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अनेकान्त
[वणे १४
वाईहिं कुभदारण-मयंदु' । सज्जण-दुज्जय-भउ अवगरिणावि, ते णिय-णिय सहावनय दोरिणवि। कहुयउ-जिंबु महुरु इंगाली, अंबिलु बीयपूर-चिंचाली। सिंह सज्जण सुसहावें वच्छलु, दुज्जणु दुत्थु गहह कवियश बलु । खेउ दोसु सो मई मोकल्लिट, जह पिक्खा ता अच्छउ सलिखा।
अन्तिमभाग:
इहु हरिवंसु सत्थु मह प्रक्खिड, कुरुवंसहो समेत पड रक्खिड । पढमहि पडिउ वीर-जिर्णेदे, सेणियरायहो कुवलय-चंदें। गोयमेण पुणु किय सोहम्में, जंबूसामि विण्हु सयामें।
दिमित्त अवरज्जिय णा, गोबडणेण सु भयबाहें। एम परंपराए अणुलग्गड, आइरियहं मुहाउ भावग्गउ । सुणि संखेव सुतु अवहारिक, मुणि जसकित्ति महिहि विस्थारउ । पद्धडिया छंदें सुमणोहरु, भवियण-जण-मण-सवय-सुहंकह। करि वि पुण्णु भवियह वक्खाणित, दिदु मिच्छत मोह-अवमाणित। जो इउ चरिउ वि पाइ पढावइ, वक्खाणेप्पिणु भवियहं दावह । पुणु पुणु सहहेह समभावें, सो मुख्चा पुम्वक्किय-पावें। जो मायरह ति-सुद्धि करेलिया, सो सिउ लहह कम्म देप्पिनु । जोणु एम चित्तु णिसुणेसह सग्गु-मोक्खु सो सिग्घु खहेसह।
एउ पुराणु भषियहं प्रासासह, आयु-बुद्धि-बलु-रिद्धि पयासह । वइरिड मित्तत्तणु दरिसावइ, रज्जस्थित विरज्जु संपावइ । इट्ट समागमु लाइ सुहाइवि, देवदिति वह मच्छरु मुचिवि । गह साणुग्गह सयल पयहि, मिच्छाभाव खणद्ध तुहि । भावह सव्व जाहिं खम भावे, सुह-विलास परि होहि सदावें । पुत्त-कलित्तस्थियह सुपुत्तई, सन्गस्थियहं अणु हुज्जा। जो जं इच्छह सो तं पावइ, देसंतरि गउ णिय घरि श्रावइ । भवियण संबोहण णिमितें, एउ गथु किउ हिम्मल-चित्त ।
उ कवित्त कित्तहें धणलोहें, बउ कासुवरि पवयि मोहें । इंदउ रहिएउ हुउ संपुरणउ, रज्जे जलालखान कय उण्णउ । कम्मक्खय णिमित्तु हिरवेक्खें, विरहउ केवल धम्मह पक्खें। प्रत्थ-विरुदधु जं जि इह साहिउ, तं सुयदेवि खमड अवराहउ । यंदउ परवहणाय सपत्तउ, सहता उवणिय पय पालतउ। यंदउ जिणवर सासणु बहुगुणु, शंदड मुणिगणु तह साबय जणु । कानि कालि कालिविणि वरिसउ, गच्चड कामिणि गोमिणि विलसउ । पसरउ मंगल वजउ मद्दलु, यंदड दिउढासाहु गुणग्गलु । जावहि चंदु सूरु तारायशु, शंदड ताम गंथु रंजिय जणु । विक्कमरायहो ववगय कालई, महि इंदिय दुसुण्ण अंकालई । भादवि सिय एयारसि गुरुदिणे, हुड परिपुरबाड उमातहि इथे ।
यह पंकि भामेर प्रतिमें नहीं है, किन्तु पंचायती मंदिर देहली भंडारकी प्रतिमें पाई जाती है।