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________________ अनेकान्त [वर्ण १४ १८६] भार मुणिवि कंचणहिण मोहिय । तासु पुत्तु पल्हणु जाणिज्जा, चाएं. तक्य-गणहिं थुणिज्जा । बीयर सारंगु वि पिय भत्तड, कउला तहड वस िचत्तर। पल्हण यंदणु गुणणिलउ गोल्हण माय-पियर-मण-रंजणु । बील्हा साहुहें अवरु सुर लखा णामु जण-मण पाणंदणु॥३ दिउ राजही य भज्जहि समेड, कोलंतह हुउ संताण जोउ। णंदणु डूंगर तह उधरणक्खु, हंसराउ तयउ सुउ कमल-धक्छ । एक्कहि दिणि चिंतिउ हेमराय, जिणधम्म हीणु दिणु अहलु जाय । णिसुणिज्ज चिर पुरिसहं चरित्त, हरि-नेमिनाह-पंडवहं वित्तु । ता होइ मज्म जम्मु वि सलग्घु, णामइ-चिर संचिउ-पाउ-मिग्घु । इय चितिवि जिण-मंदिरहि पत्त, जस मुणि पणविवि अक्खिड सचित्तु । सोउं हच्छमि पंडवचरित्त, पयरहि सामिय जं जेम वित्त । विवरी सन्छु अणु वजरेइ, गरयावणि दुक्खहोणउ डरे । तं णिसुणिवि जंपिउ मुणिवरिंदु, चंगड पुच्छिउ बुइयणहं चंदु । पंडव-चरितु बह-गहणु जइवि, तुव उवरोहें हर्ष काम तइवि । तो तहो वयणे गुण-गण-महंतु, पारंभिउ सदस्थहं फुरंतु। सजण-दुज्जण-भउ परिहरेवि, णिय-णिय-सहाव-रत्तें वि दोवि । पत्ता-सज्जणु वि सहावु अकुडिब-भावु ससि-मेहुव उवयार-मई। पर-दोस-पयासिरु अवगुण-भासिरु दुज्जणु सप्पु व कुडिलाई॥ गुण कित्ति-सिस्म-मुणि-जसकित्ति-विरइए साधु-वीरहा-पुवाय मंति-हेमराज-णामंकिए कुरुवंस-गंगेयड-पिति-धएवणेयाम पढमो सग्गो ॥प्रथमसंधिः॥ चरमभाग :शंदउ सामगु सम्मइणाहें, गंदउ भवियण-कय-उच्छाहें। एंदउ परवइ पय पालंतर, शंदउ उदव-धम्मु वि रिसिहं किउ । यांदउ मुणिगण तउ पालंतउ, दुविह-धम्मु भवियणहं कहतउ । दाण-पूय-वय-विहि-पालंतउ, गोदड सावय-गुण-य-चत्तउ । कालं विणिय णिश्व परिसक्कर, कासवि धणु कणु देति या थक्कउ । पज्जा मंदलु गिज्जउ मंगलु, बच्चड णारीयणु रहसे कलु: णंदउ वील्हा पुत्त गुणवंतउ, हेमराउ-पिय-पुत्त महत्तउ । प्रत्थ-विरुद्ध बुहहिं सोहिम्वउ, धम्मत्थे बालसु नउ किचउ । विक्कमराय हो ववगय कालए, महि-सायर-गह-रिसि अंकालए। कत्तिय-सिय अट्टमि बुद्द बासर, हुउ परिपुरण, पदम नंदीसर । गहु मही-चंदु-सूरु-तारायण, सुर-गिरि उवहि ताउ सुह भायणु । जाता णंदड कलिलु हरंतउ, भविय-जयहिं विस्थारिज्जंतउ । पत्ता-इय चडविह संघह विहुणिय विग्यह हिएणासिय भव-जर-मरह। जसकित्ति-पयासणु अखलिय-सासणु पयडड संति सयंभु जिगु ॥२३॥ हय पंडव-पुराणे सयल-जण-मण-सवण-सुहवरे सिरिगुणकित्ति-सिस्स-मुणि-जसकित्ति-विरहए साधु-बीता-पुत्त हेमराज - णामंकिए •णेमिणाह-अधिटुर-भीमान्नुप-निम्बाब गवणं, नकुल-सहदेव-सम्वसिद्धि-बबदा-पंचम - सम्म गमण - पयासणो णाम पडतीसमो इमो सम्गो समतो संधि ३४॥ इस वपुराणे सयल-जय-मण-समय-सहयरे सिरि-
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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