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किरण ]
जैनग्रन्थ-प्रशस्तिसंग्रह
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विरिण पमाण-एयण-जोवंती,
परिहरिहि मण चिंतकरि भवणिरु कम्यु, दो-दह-णिय अंगई गोवंती॥
खलयण मा डरहिं भउ हरिउ मइ सम्बु । बे-णय कोमल पहिं चलंती,
तो देविवयणेश पडिउ विमाणंदु, चउदह-पुन्बाहरण-धरती।
तक्खणेण सयणाउ उदि ठड जि गय-संदु ।। ति-जय-चित्ति विन्ममु विहुणंती,
दिसवहणियतोय पुणु तुट्ठ चित्तमि, भत्थ-पसत्थ-वयण-भासंती ॥
संपत्तु जिगोहि सुहगई णिमित्तम्मि । कुणय-विहंडणि संतावंती,
पणवेवि जिणणाहु बहुविह विसंथुत्ति, णाणा-सह-दसण सोहंतो।
मुणिपाय वंदेवि जाथक्कु जसमुत्ति ।। छंद-दुविह-भुयडाल-रवएणी,
ता तम्मि खणिबंभ-वय-भार भारेण, वायरणंगु णाहि सुयवरणी॥
सिरि अइरवालंकवंसम्मि सारेण । जियमय-सुत्त-वत्थ-पंगुरणी,
संसार तणु-भोय-णिग्विण्णचित्तण, सोल-महाकुल-हर-हर-धरणी।
बरधम्म-माणामएणेव तित्तय ॥ दुविहालंकारेण पहाणी,
सस्थत्थरयणोह-भूसिय-सदेहेण, होउ पसरण जिणेसहु वाणी॥
दहएग पडिमाण पालण स-णेहेण । सुयदेवि भडारी ति-जय पियारी दुरियवहारी सुद्धमइ ।
खेल्हाइ हाणेण एमिउण गुरुतेण, कइयण-यण-जणणी सुहफल-जणणा सा महु दिज्जउ विमलमई जसकित्तिविण्णात्तु मंडय गुणोहेण ।। संसारोवहि-पोय-प्रमाणा,
भो मयण-दावग्गि-उल्हवण-वणदाण, विगय-दोस वे मुणिय पमाणा।
संसार-जलरासि-उत्तार-वर-जाण । पाण-घउक्को जोय दिवायरु,
अम्हा पसाएण भव-दुह-कयंतस्स,
ससिपहजिणेदस्स पडिमा विसुद्धस्स ॥ थावर-तस सत्ताहं दयावर ॥ जे हुय गोयमु पमुह भडारा,
काराविया मई जि गोवायले-तुंग, ते असेस पणविवि सरहारा ।
उबुचाविणामेण तित्यम्मि सुह-संग। ताई कमागय तव-तवियगो,
आजाहिया हाण महु जणाण सुपवित, पिच्चब्भासिय-पवयणसंगो॥
जिणदेव मुणि पायगंधोवसिरसित्त ॥ भब्व-कमल-सर-बोह-पयंडो,
दुल्लंभु गर-जम्मु महु जाइ इहु दिएणु, वंदिवि सिरि जसकित्ति प्रसंगो।
संगहिवि जिण-दिक्ख मयणारि जिं छिएणु । तस्स पसाएं कन्वु पयासमि,
तहि पढिय उवयारं कारणेण जिण-सुत्ति, चिर भवि-विहिउ असुह णिण्णासमि ॥
काराविया ताहि सुणिमित्त ससि-दित्ति ।। जह कह भवि मणुयत्तणु बम,
कलि-कालु जिणधम्मधुर धारपूढस्स, देस-जाइ-कुल-वस-विसुदउ।
तिजयालए सिहरि जस सुज्झरूढस्स । तं हेलइ विहलउ ण गमिज्जई,
सिरि कमलसीहस्स संघाहिवस्सेव, सत्यभामे सहलो किज्जइं॥
सुसहायएणावि तं सिद्ध इह देव ।। गोवग्गिरि दुग्गमि शिवसंतउ, बहु सुहेण तहिं । जणणी उवयारहु पर-भवयारहु. हुवउ तस्स गिम्भार हउ । पणमंत गुरु-पाय पायडंतु जिण सुत्तु-महिं ॥३॥ एज्वहिं मुणि-पुगम बहु-सुय-संगम माहासमि णिरुविगय-भट। जिन-धम्म कम्मम्मि कय उज्जमो जाम,
महु मणम्मि सल्लेक्कु पया, गिय गेह सयण यलि सुहि सुत्तु बहु ताम ।
तुम्ह पसाएं सोऊ हहह। सिविणंतरे ट्ठि सुयदेवि सुपसरण ।
चित्ति परम वइराउ धरितें पाहासए तुज्म (१) हठं जायसु पसरण ।
सु-तव-भारि विमाहु धारते॥