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________________ किरण] भगवान बुद्ध और मांसाहार [२४१ दूसरी बात 'मज्जारकृतकुक्कुट-मांस' शब्द पर विचार शब्दसिंधु पृष्ट-२५९,सुनिषण्णःसूचिपनश्चतुष्पत्रोवितम्मुकः। करना है। श्रीवारकः सितिवारः स्वास्तिकः कुक्कुटः सितिः ॥ मज्जार-मार्जार बिल्लीका वाचक है, सत्य है। बिल्ली अर्थात् सुनिषण्णकके इतने नाम हैका वाचक 'विडार' भी है। विडारके नाम पर प्रसिद्ध सुनिषण्ण-सूचीपत्र-चतुष्पत्र, वितुनक, सिविचार, औषधि है जिस विदार' या 'विदारीकन्द' कहते हैं। स्वास्तिक, 'कुक्कुट' सिति । इसमें सुनिषण्ण बनस्पतिको कुछ प्रमाण देखिए 'कुक्कुट' यह नाम भी दिया है। जिससे यह स्पष्ट है कि (१) "विडाली स्त्री भूमिकूष्माण्डे' यह भी एक वनस्पति है। शब्दसिन्धुमें इसे 'शाल्मलि -शब्दार्थ चिन्तामणि लिखा है। अर्थात् 'विडाली' शब्द स्त्रीलिंग है और भूमिमें होने मांस शब्द जिस तरह मनुष्य पशु पक्षीके स्थिर रक्त वाले 'कूष्माण्ड' जिसे हिन्दीमें 'कुम्हड़ा' या 'काशीफल रूप' अर्थमें आता है वैसे ही अनेक ग्रन्थों में फलके गूदेको कहते हैं उस अर्थमें आता है। भी मांस नामसे लिखा है। (२) विडालिका स्त्री भूमिकूष्माण्डे'। अनेक प्रमाण इसके हैं-वैद्यक शब्दसिंधु। रोम शब्द-वनस्पतिके रेशोंमें, रक्त शब्द-वनस्पतिके इसका अर्थ ऊपर प्रमाण ही है। रसमें, मांस शब्द-वनस्पतिके गूदेमें, अस्थि शब्द-वनस्पतिके (३) 'विदारी द्वयम् विदारी क्षीर विदारी च।' बीजोंमें प्रयुक्त किये हैं। ___ अर्थात् विदारी या विडारी दो प्रकार है एक सामान्य कुछ उदाहरणोंसे यह स्पष्ट हो जायगा। विदारी एक क्षीर विदारी। क्षीर विदारीका अर्थ है जो 'मूले कंदे छल्ली पवाल साल दल कुसुम फल बीजे' क्षीर कहिये दृधको विदारण कर दे। चूकि बिल्ली दूधको बचने नहीं देती इस अर्थसे विदारीकन्द जो दूधको दूध ___ --गोमटसार जीवकांड (दिगम्बर जैन करणानुयोग) नहीं रहने देता, उसका विदारण कर देता है इस अर्थ इस श्लोकमें सप्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठित बनस्पतिके साम्यक कारण उसे क्षीर विदारी या विदारी या विडारी प्रकरणसे छल्ली शब्दका संस्कृत शब्द 'स्व' बताया कहते हैं। लोकमें विडारी या विटारिकाका अर्थ बिल्ली गया है। माना जाता है । पर इस प्रकरणमें ग्रन्थकारने उसे 'भूमि 'तणुकतरा' शब्दमें पतनाल्नु माने पतली पाण अर्थ कृप्मांड' या विदारीकन्दके नामसे स्वयं उल्लेख किए हैं। किया गया है। त्या शब्द चमके अर्थ में भी पाता है और यहां 'गजवाजिप्रिया वृप्या वृक्षवल्ली विडालिका' 'छाल' के अर्थ में पाया है। यह विडालिका' नामक वृक्षकी बेल हाथी और घोड़ोंको प्रिय है, वे खाते हैं और वह पुष्टिकारक है। देखिए वाग्भट (वैधकप्रन्थ) में स्वक् तिक्रकटुका स्निग्धा, मातुलिंगस्य बातजित् । वृहणं इस श्लोकके पढ़नेके बाद विडालिका' का अर्थ वृक्षकी मधुरं मासं वातपित्त हरं गुरु । अर्थात् मातुलिंग (विजौरा) बेल स्पष्ट हो जाता है न कि बिल्ली। शब्द प्रयोगमें कमी की छालके लिए त्वक' शब्द पाया है जो चमके अर्थ में कभी श्लोकमें यदि विडालिका चार अक्षरका शब्द नहीं भी आता है। मातुलिंगका गूदा पुष्टिकर मीठा और बनता तो पर्यायवाची 'मार्जार' शब्दका भी प्रयोग कर वातपित्तनाशक है। यहां गूदाके लिये 'मास' शब्द लिखा दिया जाता है। संस्कृत साहित्यमें इसके सैकड़ों उदा- गया है। इस तरहके अनेक प्रकरण है जिनसे यह स्पष्ट है कि कुक्कुट शब्दका विचार अस प्राणीके शरीरके वर्णनमें 'स्व' शनका अर्थ चमका सुनिषण्णक नामक वनस्पतिका दूसरा नाम कुक्कुट है। रकका अर्थ खून और मांसका अर्थ जमा हुआ खून है। देखिये है। अस्थिका अर्थ हही है। किन्तु वनस्पति प्रकरणमें इन कुक्कुटः कुक्कुटकः (पुजिंगः) सुनिष्षणकशाके - सभी शब्दोंका क्रमशः अर्थ स्वबाल । रक-रस । मांस
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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