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________________ किरण] जैनप्रन्थ-प्रशस्तिसंग्रह [२४४ तेयपालु महुणामुय सिम्बर, सो पणवेप्पिणु रिसहमिण भक्खय-सोक्ख-बिहाणु ॥ जियावर-मत्ति विबुह-गुण-बड। ध्रुवकं-पणवेवि भडारउ रिसह याहु, कम्मक्खय कारण मल भवहारण मरहमति मह हपउ। पुणु अजिउ जियेसरु गुण सणाहु। जो पढाइ पढावह शियमणि भावह येहु चरिउ तुइ सहियउ॥ x x x x एहु सत्थु जो सुबइ सुणावइ, अन्तिमभाग:एहु सत्थु जो बिहइ लिहावा । इय भरहखेत्त संपण्ण देसु, एहु सत्थु जो महि वित्थारइ, ठिउ गुज्जरत्तु णामेण देसु । सोणरु लहु चिरमल अवहारह ॥ तासु वि मज्महं ठिड सुपसिबू, पुणु सो भवियणु सिवपुरि पावइ, शायर-मंडल-धण-कण-समिछु । जहि जर-मरणु ण किंपि वि प्रावह । तहि पयरु बाट संठिबउ ठाणु, यंदउ परवह महि दयवंतउ, सुपसिद्ध जगत सिय पहाणु । यंदउ सावय जणु वय-वंतउ ।। सिरि वीरसूरि तहिं पचर-प्रासि, महि जिण-शाहहु धम्मु पवउ, विणयालंकित गुण-यण-रासि । खेमु सम्व जणवह परिवड्ढउ । मुणिभर सीसु नहिं जाउ संतु, कालि कालि वर पावसु वरिसर, मोहारि-वियासणु थिम्ममत् । सच लोउ दय-गुण उकरिसड ॥ तासुवि सुकमारुह पयाड, अज्जिय मुशिवर संधु वि वंदड, सिरि कुसुमभ६ मुणीसहु सीसु जाड । सयलु कालु जिणवरु जणु वंदउ । तासुवि भविषण-यण भास पूरि, जं किपि वि होणहिट साहिड, संजायउ सीसु गुणभइसूरि। हीण-बुद्धि कव्वु वि गिब्वाहिड ।। हउँ तासु सीसु मुणि पुरणभात तं सरसइ मायरि सम किज्जड, गुणसील-विहूसिउ गुण-समुह । भवर विपडिय दोसु म दिज्जा । मइ बुद्धि विहीणेउ पहु कव्वु, विरयउ भवियरा विसुर्णत सम्वु । जो गरु दयवंतड गिम्मन चित्तउ शिरचु जि जिणु भाराहा। पत्ता-जा मज्जय-सायरु सबइ दिवायर सो अप्पड माइवि केवल पायवि मुत्ति-रमणि सो साहा। जाम मेरु महि-वलय धिरु। हय वरंग-चरिए पंडियत्यपाल-विरइए मुणिविठल जाहवह णहंगणु जणमण रंजणु कित्तिसुपसाए वरंग-सम्वत्थसिद्धि-गमयो णाम घडत्य संधी ता एउ सत्थु जइ होइ चिरु॥१८॥ परिच्छेनो सम्मत्तो, संधि इय सिरि सुकुमालसा.म चरिए भन्बयणाणंदयरे सिरि -प्रति ,महारक हर्षकीर्ति शास्त्रभंडार, अजमेर गुण माह सीसुमुणि पुरणमा-विरहए सुकमालसामि सम्वत्थ. लिपि.सं. १६०० सिद्धि गमणो णाम छट्टो परिच्छेमो समतो। ३० सुकुमालचरित (सुकुमाल चरित) -प्रति पंचायती मंदिर शास्त्र भंडार विल्सी। मुनि पूर्णभद्र लिपि से०१६३२ आदिभाग:पढमु जियवरु यविवि भावे जउ-मउड ३१ णेमिणाह चरित (नेमिनाथ चरित) विहूसियउ विसय विण्हु मयणारि-णासणु । अमर कीर्ति रचनाकाल सं० १२४४ असुरासुर-पर-थुय-चलणु सत्त तच्च आदिभागागव पयत्य खव यहि पयासणु॥ बिजयंतु हेमि पह-शाह-ससिया पुराण-पहा पयोहता। बोयालोयपयासपर बसु उप्परगट थाणु । कुमु राय हरिमडा सिपमणि परिबिम्ब-सक्सया बिच ।
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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