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________________ अानन्द सेठ (पं० हीरालाल सिद्धान्त शास्त्री) आजसे अढ़ाई हजार वर्ष पूवकी बात है, पटना इसमें भी अपनेको असमर्थ पावे, वह वर्तमानसे दूने, (विहार का एक बहुत बड़ा धनिक सेठ आनन्द तिगुने परिग्रहको रखनेका नियम कर उससे अधिकअनेक लोगोंके साथ भ. महावीरके समवसरणमें की इच्छाका परित्याग करे, यह जघन्य प्रकार है। गया। सबने भगवानका उपदेश सुना और उपदेश आनन्दने मनमें सोचा-मेरे बारह कोटि स्वर्ण मनकर अनेक मनुष्य प्रवृजित हो गये । आनन्द भी दीनार हैं, पाँच सौ हलकी खेती होती है, चालीस भगवानके उपदेशसे प्रभावित हुश्रा । पर वह घर- बगीचे हैं, दस हजार गाएँ हैं, पाँच सौ रथ और बारको छोड़नेमें अपनेको असमर्थ पा भगवानसे गाड़ियाँ हैं, और इतना इतना धान्यादि है । इतने बोला प्रचुर धन-वैभवसे मेरा जीवन निर्वाह भली-भांति भन्ते, मैं आपके उपदेशका श्रद्धान करता हूँ, हो रहा है, अतः अधिककी इच्छा करना व्यर्थ है। प्रतीति करता हूँ, वह मुझे बहुत रुचिकर लगा है। और. आज जितना वैभव है, उसका मैं आदी हो पर मैं घर-बारको छोड़ने में अपने आपको असमर्थ गया है. अतः उसे कम भी नहीं कर सकता। ऐसा पाता हूँ। अतएव भन्ते, मुझे श्रावकके व्रत देकर विचार कर भगवानसे बोलाअनुगृहीत करें। __ भन्ते, 'मैं मध्यम परिग्रह-परिमाणवतको अंगी. भगवानकी दिव्यध्वनि प्रकट हुई-आयुष्मन , कार करता हूँ', ऐमा कहकर उसने वर्तमानमें प्राप्त जैसा तुम्हें रुचे, करो; प्रमाद मत करो। धन-सम्पत्तिसे अधिक एक भी दमड़ी नहीं रखनेका भगवान्की अनुज्ञा पाकर आनन्दने कहा संकल्प कर अपरिग्रहव्रतके मध्यम प्रकारको स्वीकार भन्ते, मै यावज्जीवनके लिए स जीवोंकी सांक किया। इस प्रकार पंच अणुव्रत धारण किये। तदल्पिक हिंसाका त्याग करता है. लोकविरुद्ध, राज्य नन्तर सप्त शीलोंको भी धारण कर और भगवान्विरुद्ध, आगम-विरुद्ध एवं पर पीड़ा कारक असत्य को नमस्कार कर वह अपने घरको वापिस लीट वचन नहीं बोलू गा; बिना दी हुई पर-वस्तुको नहीं आया। ग्रहण करूंगा और अपनी स्त्रीके अतिरिक्त अन्य घर आकर उसने अधिकारियोंको अपने ब्रत, सबको माता, बहिन ओर बेटी समझूगा । इस ग्रहणकी सूचना दी और अपना समस्त सम्पत्रिके प्रकार चार अणुव्रतोंको ग्रहण कर परिग्रह-परिमाण चिट्ठा बनानका आदेश दिया। अधिकारियोंने चिट्ठा व्रतको ग्रहण करनेके लिए उद्यत होता हुआ अपने बनाकर बताया कि आजके दिन आपका चार कोटि विशाल वैभवको देखकर चकराया कि अपरिग्रह सुवर्ण दीनार व्यापारमें लगा हुआ है। चार कोटि नामक पंचम व्रतको कैसे ग्रहण करू? जब अन्तरसे कोई ममाधान नहीं मिला तो भगवानसे बोला सुवर्ण दीनार व्याजपर लोगोंको पूंजीके लिए दिया भन्ते, अपरिग्रह व्रत किस प्रकार ग्रहण किया ? हुआ है और चार कोटि सुवर्ण दीनार समय-स मयपर काम आने के लिए भण्डार में सुरक्षित है। जाता है? उत्तर मिला-आयुष्मन, परिग्रहका परिमाण खेतों में बाने के लिए मर्वप्रकारके धान्योंकी २५ हजार तीन प्रकारसे किया जाता है-वर्तमानमें जितना बारियाँ काष्ठागारमें रखी हुई हैं। दश हजार परिग्रह हो, उसमें से अपने लिए आवश्यकको रख गायों में से एक हजार दूध दे रही हैं, और लगभग कर शेषका परित्याग करे, यह उत्तम प्रकार है। इतनी ही गाभिने हैं। इसी प्रकार शेष अन्य समस्त जो इसे म्वीकार करने में अपनेको असमर्थ पावे, सम्पत्तिको सूची आनन्दके सामने उपस्थित की गई। वह वर्तमान में उपलब्ध परिग्रहसे अधिक न रम्बने- आनन्दने अधिकारियोंसे कहा-आज मैंने का नियम करे, यह मध्यम प्रकार है । और जो श्रमणोत्तम भगवान् महावीरके पास श्रावकके व्रत
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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