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________________ १६६] अनेकान्त [वर्ष १४ कभी भी धनकी इच्छा मत करो । धर्मका मार्ग पकड़ो। इस राजमाताकी प्रार्थना पर पाश्रमकी प्रमुखाने कहा, संसारमें हम गरीबी और दुःख देखते हैं। एक स्त्री इतनी तपस्या-पूर्वक आत्म-संयम अत्यन्त कठिन कार्य है। गरीब होती है कि वह अपनी लज्जा-मात्र निवारण-योग्य तपस्याके बिना धार्मिक जीवन द्वारा भी इस लोकमें सुख छोटा सा जीर्ण वस्त्र पाती है। वह अपने एक हाथसे तथा सन्मान मिलेगा और परलोकमें स्वर्गका सुख प्राप्त कपको पकड़ कर लज्जाकी रक्षा करती है और दूसरे होगा। इसलिए आप सभी महिलाओंको तपस्याका विचार हाथको भोजमार्थ पकानेके लिये कुछ पत्तोंको तोड़नेके हेतु बदलना चाहिए। उठाती है । ऐसी स्थितिमें वह अपने दुर्भाग्यको कोसती है, इन चेतावनीक वाक्योंको सुन कर राजमाताने कहाजिसके कारण उसकी ऐसी लज्जापूर्ण दुखद अवस्था हुई 'पूज्य माता जी! हम आपके धर्मोपदेशको पीछे सुनेंगी, है। बन्धु ! जीवन में ऐसी बातोंको देखते हुए धन-संग्रहकी अभी तो हमें साध्वीकी दीक्षा दीजिये। मोर उन्मुखता न धारण करो। तपस्या तथा आत्म-संयममें इस प्रकार साग्रह प्रार्थना किये जाने पर पाश्रमकी लगो । सुन्दर तथा सुडोल शरीर वाला युवक, जिसे देख साध्वियोंने दीक्षा समारम्भके लिये आवश्यक कार्य करना सुन्दर स्त्रियोंका मन हर्षित होता था, वृद्ध होने पर मुकी प्रारम्भ कर दिया। वह स्थान पत्र-पुष्प द्वारा अलंकृत किया कमर वाला होकर लकड़ीके सहारे खड़ा हो पाता है। इस 1 पाता है । इस गया, दीपक जलाये गये, श्रामन सुन्दरता पूर्वक सजाया तरह तुम जानते हो कि जवानी जीवन में एक अस्थिर गया । राजमाताके चरणोंको दूधसे प्रक्षालित किया गया। वस्तु है।' राजमाताने अपने पुत्र जीवकके कल्याणक उनकी रेशमकी बनी राजकीय पोशाक दूर की गई। उन्होंने निमित्त यह सदाचारका उपदेश दिया। सफेद सूती कपड़ा पहिना । श्राध्यात्मिक विकासके नियमाराजमाताके शब्दोंको ध्यानसे सुन कर सुनन्दा माताने नसार अन्य महिलायोंकी भी ऐसी ही विधि की गयी। भी उसे अपने लिये उपयोगी अनुभव किया। उसने उनके आभूषणों और मालाओंको अलग कर दिया जीवकसे कहा, 'धार्मिक नरेन्द्र ! राजमाताके संसार-त्याग गया। उन्होंने सादा सफेद सती वस्त्र धारण किया । का निश्चय, भले ही अच्छा हो या बुरा, मुझे पूर्ण रूपसे राजमाता, सुनन्दा तथा साथकी महिलायोंने पूर्वकी ओर मान्य है। मैंने उनके अनुकरण करनेका निश्चय किया है।' मुम्ब कर श्रासन ग्रहण किया। इसके पश्चात् उनके सुन्दर माता सुनन्दाके ये शब्द सुन कर जीवक अवाक् खड वस्त्र प्राश्रमकी साध्वियोंने काट डाले और एक पात्रमें रहे। वे क्या कहें यह समझमें नहीं पाता था। रग्ब कर वे उन्हें बाहर ले गई। दीक्षा संस्कारके पश्चात् वे पुनः जीवंधरको छोड़ कर दोनों माताए तपोवनकी महिलाएं पंखोंसे रहित मयूरीके समान लगती थीं। इस पोर रवाना हो गई । राजभवनकी अन्य महिलाएं अश्रु प्रकार श्राश्रममें रह कर उन्होंने साध्वीका जीवन स्वीकार भरे नेत्रोंसे असहाय सरीखी खड़ी रहीं। सारा नगर शोकमें किया। भगवान् सर्वज्ञ-प्रणीत जिनागममें उनकी दृढ़ श्रद्धा क्रन्दन कर रहा था। जिस दिन विजया महारानी मयूर- धी। वे सब आत्म-विशुद्धिके कार्यमें गंभीरतापूर्वक खग यंत्र पर बैठ कर नगरसे बाहर गई थीं, उस दिन लोग गई। उनकी आत्मामें आध्यात्मिक गुण उत्पन्न हो इतना नहीं रोये थे। भाजके रोनेको आवाज तूफानके समय गए । अनेक प्रात्मगुणोंके कारण उनका हाइ-मांसहोने वाली समुद्रकी गर्जनाके समान थी। राजमाताकी निर्मित देह रत्न आदि बहमूल्य पाषाणोंसे पूर्ण सोनेके पात्र पालकीके पीछे-पीछे एक हजार महिलाओंकी पालकियां समान मनोहर लगता था। वे साध्वियां बाह्य जगत्का और थीं। वे सब उस पुण्याश्रममें पहुंची, जहां प्रमुख पुण्याश्रमम पहुचा, जहा प्रमुख तनिक भी ध्यान न कर आश्रममें रहती थीं। लोगोंकी संघ-नायिका पूजनीया साप्पी पमा विराजमान थीं। प्रशंसा अथवा निंदाका उन पर कोई असर नहीं होता था। राजमाता, साथकी सहस्र महिलाओंके साथ अपनी- शास्त्रोंके स्वाध्यायमें उन्हें बहुत आनन्द प्राता था । वे अपनी पालकियोंसे नीचे उतर कर, आश्रम में पहुंचीं। उनने शंका तथा भ्रमसे मुक्त थीं। जिन भगवानकी वाणीमें उनकी संघ नायिका माध्वी पत्र को नमस्कार किया और प्रार्थना श्रद्धा प्रकाशस्तंभके समान सारे संसारमें प्रकाशमान हो की कि उनको तथा साथको स्त्रियोंको आश्रममें स्थान दें हो रही थी। एवं संसार-सिन्धुके पार जाममें उनका मार्ग-प्रदर्शन करें। एक दिन राजा अपनी रानियोंके साथ पूजाके लिये
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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