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साहित्य परिचय और समालोचन
१ जैन साहित्य और इतिहास-लेखक पं. नाथूरामजी इस लेख संग्रह में जहां लेखोंका संशोधन परिवर्द्धन प्रेमी, प्रकाशक यशोधर मोदी, विद्याधर मोदी, व्यवस्थापक कर सुरुचि पूर्ण बनाया गया है वहां अन्य नवीन लेखोंका संशोधित साहित्यमाला ठाकुर द्वार बम्बई २। पृष्ठ संख्या संकलन भी परिशिष्टके रूपमें दे दिया गया है। जिनमें से १३. मूल्य सजिल्द पतिका )रु.।
प्रथम लेखमें तत्त्वार्थसूत्र और श्वेताम्बरीय तत्त्वार्थ भाष्यको इस ग्रन्थमें जैन साहित्य और इतिहासका परिचय उमास्वातिकी स्वोपज्ञ कृति बतलाते हुए उन्हें यापनीय संघका कराया गया है। जिनमें अनेक ग्रन्थ और ग्रन्थकर्ताक विद्वान सूचित किया गया है। जो विचारणीय है। इस परिचयके साथ तीर्थ क्षेत्रोंका भी ऐतिहासिक परिचय दिया तरह उक्त संस्करण अपनी विशेषताओं के कारण महत्वपूर्ण गया है। श्रद्धय प्रेमीजी जैन समाजके ही नहीं किन्तु हिन्दी
हो गया है। इसके जिए प्रेमीजी धन्यवादके पात्र हैं। मेरी साहित्य-संसारके सुयोग्य लेखक और प्रकाशक हैं। आपने
हार्दिक कामना है कि वे शतवर्ष जीवी हों। ग्रन्थकी पाई अपने जीवन में साहित्यकी बहमूल्य सेवा की है जो चिरस्मर चित्ताकर्षक है । पाटकोंको इसे मंगाकर अवश्य पढ़ना चाहिए। बीय रहेगी। पाप समाजके उन व्यक्रियों में से हैं, जिन्होंने २ जनशासनका मर्म-लेखक पं. सुमेरचन्द्रजी समाजको चेतना दी और उसके विकास के लिए क्रान्तिको दिवाकर, बी. ए. एल. एल. बी०, प्रकाशक-शान्तिजन्म दिया। प्राजके प्रायः जैन विद्वानोंके श्राप मार्गदर्शक प्रकाशन, सिवनी (म.प्र.) पृष्ठसंख्या १०४ । हैं। आपने अपनी इस वृद्ध अवस्थामें भी अनवरत परिश्रम
प्रस्तुत पुस्तकमें लेखकके पांच लेखोंका संग्रह है। करके उन अन्यको पुनः व्यवस्थितकर प्रकाशित किया है। .
, शान्तिकी खोज २ धर्म और उसकी आवश्यकता यह संस्काण प्रथम संस्करणका ही संशोधित, परिवर्द्धित .
३ विश्वनिर्माता ४ विश्वविचार ५ और अहिंसा । आप एक और परिवर्तित रूप है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह
अच्छे वक्ता और सुलेखक हैं तथा समाजक निस्वार्थ-संवक। है कि इसमें अनावश्यक विस्तारको स्थान नहीं दिया गया,
पुस्तक गत सभी लेख पठनीय और मननीय हैं। लेखोंकी किन्तु उसके स्थान पर अन्य अनेक सामग्री यत्र-तत्र
भाषा सरल और मुहावरेदार है। इसके लिये लेखक महानुसंमिविष्ट कर दी गई है। लेखोंका चयन और संशोधन करते हुए प्रेमीजी ने इस बातका खास ध्यान रखा मालूम
भाव धन्यवादके पात्र हैं। होता है कि लेखों में चर्चित विषय स्पष्ट और संक्षिप्त हो
३-अगश्रा और वनपशेका फूल-मूल लेखक किन्तु व्यर्थकी कलेवर वृद्धि न हो। वे इसमें कहां तक
खलीफ जिब्रान । अनुवादक बाबू माई दयाल जैन । सफल हुप हैं इसका पाठक स्वयं निर्णय करेंगे। परन्तु
प्रकाशक सुबुद्धिनाथ जैन, राजहंस प्रकाशन सदर बाजार इससे प्रस्तुत सस्करणकी उपयोगिता बढ़ गई है। हां,
दिल्ली ६, पृष्ठसंख्या :६८ मूल्य ३) रुपया। लेखोंका संशोधन करते हुए प्रेमीजी ने अपनी मान्यता यह पुस्तक सीरियाके प्रसिद्ध लेखक और विद्वान विषयक पिछली बातोंको ज्यों का त्यों ही रहने दिया है। खलील जिब्रानकी ४४ कहानियाँका हिन्दी संस्करण है। जब कि उन मान्यताओंके प्रतिकूल कितनी ही प्रामाणिक जिसके अनुवादक बाबू, माईदयालजी जैन बी. ए. बी. सामग्री और युक्तियां प्रकाशमें लाई जा चुकी हैं जिन पर टी० हैं। कहानियां सुन्दर और चित्ताकर्षक हैं, अनुवादकी प्रेमीजीको विचार करना जरूरी था। किन्तु आपने उनकी भाषा सरल और मुहावरेदार है और उसे पढ़ते हुए मूल उपेक्षा कर दी है, जिससे पाठकोंको भ्रम या गलतफहमी जैसा ही आनन्द आता है। पुस्तकका कलेवर देखते हुए हो सकती है। यदि आप उन पर प्रामाणिक विचार मूल्य कुछ अधिक जान पड़ता है। इसके लिए अनुवादक उपस्थित करते तो वस्तुस्थितिका यथार्थ निर्णय कर और प्रकाशक बधाई के पात्र हैं। विवादास्पद उलझनें भी सुलझ जातीं।
-परमानन्द जैन