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________________ अनेकान्त [वर्ष १४ गणि कुंदकुंद वच्छल गुण, हर यमु हामि किंपिवि सत्थु गंधु । को वएणण सक्कह इयर जणु । पत्ताकलिकाल जेण ससि लिहिउ णामु, जा चंद दिवायर सम्व विसायर, जा कुल पब्वय भूबनो। सह दिट्ठउ केवल एंत-धामु । ता एहु पयहहु हियइं चहुड, सरसहं देविहिं मुहि तिलयो। यामें समंतभद् वि मुणिंदु, इय-सिरि-चंदप्पह-चरिए महाकइ-जसकित्ति-विरहए भइ णिम्मलु णं पुरिणमहि चंदु । महाभम्व-सिद्धपाल-सवण-भूसणे सिरिचंदप्पह-सामि णिम्वाण जिउ रंजिउ राया रहकोडि, गमणो-णाम एयारहमो-संधी परिच्छेनो सम्मत्तो॥ जिण-थुत्ति-मित्ति मिवपिंडि फो.। (मेरे पैत्रिक-शास्त्र-भंडारसे) सं.-१३. यीहरिट विंबु चंदप्पहासु, पडव-पुराणु (पांडव-पुराण) (भाषा अपभ्रंश) उज्जोयंतउ फुडु दस दिसासु । कर्ता-भ० यशःकीर्ति. रचना-काल सं १४६७ अकलंकु णाई पच्चक्षु णाणु, मादिभाग:जें तारा-देविहि दलिउ-माणु । बोह-सु-सर-धयरटुहो गय-धय-र?हो सिरिजलाम सोरटुहो। उज्जालिउ सासणु जय पसिद्ध, पणविवि कहमि जिणि?हो गुयबल-विट्ठहो कह पंडव-धयरटुहो। णिद्धाडिय घहिलय सयल-बुद्धि । जो भब्व सरय-बोहण-दिणिदु, सिरि-देवणंदि मुणिबहु पहाउ, हरिवंस-पवण-पह णिसियरिंदु । जसु गाम-गहणि मासेउ पाउ । सन्वंग सलक्खणु बद्धसंसु, जसु पुज्जिय अंबाएई पाय, णिय-कम्म-णियक्खाणण विसु । संभरण मित्ति तक्खणि ण पाय | भव-भीयह मत्तहं जलिय इंसु, जिणसेण सिद्धसेण वि भयत, वे पक्ख समुजलु णाइ इंसु । परवाइ-इप्प-भंजण-कयंत । जेसि वर-जम्मि पढिउ अहिंसु, इय पमुहहं जहिं वाणी-विलासु, जो सिद्धि-मरालिहिं परमहंसु । तहि प्रम्हह कह होई पयासु । जें णाणे पवियाणिउ ण हंसु, जो तिस्थणाहु वज्जरिय हेसु । जहि थुबह फीसरु, बहु जीहाहरु, मह सहसखुतिरिक्वा । जण-चाय-विसा-सारंग-रिसु, सहि पर जिण-चरणइ, सिवसुहकरणइ, किह संथ्णइ समिक्खह जम्मणे हरि-किय सारंग-वरिसु । णिय-कतिए जिउ सारंगु सज्जु, अन्तिमभाग: सारंगेण जि मेहिलउ अवज्जु । गुज्जर-देसहं उम्मन गामु, गिह-मोहु चह वि सारंगु जाउ, तहिं छहा-सुउ हुउ दोण णामु । सारंगु गयणे दिएणउ न राउ। सिद्धउ तहो णंदणु भब्व-बंधु, सारंगें पणविय णिच्च-पाउ, जिण-धम्म-भारि में दिएणु खंधु । सारंग पाणि कर तुलिउ राउ। तहु सुर जिवड बहुदेव भन्दु, चउतीसातिसयहिं सोहमाणु, जे धम्म कज्जि विव कलिउ दम्बु । वसु-पारिहेर-सिय-चत्त-माणु। तहु लहु जायउ सिरि-कुमरसिंह, चउ-घण-चमरेहि विजिज्जमाय, कलिकाल-करिदंहो हणण-सीहु । जसु बोयालोय पमाणु णाणु । तहो सुर संजायउ सिद्धपालु, जे पयडिड बावीसमउ तित्यु, जिण-पुज्ज-दाण-गुणगण-रमालु। जसु अणुदिणु पणवइ सुरहं सत्थु । तहो उवरेहिं इह किया गंधु, समुद-विजय सिबएवीहे पुत्तु,
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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