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________________ ०१५) अनेकान्त [ वर्ष १४ तहो पुत्त वीरदासुवि गुणंगु, जो बारह भावण अणुचितह, पिय साधाही रूवं अणगु । अप्प-सरूव भिएणु तणु मण्णइ । तहो णंदणु णा उदयचंदु, दिउढा जसमुरिण पत्थि पवित्तुवि, पिय-माय-कुमुयवणणाइ इंदु। काराविउ हरिवंसु-चरितुवि । तुरियड एंदणु डूमामयत्तु पत्तापाहुलही पिय करमसिंह बुनु । जामहिं णहु सायरु चंदु दिवायरु ता णंदउ दिरढा हु कुलु । में विण्हुहि चरियउ कुरु-वंसह सहियउ काराविउ हय-पाव मलु एयाहिं मजिक णंदणु तइयो,दिउचंद साहुदि कि यरिणज्जा। इय हरिवंसपुराणं कुरुवंम-साहिट्टिए विबुह चित्ताणुदिउढाणामें सुद्धमणु सिहि सुदसणु इव जाणिज्जइ। रंजण-पिरिगुणकित्ति-मीसु मुणिजसकित्ति-विरइए साधुअरहंतुवि एकु जि ओझायइ, दिउढा णामांकए णेमिणाह-जुहिटिर-भीमाज्जुण-णिब्वाणववहार सुद्धबउ भ वह। गमण (तहा) गाकुल सहदेव सब्वट्ठसिद्धि-गमण-बण्ण्णो जो तियाल रयणत्तउ अंचइ, णाम तेरहमो सग्गो समत्तो ॥ संधि १३ ॥ चट णियोय रुइ कहव । मुच्चइ । (लिपि सं. १६४४ पंचायती मंदिर दिल्डा शास्त्र भंडारसे) चउविह संघहं दाणु कयायरु, २३-जिणरत्ति कहा (जिनरात्रिव्रत कथा) मंगल उत्तम सरण विगय-परु । जिणवरु थुइवि तिकालहि अंचइ, भट्टारक यशःकीर्ति आदिभाग :धणु ण गणेइ धम्म-धणु संचइ । जो परमेट्टि पंच बाराहइ, पणविवि सिरिमनहो अहमय-जुनहो वीरहो नासिय-पावमलु | पंचवि इंदिय-विसयई साहइ । णिच्चल मण भन्वहं विलिय-गब्वहं अक्वमि फुहु जिणजो मिच्छत्त पंच अवगएणइ, रत्ति फलु । पंचम गइ णिवासु मणि मण्णइ । परमेटिठ पंच पणविवि महंत, . जो अणुदिणु छक्कम्म णिवाहइ, नइलोय णमिय भव-भय कयंत । दाण-पूय-गुरु-भत्तिहिं साहइ । जिण-वय-विणिग्गय टिब्बवाणि. जो छज्जीव-निकायहं रक्खइ, पणमेवि सरासइ सहरवाणि । छह दब्यहं गुण-भाव णिरक्खइ । णिग्गंथ उहय-परिमुक्क-संग, सत्त-तच्च जो णिच्चाराहइ, पणवेवि मुणीसर जिय-अणंग। सत्त-वसण दूरेण पमायह। पणविवि णियगुरु पयडिय-पहार, सत्तवि दायारह गुणजुत्तउ, फलु अक्खमि जिणरत्तिहि जहाउ । इह परसत्त भयह जो चत्तउ । अन्तिमभाग:अट्ठ मूलगुण जो परिपालइ, गिमुणिवि गोयम भासिउ णिराउ, उत्तर गुण सयल वि संभालइ । वउ गहिउ झत्ति मणि करि विराउ । सहसण-अठंग-रयण-धरु, जिणु वंदिवि तह गोयमु गणेसु, मज्ज-दोसु परिवज्जण-तप्परु । णिय णयरु पत्त संणिउ णरेसु । गव एव पयवि पयत्थई बुज्मइ, दह-तिउण वरिसि विहारवि जिणेंदु, दह-विह धम्मग्गहण वि रुच्चा । पयडेवि धम्मु महियलि अणेंदु । एयारह पडिमउं जो पालइ, पावापुर वर मज्झिहि जिणेसु, बारह धयई णिच्च उज्जालह । वेदिण सह उझिवि मुत्तिईसु ।
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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