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________________ किरण : जैनग्रन्थ-प्रशास्तसंग्रह [२१५ चउसेमह कम्मह करि विणासु, विरएवि चंदप्पहचरिउ चारु, संपत्ता सिद्ध-णिवाम-वासु । चिर चरिय कम्म दुक्खावहारु । देवाली अम्मावम अलेउ, विहरंतें कोउगहल-वसेण, महो देउ बोहि दवाहिदेउ । परिहस्थिय वाएसरि रसेण । चउदव-णिकायहं अहमगुज्ज, सिरि-अयरवाल-कुल-संभषेण, प्राइवि विरइय गिब्याण-गुज्ज । जणणी-वील्हा-गब्भुवेग | जिग णिमियउ जो वि करेइ भन्छु, अणवस्य विणय-पणयारुहेण, पावइ मोक्षु संरिब-गच्छ । काणा बुह गोल्ह-तणुरुहेग । पयडिय तिहुश्रण-वई गुणभरण, घत्ता मरिणय सुहि सुपणे 'सरिहरेण । जिण णिसिवउ फलु क्विउ गुणहं कित्ति मुणीसे । जउँणा-सरि सुर-णार हियय-हार, पिरिजसकित्ति मुणि कुवलयचंद जिणगण भत्तिविसंगेश णं वार विलासिणि-पउर-हार : अमुणिय कव्वविसेम तह विज वीरगाह-अणुराएं । डिंडीर-डि-उप्परिय-मिल्ल, घिलत्तणेण रइयं तं मयलं भारही ग्वमनी ॥ कीलिर रहं गंथोम्बउ थपिल्ल । इति जिनरात्रिवत कथा (ग्रामेरशास्त्र भंडारसे) सेवाल-जालोमावलिल्ल, वुहयण-मण परिरंजण छइल्ल | ४२ रविनउ कहा (रवित्रत कथा) भमरावलि-वेणी-वलय-लच्छि, भ० यराःकीनि पप्फुल्ल-पोम-दल-दीहरच्छि। आदिभाग: पवणाहय सन्निलावत्तरणाहि, श्रादि अंत जिणु बंदिवि सारद, विणिहय-जणवय तणु-ताव-वाहि । धरेवि मणि गुरु निग्गय गपिग्गु । वणमय-गलमय-जल घुसिण लित्त, सुयणहं अणुसरवि पुच्छंन भचयगड पायगाह तहं रवि-बर दर फुडिय-सिप्पिउ दसण-दिति। पभणमि मावयह, जामु करतहं लब्भइ संपइ पक्रा । वियसंत सरोरुह पवर-वत्त, अन्तिमभाग: रयणायर-पवर-पियाणु रत्त । पामजिणेंद पसाएं दिवमहं सो कहइ, विउलामल पुलिण णियब जामु, उत्तिण्णी णयणहि दिदु तामु । पंडिय सुरजन पामहं भव्बउ वउ लवइ । हरियाणए दसे असंखगामे, जो इहु पढइ पढावह णिसुइ करणु दइ, गामियिण जणिय अणवस्य कामे । सो जसकित्ति पसंसिवि पावइ परम गई ॥२०॥ पत्ता(दिल्ली पचायती मन्दिर शास्त्र भंडारके गुटकेस) परचक्क-विहट्टणु सिरि-संघदृणु, जो सुरवडणा परिगणित। २५-पासणाह-चरित (पार्श्वनाथ चरित) रिउ रुहिरावट्टणु विउलु पवणु, दिल्ली यामेण जि भबिड ॥२ (कवि श्रीधर) रचनाकाल सं०११ । आदिभाग जहिं अमि-वर-तोडिय रिउ-कवालु, पूरिय भुप्रणासहो पाव-पणासहो णग्णाहु पमिद्ध अणंगवालु। बिरुवम-गुण-मणि-गण-भरिउ । हिरदलु बटिठय हमारवीरु, तोडिय भवपासही पणवेवि पासहो वंदियण-विंद-पवियएण-धीरु। पुणु पयाम तासु जि चरिउ ॥ दुज्जण-हियथावणि दलण-सीरु, दुरणय-धीरय-बिरसण-समीर ।
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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