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________________ किरण ६] खान-पानादिका प्रभाव [१६६ प्रभाव मनुष्यके ऊपर पड़ा करता है। इस विषयमें इसी मुझे रातभर पटवारियांक सम्बन्ध स्वप्न आते रहे और दिसम्बर मासके 'कल्याण' में प्रकाशित उदासीन सन्त भी जमाबंदीकी बातें, तो कभी हिसाब-किताबकी बातें, अनन्त श्री स्वामी रमेशचन्द्रजी महाराजके अनुभव ज्ञातन्य जो पटवारी किया करते हैं, दिखलायी पड़ती रहीं। प्रातःकाल हैं। जिन्हें कल्याणसे यहां साभार उद्धृत किया जाता है- जागने पर मैं उस श्राश्रमके प्रबन्धकके पास गया और मैंने दूसरे के वस्त्रों का प्रभाव उनसे पूछा कि आपके इस स्थान पर अबसे पहले कौन "आजकल लोग कहते हैं कि चाहे जिसका खा लो, भाकर रहते थे। प्रबन्धकजीने बताया कि 'महाराज, इस पी लो और चाहे जिसका वस्त्र पहन लो, कोई हानि नहीं स्थान पर ५-६ दिनों तक बराबर बहुतले पटवारी पाकर है । पर ऐसी बात नहीं है मेरे जीवनकी एक घटना है। रहे थे और वे यहां पर जमाबंदीका काम करते रहे थे। मैं सन् १६४६ की बात है कि मैं एक बार लायलपुर, पंजाबमें समझ गया कि बस, उन्हीं पटवायिोंके संस्कार इस कमरेमें गया हुआ था। वहां मैं एक रात्रिको श्री सनातनधर्मसभाक रह गये हैं, जो मुझे रात भर सताते रहे। जहां मनकी स्थान पर जाकर सोया। मैंने वहांके चपरासीको बुलाकर सूक्ष्मता थी, वहीं उनका प्रभाव भी प्रकट हुआ। अतः उससे कहा कि मुझे रात्रिको यहीं पर सोना है, इसलिए हमारा मन चाहे जिस जगह बैठकर शुद्ध और स्थिर रह मुझे कोई बिलकुल ही नया विस्तरा लाकर दो । चपरासीने सकेगा, यह सोचना गलत है। सोच-समझकर और पवित्र वातावरण वाले स्थान में रहकर भजन-पूजन करनेसे ही मन मुझे एक बिलकुल ही नया बिस्तर। लाकर दे दिया। मैं उस नये विस्तरेको बिछाकर सो गया । सोनेके पश्चात् सारी लगेगा और लाम हो सकंगा। जहां मांसाहारी रहते हों, रात मुझे स्मशानघाटके स्वप्न आते रहे और मुर्दे पाते तथा जहां मांस-मछली, अंडे मुर्गे खाये जाते हों, और जहां गो. जलते दिखलायी पड़ते रहे । प्रातःकाल उठने पर मुझे बड़ी भक्षक लोग रहते हों, तथा जहां अश्लील गन्दे गाने गाये चिन्ता हुई कि अाज ऐसे बुरे स्मशानघाटके स्वप्न क्यों मुझे जाते हों, व्यभिचार होता हो, वहाँ भला मन कैसे शुद्ध रह दिखलाई पड़े। मैंने तुरन्त ही उस चपरासीको अपने पाप सकता है और कैस भजन बन सकता है।" बुलाकर उसे पूछा-भाई ! बताओ, तुम मेरे सोनेके लिए (कल्याण, दिसम्बर १९५६) यह विस्तरा कहांसे लाये थे? उत्तरमें चपरासीने कहा कि उपरके उद्धरणसे पाटक महजमें ही जान सकेंगे कि 'महाराज! एक सेठजीकी माता मर गयीं थी, उठ सेठ जीने खाने पीनेकी चीजोंक समान प्रोदने पहननेके वस्त्रोंका और अपनी मरी हुई माताके निमित्त यह नया विस्तरा दानमें स्थानका भी असर हम पर पड़ता है। मनुष्यके जैसे पवित्र दिया था. वहो मैंने आपको लाकर दे दिया। मैं समझ गया भाव तीर्थ क्षेत्रों पर होते हैं, वैसे अन्यत्र नहीं। इसका कि दान चूकि प्रेतामाके निमित्त दिया गया था, इसलिए __ कारण यह है कि जिस भूमि पर रह कर साधु-सन्तों एवं उस दान किये हुए विस्तरमें भी प्रेत-भावना प्रवेश कर गयी तीर्थकरादि महापुरुषोंने विश्वक कल्याणकी भावना की है, और इसीसे मुझे रात भर स्मशानघाटकी बान दिग्बलाई उनके पवित्र भावोंका अमर वहाँक पार्थिव परमाणुषों और पड़ती रहीं। इससे यह सिद्ध होता है कि जो कर्म जिस वातावरण पर पड़ता है । उस स्थान पर जब कोई दूसरा भावनासे किये जाते हैं, उसके संस्कार उसमें जाग्रत रहते व्यक्ति पहुँचता है, तब उसके मन पर उसका असर पड़ता हैं। इसलिए सबके हाथका खाना-पीना और सबके वस्त्रोंको है और उसकी बुरी और मक्लेश-पूर्ण मनोवृत्ति बदलने काममें लेना कदापि उचित नहीं है।" लगती है । इसके विपरीत जिम स्थान पर लोग निरन्तर जुआ खेलते रहते हैं, जहां वेश्याएँ और व्यभिचारिणी स्थान या वातावरणका प्रभाव स्त्रियां दुराचार करती रहती हैं. वहांका वातावरण भी 'वातावरण और स्थानका भी मन पर बड़ा प्रभाव दूषित हो जाता है, और वहां जाने पर निर्मल मनोवृत्ति पढ़ता है। जिस स्थानपर जैसा काम किया जाता है, वहां वाले भी मनुष्योंके मन मलिन होने लगते हैं। यही पर वैसा ही वातावरण उत्पन्न हो जाता है । इसका अपना कारण है कि साधक एवं पाराधकको द्रव्य, क्षेत्र, काल अनुभव इस प्रकार है-में एक बार ऋषिकेश गया था और और भाव की शुद्धि सर्वप्रथम मावश्यक बतलाई वहां एक रातको एक आश्रममें जाकर ठहरा। सो जाने पर गई है।
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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