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२५.] अनेकान्त
वर्ष४ विजयंतु पास-तणु-मिलिय-धरण-फण-मणि मयूर-णिउरंया।
जहिं सरि सरवर चउदिसि र-वगण, घणा-घाइ-कम्म-वा-डहण-सुद्ध माणग्गि-जाल पुजब्बा ॥२
पाणंदिय पहियण तदि विसरण । रयकसि बग्गसुतणुप्पहाए धम्मोवएस समयम्मि ।
जहिं चेईहर मणाहर विसाल, स जयउ वि सो जस्सहि सरमम-तडिव विप्फुरियं ॥३॥
एं मेरु जियालय महिय साल । हरिणको शिदोसो सम्पो (१) मय-णास विहाउसो ।
तिहुश्ण मंदिर गिह मणि बिहार, सञ्चित्तस्स वियासो संति जिणे सो जये जयउ॥४॥
फेडिय पुयंतण-यंधयार। अन्तिमभागः
अहिं पढमु जाउ घायरण सारु, ताहं रज्जि वतए विक्कमकालि गए
जो बुहियण कंठाहरणु चारु । बारह सय घउ आलए सुक्ख ।
मितिय जइवर हुबह तत्थ, सुहि वक्खमए भहवयहो सियपक्वेयारिसिदिणि तुरिउ ।
जहिं भवियण लीइय मोक्व-पंथ ॥ सक्कडिणक्खत्तए समप्पिउ सिरिणमिणाइ चरिउ ।
जहि णिच्च महोच्छव जण गेहि, उत्तर माहुर संघायरियहो चंदबित्ति णामहो,
कय भवियहिं भव प्रासंकिएहि । सुहचरियहो पाय-पणासिय परवाक दहो।
तहि शिवसहरयण गरुह भन्दु, सगुणाणंदिय कण्हणरिंदहो, सीसें अमरकित्ति णामके ।
परणारि सहोयरु गलिय-गन्छ । जिणवर दमण गयगा मयंकहो णाहिउ विरुन्द्र, अमुणा तं ॥ लखमणामहं तह तणठ पुत्तु, जं महु भामिड कच्चु कुणते तं महु स्वमहु मरासइ ।
लक्खम सराउणामे विसयहिं विरुत्तु । मार्मािण जिणवयणुड भव-सिव संभाहिणि ।
पुरबाड महिसउर तिलउ णाणि. असाच वुहिहिं समंजप चितहि मज्मन्धेहिं ।
सो अह-णिसि जीणउ जइणि-वाणि ॥ -प्रति भट्टारकभंडार मांगागिर
पत्ता-तहिं जोयउ वह रायउ, अवलोएविणु भवगइ ।
लिपि सं. १९९२ तं किज्जद हिउ अत्थु, जेण जीउ । मइ गइ ॥२६॥ ३. मिणाह चरिउ (नेमिनाथ चरित)
पउरवाल-कुल-कमल-दिवायरु, कवि लक्षमण
विणयवंसु संघहु मय सायरु । आदिभ गः
धण-कण-पुत्त-अत्थ-संपुण्णउ, विस-रह-धुर-धारउ विस्स वियारउ विसय विसम विसंकउ विडड
श्राइस रावउ रूव-रवराउ । पसममि वसु गुणहरु वसुधर तिय-बरुवारिय लंदण गुण-णिलउ नेण वि कयउ गंथु अकसायइ, (चतुविशति तीर्थकरोंको स्तुतिके बाद प्रथ प्रारम्भ
बंधव अंबएव सुसहायइ । किया गया है।)
कम्मक्खा णिमित्तु माहासिउ,
अमुणतेण पमाणु पयामिड । इति णेमिणाहचरिए अबुहका-यण-सुत्र-लक्खणेश
ज होणाहिउ किड बाएसार, विरहए मम्वयणमणाशंदे णेमिकुमार संभवो गाम पदमा
माणदेवि तं खमइ परमेसरि । परिच्छेयो समत्तो
लक्खम-छंदहीणु जं भासिड, अंतिम भाग:
तं बुहयण सोहेवि पयासिठ । मालवय विसय अंतरि पहाणु,
प्रारभिउ प्रासाढहिं तेरसि, सुरहरि भूसिउ शं तिमय-ठाणु ।
भउ परिपुण्ण चइतिय तेरसि । शिवसह पट्टणु णामई महंतु,
पढइ सुणइ जो लिहइ लिहावा, गोणंदु पसिद्ध बहु रिद्धिवंतु ।
मया-बलिय तं सो सुह पावह ॥ श्राराम गाम परिमिड धणेहि,
पत्ता-जं हीणाहिड मत्त-विहुणिउ साहिउ गयउ अयाणि । गा भू-मंडलु किउ णियय-दहि ।
संमज्मु खमिम्बउ लहु दय किज्जड साहलोउम्गमणि ॥२२