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________________ प्रद्युम्न चरित्रका रचनाकाल व रचियता उपरोक्त इन्स्टीव्य टके जैन प्रतियोंकी विवरणात्मक सूची है प्रचारिणी सभासे मंगवाया गया। उसमें अन्धकी रचना उससे मिली । मैंने बीकानेर भाकर उसका विवरण उज्जैनसे और रचियता सम्बन्धी पच इस प्रकार है :मंगाया । इस प्रतिमें रचनाकाल सम्बत् ११३॥होनेसे संवत् चउदस दुइ गई, इसको मंगाके देखना बावश्यक हो गया। उज्जैनवाले वैसे उपरि अधिक एग्यारह लई। प्रति भेजनेको राजी नहीं हुए तो अंतमें भंडारकर मोरिय- भादव वदो पंचम तिथि सारु, न्टल इन्स्टीव्य र पूनाकी मार्फत मंगवाई गई। इस प्रतिकी स्वाति नखित्त शनिश्चर वारू ॥७०१॥ एक विशेषता उल्लेखनीय है कि अभी तक इस ग्रन्थकी अगरवालकी मेरी जाति, जितनी भी प्रतियाँ ज्ञात है सब दिगम्बर मन्दिरोंमें व पुनि ागरोबइ मोहि उत्पत्ति ॥ ७०२॥ उन्हींकी लिखित है पर उज्जैन वाली प्रति श्वेताम्बर यतिकी सुद्धि जननि गुणवह उरि धरउ, लिखी हुई और सम्भवतः श्वेताम्बर यतिके किसी भंसारसे साहु महत्तउ घरि अवतरित ॥ ७०४॥ ही इन्स्टीव्य टमें पहुंची है। संवत् १६३५ पाश्विन वदी एरिच नयरि वसंतस जाणि ११ रविवारको राजगच्छके उपाध्याय विनयसुन्दरके शिष्य सुणि चरित्त मह करिउ बखाण ।। ७०५ ।। भकिरलके शिष्य नयरत्नने इसे अपने लिए लिखी। इसमें इस प्रतिमें कविके नामवावा जो पच उज्जैनकी प्रतिमें पद्य-संख्या है, पाठमें भी काफी अंतर है और अन्यके १५वीं संख्याका है वह इसमें सर्व प्रथम है। माममें चरित्रके स्थान पर चउपई लिखा मिलता है। जो अठदल कंवल सरोवर बास, काश्मीर पुर लियो निवास ऐसी अधिकांश रचनाओंकी संज्ञा है, छन्द भी चौपई है। हंसि चढ्यो कर पुस्तक लेइ कवि साधारु सारद पणमेइ रचनाकाल और प्रन्थकार-सम्बन्धी पद्य इस प्रकार हैं:- पदमावति झुड करि लेह, ज्वालामुखि व केसर देह, समत् पंचसाहई गया, ग्यारहोत्तरा भी असतह भया। अंबाहण रोहिणी जो सार, सासं देवा नमें 'साधार'॥ गताथ साह, स्वातिनक्षत्र शनिश्चरवार इसमें कविका नाम होने पर भी विवरण-लेखक उसे अगरवालकी मेर। जाति, पुरी आगरोवइ मां उत्पत्ति। पकड़ नहीं पाया और उसकी जाति अगरवालको ही कविका धनु जननि गभुउरी धरयो,समहराइकरिया अवतरीयो नाम मान लिया। आगरोवइको कविने अपनी जातिका येरस नगर बसंतउ जाणि, सुणहु चरित में किया बखाणु उत्पत्ति-स्थान बतलाया है उसे ठीक नहीं समझने के कारण जयपुरसे प्राप्त दोनों प्रतियोंके पाधारसे कविका नाम कविको प्रागरेका निवासी लिख दिया गया है । जब मैं जयनिर्णीत नहीं हो सका था। सुघनु शब्द अवश्य कुछ विचा- पुर गया तब कस्तूरचंद्र काशलीवालने प्रति दिखलाते हुए रणीय लगता था, पर प्रसंगसे उसका दूसरा अर्थ भी संभव कहा कि कविके नामका पता नहीं चलता । पर वह बागरेका होनेसे वह कविनाम ही है यह निश्चय नहीं हो सका। अगरवाल है तब मैंने आगरोवह शब्दको ठीक मिलाकर इस उज्जैनवाली प्रतिमें दो अन्य पथ और भी हैं जिनमें वह अगरवालोंका उत्पत्ति-स्थान अग्रोहे नगरका सूचक हैकविका नाम स्पष्ट रूपसे साधारु पाया जाता है। यथा- बतलाया। इसी प्रन्धकी दो अन्य प्रतियां ऐसी भी मिली भठदल कवल सरोवर वासु, काश्मीरपुरी लियो निवासु हैं जिनमें रचनाकाल १३॥ दिया है। इनमेंसे एक प्रति हंस चदि करि पुस्तक लेइ, कवि साधारु सारदामेह रोवांके मोहल्ला कटराके दिगम्बर जैन मंदिर में है जिसकी पदूमावती इंदु करि लेइ, उवालामुखी सकेसरी देह। पत्र-संख्या ४१ है और पद्य-संख्या ०२०। इसमें 'गुणसागर अभवउ हिनउ खंडि जर सारु, शासन देवि कथेसाधारु यह कियो बखानि' वाक्य आता हे उससे विवरण-लेखकने अतः इस प्रतिका महत्त्व और भी बढ़ जाता है। पत्र कविका नाम गुणसागर मान लिया है। वास्तवमें संवत् संख्या २४ है। १११के उल्लेख वाली जो दो प्रतियां मिली है उसे पीने चौथी प्रति जिसका सर्वप्रथम पता चला था वह बारा- से किसी अन्यकारने भाषाका भी रद्दोबदल करके तैयार की बंकीके जैनमन्दिरकी है। इसकी पत्र-संख्या १२और बेखन- है इसलिए उसने अपने संकलित पाठवाले अन्यको पुराना समय १७६५ कार्तिक सुदी १५ है। दिल्ली में ऋषिधर्माने सिद्ध करनेके लिये 'चउदहसै' के स्थानमें 'तेरहस' लिख दिया इसे लिखा है । पप-संख्या...है। इसका विवरण नागरी है और रचनाकालका सूचक पच बो अन्य प्रतियों के प्रार
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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