय रायरंजयपयाहु ॥
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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