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जैन-ग्रंथ-प्रशस्ति-संग्रह
सिरि कट्ठसंघ माहुरहो गर्गाच्छ, पुग्वर-गण मुगिणवरबई विलछि । संजाय वोर जिगुस्कमेण, परिवाडिए जइवर णिहयएण । मिरि देव मणु तह विमलसेणु, नह धम्मसणु पुणु भावसणु। तहा पट्टि उवएणउ सहर्माकत्ति, प्रणवस्य भामय जए जासु कित्ति । तह विक वायउ मुरिण गुराकत्ति णामु, तव-एं जासु सराह खामु । तही णय बंधउ जकित्ति जाउ श्रायरिय गासिय दोसु-राउ । नणय बुद्धिा विरइयउ गंथु,
गावियह दाधिय-सुह-मग्ग-पंथु । (प्रनि आमेर और दहली पंचायती मंदिर शास्त्रभंडारसे, स. १६१२, सं. १६६।।
२२ हरिवंशपुराण ( भ. यश:कीर्ति ) रचनाकाल सं० १५०० आदिभागःपयडिय जयहमहो कुणयविहमहो भविय-कमल-परहपहो। पण विवि जिणयही मुणियापहो कह पयडाम हरिवंसहो।
जय विपह विसकिय विम पयाम, जय जिय-अजिय हय-कम्मपाप | जय मंभव भव-तरुवर-कुठार, जय अभिणंदण परिसेमिय कुणारि । जय मुमई मुमय पडिय-पय थ, जय पउमप्पह णामिय-कुतिन्थ । जय जय सुपाप हय-कम्मपाय, जय चंदवह ममि-भास-भाम। जय सुविहि सुविहि-पयडण-पवीण,
जय मीयल जिण वाणी-पवीण । प्रशस्ति का यह भाग प्रामेर प्रतिम नहीं है, प्रतिलेखकोंकी कृपासे टूट गया जान पड़ता है । किन्तु पंचायतो मंदिर दहला के शास्त्र-भंडारकी प्रतिमें मौजूद है, उसी पर से यहां दिया गया है।
जय संय-सेय किय-विगय-सेय, जय वासुपुज्ज भन-जनदि सेय । जय विमल विमल गुण-गण-महंत, जय संत दंत जिणवर अणंत । जय धम्म धम्म विस हरिय ताव, जय मंनि ममिय-संसार-भाव । जा कुथु सुरक्विय-सुहम-पाणि, जय अरिजिण चक्की मयल-णाणि । जय मल्लि णिहय-तिल्लोक-मल्ल, जय मुणिमुच्चय चूरिय-ति-सल्ल । जय णमि जिण विम-रह-चक्कणेमि, जय जहिय राय रायमइ णेमि । जय पाप असुर-रणम्महिय-माण,
जय वीर विहाखिय-णय-पमाण । घत्तापुणु विगय-सरीर गय-भवतीर तीस छह गुण सूरिवरा । उवज्झाय सुमाह हुय सिवलाहू पणविवि पयामि कह पवरा"
पुब्व पुराण अत्थु बह वित्थरु, काल-पहावे भवियह दुत्तरु । अयरवाल-कुल-कमल-दिणेसरु, दिउचंदु माहु भषिय-जण-मणहरु । नाम भज्ज बालुहिइ भणिज्जा, दाण गुणहिं लोप ह थुणिज्जइ । मच्च-सील-बाहरणहिं सोहिय, भारु मुगि वि कंचहि ण मोहिय । नाह पुत्त विरणाग क्यिाउ, दिउढाणामधेउ - हुजाण । तही उवरोहें मइ यहु पारदउ, णिमुणह भवियण-प्रत्य-विसुदउ । जामु मुम्नहं महार उ-विज्जइ, मग्गपवग्गहं सुह-संपज्जह । अइ महंतु पिक्ववि जणु मंकिड, ता हरिवंमु मइंमि प्रोहिकिड । मह-अत्य-संबंध-फुरंतउ, जिणमेण्हो मुनहो यह पयडिउ । तहु मीसु वि गुणभह वि मुणिंदु,