SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 319
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कला का उद्देश्य (प्रो. गोगुलप्रसादजी जैन एम० ए० साहित्यरत्न) कला एक अखण्ड अभिव्यक्ति है अतः उसका ६-कला श्रात्मानुभूतिके लिये ( Art for कोई वास्तविक वर्गीकरण नहीं किया जा सकता । self realisation). कलाका मूल अनुभूति है जिसकी स्थिति प्रत्येक उपर्यत प्रयोजन एक दुसरेसे नितान्त भिन्न नहीं कलाकारके हृदय में समान रूपसे रहती है। उसकी है। उनमें केवल दृष्टिकोणकी भिन्नता है । प्रथम अभिव्यजनाकी विभिन्न प्रणालियोंके कारण से ही ध्येय प्रयोजन कलापक्षके तथा शेष चार उपयोगिता भिन्नता प्रतीत होती है। उपयोगिता और पक्षके द्योतक हैं प्रथम पक्ष कलाको जीवनके लिये सौन्दर्यकी भावना तो कलाके मूल में सर्वत्र रहती ही आवश्यक तथा प्राचार और नैतिकताका कलात्मक है । उपयोगी कलाद्वारा मनुष्यके लौकिक और माध्यम नहीं मानता जबकि दूसरा वर्ग कलाको ललितकलाद्वारा उसके मानसिक एवं अलौकिक जीवनकी उन्नति और नैतिक सदाचारकी स्थापनाके मानन्द पदको सिद्धि होती है। इसी कारणसे लिये अत्यावश्यक और अनिवार्य मानता है। एकमें कलाके अनेक विभाजनों में 'ललित और उपयोगी लोकहितकी भावना तिरोभूत रहती है तथा दूसरेमें का विभाजन ही सर्वाधिक सार्थक और वैज्ञानिक उसका प्राधान्य होता है। प्रतीत होता है। ____ उपकरणोंकी दृष्टिसे ललितकलाओंके वास्तु, प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक कलाको जीवनकी प्रति कृति मानता था। वह कला और जीवनक नित्य मृति और चित्रकला (दृश्य वर्ग) तथा संगीत और घनिष्ट सम्बन्धका प्रतिपादक था जबकि प्लेटो और काव्यकला (श्रव्य वर्ग) ये पांच भेद किये गये इसके विपरीत कलाको जीवनकी अनुकृति मात्र हैं । पाश्चात्य मीमांसकोंन भी काव्यको ललित मानकर चलता था। उसके अनुसार कला कृतियां में कलाओंके अन्तर्गत माना है। इसी कारणसे काव्य जीवनका केवल अनुकरण सम्भव है प्रतिकरण नहीं। के प्रयोजनोंका विवेचन व्यापक रूपसे कलाके अनेक अतः कला जीवनकी प्रतिकृति नहीं बन सकती। प्रयोजनों के साथ चलता है। कलाके अनेक प्रयो अपने यथार्थवादी सिद्धान्तके अनुमार अरस्तू कला जनों में निम्न लिखित : प्रयोजन अधिक प्रसिद्ध हैं जीवनके लिये सिद्धान्तका प्रवर्तक तथा पोषक है जब कला पक्ष कि प्लेटोका आदर्शवाद कला कलाक लिये के १-कला कलाके लिये (Art for Art's Sake) Ke) सिद्धान्तका प्रतिष्ठापन करता है। इन दोनों सिद्धांतों २-कला जीवनसे पलायनके लिये (Alt us का कालान्तरमें इंग्लैण्ड तथा फ्रांसमें पालन-पोषण an escape from life). ३-कला आनन्दके लिए ( Art for jor). हुआ तथा वहींसे इनका सिद्धान्त रूपमें प्रतिपादन ४-कला मनोरंजनके लिये ( Art for Rec हुआ। फलतः विचारकोंमें भी दो वर्ग हो गये। कला पक्षके समर्थकोंमें पास्करवाइल्ड, ब्रडले, reation ). ५-कला सृजनकी आवश्यकतापूर्तिके लिये क्लाइब वेल, वाल्टर पेटर आदि प्रमुख थे जब कि उपयोगिता पक्षके समर्थकों में (Art as creative necessity ). रस्किन, अम्बरकावी आदि प्रसिद्ध हैं। प्रथम वर्गमें उपयोगिता पक्ष केवल सौन्दर्य ही सब कुछ था तथा कलाके क्षेत्र में ६-कला जीवनके लिये (Art for Life's Sake ). सद असदु, सभ्य असम्यका विवेक कोई महत्व नहीं ७-कला जीवन में प्रवेशके लिये (Art as रखता । आचार और कलामें भी कोई सम्बन्ध नहीं an escape into life ). है दूसरे वर्गमें लोकपक्ष, उपयोगितावादी लोक-कला सेवाके लिये ( Art for servica's कल्याण अदिकी भावनाका प्राधान्य है। Sake). साहित्यिक क्षेत्रके अतिरिक अन्य क्षेत्रों में कुछ - NMMM मचायाs. . ..
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy