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________________ प्रद्युम्न चरित्रका रचनाकाल व रचियता (लेखक-श्री अगरचन्द, नाहटा) हिन्दी साहित्यके प्राचीन अन्य रचना-कालके उल्लेख संमत चउदसइ इग्यार, वाले बहुत कम मिलते हैं। इसलिए उनके रचनाकाल के उपरी अधिक भइ एग्यार ॥११॥ निर्णयमें अनुमानले ही काम लिया जाता है, जो असंदिग्ध भादवसुदी नवमी जे सार, नहीं कहा जा सकता। कुछ रचनामोंमें संबतोंका उल्लेख स्वाति नखित्र शनीचर वार। रहता है पर कई कारणोंसे वह मान्य करना कठिन होता अगरवालकी मेरी जाति, है। वीसलदे रास आदि कई प्राचीन रचनाओंकी प्रतियों में भगरोवे मेरी उत्पत्ति। रचनाकालके सूचक विभिन प्रकारके पथ मिलते हैं। कई पुव्वरितु मैं सुण्यो पुराण, प्रन्थोंकी कुछ प्रतियोंमें रचना काल-सूचक पद्य होते हैं, उपनउ भाउ मइकियो बखान । कुछ प्रतियोंमें नहीं। इस तरहकी विविध संदिग्धताओं के जइ पुहमि इकचित कियो, कारण उन अन्योंके रचना-कालका निर्णय करना कठिन हो साइ समाइ विलियव (1) ॥११॥ जाता है। यहां एक ऐसी ही प्राचीन रचनाकी विविध चउपइ बन्ध मह कियउ विचित्त, प्रतियोंमें, रचनाकाल-सूचक पद्यके पाठमें जो महत्त्वपूर्ण पाठ भवीय लोक पढ़उ दे चित्त । भेद मिलता है उसका परिचय दिया जा रहा है। हुँ मति-हीणु न जाणउ केट, इस प्राचीन हिन्दी रचनाका 'परदमणचरित, प्रद्युम्न अखर मात न जाणव हेउ । चरित्र, परदवणु चउपई, परदवण चरितं चउपहीबंध ऐसे कई सधनु जननि गुगावइ उद्धरिउ, नाम विविध प्रतियोंमें मिलते है। इसके रचनाकाल-सूचक साहु मइ राज गढह अवतरित ॥ पोंमें संवत् १३.१,१४११ और ११११ ये तीन तरहके एलची नयरी वसंतव जाणि, पाठ मिले हैं और पथ-संख्यामें भी कुछ न्यूनाधिकता है। इस सुणियउ चरितु हम करियउ बखाणि ॥ अन्यकी अभी तक ६-७ प्रतियोंका पता चला है, जिनमें चार दूसरी प्रति ३४ पत्रोंकी है और पद्य संख्या ६८२ है। मूल प्रतियां और दोका विवरण मेरे सामने है। यहां उन भिक्ष अक्षरों में लिखित प्रशस्ति संवत् १६०५ पासोजवदी। प्रतियोंका परिचय देकर प्रन्धके रचना-काल आदि पाठ-भेदों- मंगलवारकी है। इसमें उपरोक्त प्रसंग वाले पद्य इस का विवरण प्रस्तुत लेखमें दिया जायगा। प्रकार हैंजयपुरके श्री कस्तूरचन्द्रजी काशलीवालसे मुझे इस संवतु चउदहस हुइ गए, अन्यकी दो प्रतियां मिली हैं, जिनमें पहली ३२ पत्रोंकी है ऊपर अधिक ग्यारह भये। पर उसके बीचके २३ से २८ तकके पत्र नहीं हैं। इस प्रतिमें भादव दिन पंचइ सो सारु, लेखन-समय नहीं दिया गया है पर मुझे इसका पाठ अधिक स्वाति नक्षत्र शनिश्चर वारु॥ उपयुक्त जगा और शायद यह प्रति सबसे पुरानी भी हो। अगरवालकी मेरी जाति, इस प्रतिमें ७०६ पद्य हैं। यद्यपि अन्तमें पाक ७१६ का पुर अगरोए मुहि उतपाति, दिया है पर ००० के बाद ००१ के स्थान पर ७१० लिखकर सुधणु जणणि गुणवइ उर धरिउ, उसी क्रमसे मागे संख्या दे दी है अतः १ की संख्या बढ़ती सा महराज गरह अवतरिउ, है। ग्रन्थके प्रारम्भमें रचना काल-सूचक एक पथ मिलता एरछ नगर वसते जानि, है और अन्तमें कविका परिचायक पद्य मिलता है। वे दोनों सुणउ चरित मई रचिउ पुराण ॥ क्रमश: इस प्रकार है: तीसरी प्रति सिंधिया ओरियन्टल इन्स्टीव्य र, उज्जैनके सरस कथा रस उपजइ घणउ, संग्रहकी है। इस प्रतिकी सर्वप्रथम सूचना लश्कर जाने पर निसरणउ चरित्र पज्जवरण तणउ। डा. क्राउजे (सुभद्रादेवी) से मिलने पर उनके पास जो
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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