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________________ किरण ६] जैनग्रन्थ-प्रशस्तिसंग्रह [१८५ सो नेमिणाहु गुण-सील-जुत्तु । घेनाही तहो पिय णाम सिद्ध, असु तिथे जाउ म हयले पवित्त, गुरुदेव-भत्त परियण । वहं चरिउ अच्छरिय-जुत्तु । तहो यंदणु णंदणु हेमराउ, जिणधम्मोवरि जसु णिज्य-भाउ । तह पविवि सिहं णाण-समिद्ध पायरियह पाठयहं तहं। सुरवान मुमारख-तगई रज्ज, साहाह पपवेप्पिणु भाउ घरेप्पिणु बाएसरि जिण-वयण-रुहं ॥१ मंतितणे थिउ पिय भार कज्ज । पुणु रणवेप्पिणु जिणु वड्ढमाणु, अजनवि जस तित्थु पवड्ढमाणु । जें अरहंतु-देउ मणि भाविउ, जासु पहुसे, को विण सावित। चउ-कम्म इणि विहु परम-णाणि, जेण करावा, जिण चेयालड, पुरण हेउ चिर-रव-पक्खा जोयण-पमाण-जसु दिग्व-वाणि । धय-तोरण-कलसेहिं प्रलंकिड, जंजए पडिय पंचस्थिकाय, जसु गुरत्ति हरि जाणु वि संकिट । बदन्व तह व काजहो न काय | पर-तिय-बंधउ-पर उवयारिट, जीवाइ-पयासिय-सत्त-तच्च, जेण सम्वु जणु धम्महं तेरित । पुणु णव-पयत्थ-दह-धम्म-सच्च । संघ धुरंधरू-पयड मुणज्जा, सम्मत्तु वि पणविसह दोसु चत्त, सावय-धम्में णिच्च मणु रंजह । णिम्सकिय संवयाई जुत्त । सत्त वसण जे दूर वज्जिय, वरिउ विविहु सायार-धम्मु, सील-सयण-वित्ति वि भावज्जिय । प्रणयार-धम्मु णिहणियहु कम्मु । सत्त गुणहं दायारहं जुत्तउ, जसु समवसरणु जायण-पमाणु, णव-विह-दाण-विहिए उ पसउ । जे भणिउ तिलोय-पमाण-ठाणु । पणएं पणय-गुणें मठ भंजिउ, पुणु इंदभूइ-पमुहह णवधि, रयणत्तय-भावण-अणुरंजिउ । णिय-गुरुहु जसुज्जल गुण सरेवि । विणणं दागु देह जो पत्तहं, चिर कह हु करेप्पिणु परम भत्ति, जिणु तिकालु पुज्जइ समचित्तह। सुउ किंपि पयासमि णियय-सत्ति । तामु भज्ज-गुण-रयण-वसुधार, इय चिंतंतउ मणि जाम थक्कु, गंधो णाम णिय-गइ-जिय-सुरसरि । मुणि ताम परायउ साहु एक्कु । रूव चेलण-देवि पहाणय, इह जोणिपुरु बहु पुर-हिसार, जिणवर-भत्तिहें णं इंदाणिय। धण-धण्ण-सुवरण-गरहि फारु। अमिय-सरसन्वयणहि सच्चहि ठिय, सिरि-सर-वण-उववण-गिरि-विसालु, णउ तंबोलराय अणुरंजिय । गंभीर-परिह-उत्तुंग-सालु। उवरि करिल्लु सील जे धारिड, तहिं निवसह जालपु साहु भम्बु स्यणत्तय हार मणु पेरिउ । पिउजी भज्जालंकित अगम्वु । धम्म सवण-कुंडन जे धारिठ, सिरि-अयरवाल-वंसहि पहाणु, जिण-मुहा-मुद्दिय संचारित। सो संघहं वच्छलु-विगय-माणु । जिण-गेहम्मि गमण-णेउर-सरू, हो चंदणु बील्हा गय-पमाउ, तहो चंदण-कंकण सोहिय-कह। ............"सई जि पाउ । जिणवर-मत सरण कुंचड उरि, भावेष्पिगु हिवमक्ता दिछु, जिणवर-वाणु तिबउ किट शिय-सिरि । से पवि सम्माणिड किड वरिष्ट । एयहं पारवहंजा सोहिय,
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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