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२१६]
अनेकान्त
[वर्ष १४
बल-भर-कंपाविय णायराउ,
पुणु बीयत विबुहाणंद-हेउ, माणिणि-यण-मण-संजणिय-राउ ।
गुरु भत्तिए संथुन अरुह-देउ । तहि कुल-गयणं गणेसिय पयंगु.
विणयाहरणालंकिय-सरोरु, सम्मत्त विहूसण भूसियंगु।
सोढल-णामेण सुबुद्धि धीरु। गुरुभत्ति णविय तेल्लोक-णाहु, दिउ अल्हण मेण साहु ।
पुण तिजउ णंदणु णयणाणंदणु जगे गट्टलु णामें भणिउं । तेण वि णिज्जिय चंदष्पहासु,
जिणमहणीसंकिउ पुण्णालंकिउ जसु बुहेहिं गुण गणु गणिउं ॥५ णिसुणेवि चरिउ चंदप्पहासु ।
जो सुंदर बोया इंदु जेम, अंपिउ सिरिहरु ते धरणत,
जण-वल्लहु दुल्लहु लोय तेम । कुलबुद्धि विहवमाण सिरियवंत ।
जो कुल-कमलायर-रायहंसु, प्रणवरउ भमई जगि जाहि कित्ति,
विहुणिय-चिर-विरइय-पाव-पसु । धवलती गिरि-सायर धरित्ति । सा पुणु हवेह सुकइत्तणेण,
तित्थयरु पयट्टावियउ जेण, वाएण सुएण सुकित्तणेण ।
पढमड को भणियई सरिसु तेण ।
जो देइ दाणु वदीयणाहं, जा अविरल धारहि जणमण हारहिं दिज्जइ धणु वंदीयणह।
विरएवि माणु सहरिस मणाह ।
पर-दोस-पयासण-विहि-विउत्तु, ता जीव पिरंतरि भुषणभंतरि भमई कित्ति सुदर जणहं ।।४
जो ति-रयण-रयणाहरण-जुत्तु । पुत्तेण विनच्छि-समिद्धएण,
जो दितु चउब्बिहु दागु भाई, णय-विणय सुसील-सिणिद्धएण ।
अहिणउ वंधू अवयरिउ णाई । कित्तणु विहाइ धरणियलि जाम,
जसु तणिय कित्ति गय दस दिमासु, सिसिरयर-सरिसु जसु ठाइ ताम |
जो दितु ण जाणइ सउ सहासु । सुकइत्ते पुणु जा सलिल-रासि,
जसु गुण-कित्तणु कइयण कुणंति, ससि-सूर मेरु-णक्ख त-रासि ।
अणवरउ वंदियण णिरु थुणंति । सुकहत्तु वि पसरह भवियणाहँ
जो गुण-दोसहं जाणई वियार, संसग्गे रंजिय जण-मणाहूँ।
जो परणारी-रह णिग्वियारु। इह जेजा या साहु प्रासि,
जो स्व विणिज्जिय-मार-वीरु, बह गिम्मलयर-गुण-रयण-रासि ।
पडिवरण-वयण-धुर-धरण धीरु । सिरि-प्रयरवाल-कुल कमल-मिसु, सुह-धम्म-कम्म-पवियएण-वित्तु ।
सोमहु उवरोहें शिय विरोहें णट्टलसह गुणोह-णिहि । मेमडिय शाम तहो जाय भज्ज, सीनाहरणालंकिय सलज्ज ।
दीसह जाएप्पिणु पणउ करेप्पिणु उप्पाइय भव्वयणदिहि ॥६ बंधव-जण-मणः-संजणिय-सोक्ख,
तं सुणिवि पयंपिउ सिरिहरेण, हंसीव उहय-सुविसुद्ध पक्ख ।
जिण-कव्व-करण-विहियायरेण । तहो पढम पुत्तु जण वयण राम,
सम्वउ जं जंपिउ पुरउ मज्नु, हुड पारक्खि तसजीव गामु ।
पइ सम्भावें बुह मह असभु । कामिणि-माणस-विहवण-काम,
परसंति पुत्थु विबुहहं विवक्ख । राहरु सम्वत्थ पसिन था।
बहु कवड-कूट-पोसिय सवक्तु ।