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________________ १५४] अनेकान्त [वष १४ ११) बाहुबलिदेव-चरिउ (बाहुबलि-चरित) जिण-समय-पसिहं धम्म-सदिहं बोहणत्थु महसावयह। कवि धनपाल । रचना काल ११५४ इयरह महलोयह पयडिय-मोह परिसेसिब-हिसावय। आदिमाग:मह अमुमते अक्सर-विसेसु, मिरिरिसहणाह-जिण-पय-जुयलु, पणविवि णासिब-कजि-मलु । न मुणमि पबंधु न छंद-लेसु । पुणु पढम-कामएवहो चरिउ, सहावमदु ण विहत्ति अत्थु, श्राहासमि कयमंगलु । धिट्टत्तणेग्म मह रहट सत्थु । xxx दुज्जणु सज्जणु वि सहावरोवि, माय-वाय-वयणं दरिसंती, महु मुक्खहो दोसु मलेउ कोवि। दुविह-पमाण-ममुज्जल-णेत्ती। पद्धडियाबंधे सुप्पसरणु, पवयण-वयण-रमण-गिर-कोमल, अवगम अत्यु भग्ववणु तएणु । सह-समूह-दसण-सोहामन । होणक्खरु मुणेवि इयरु सत्थु, सालंकार-अहर-पुरयावा, संथवट परणु कज्जेवि अपत्थु । पय-समास-भालुव-नलु भावइ । अहियक्खरूमत्ता-विहाउ, गण चउ-णासा-वंसु-परिटिउ, सं पुसउ मुणि वि जणियाणु राउ। दो-उवभोय-सवणजुउ-संठिउ । सय दुरिय छ उत्तर प्रत्थसार, विग्गह-तण-रेहागलि-कंदल, पद्धडिय-छंद माया-पवार। णय-जुय-उस्य-कढिण पच्छथलि । बुझहु ति-सहस सय चारि गंथ , मह वायरणुउ अरु जड दुग्गमु, बत्तीसक्खर बिरु तिमिर-मंथ। प्रस्थ-हीर-गाहि-सुमणो रमु । चदु-दुहय समा पिहु पितृ पमाण, दुविह-छंद-भुव-जुन-जग-जाणहि, सावय-मण-बोहण सुद्ध-आण । जिणमय सुत्तसार माहरणहि । मेरह सब तेरह उत्तरान, तय-सिद्धत-तिवलि-सोहालउ, पग्गिलिक विक्कमाइच कास कह थलु तुंगुणियंबु विसानउ । मवेय रइह सम्बई ममक्ख, वर-विरणाण-कलासकरंगुलि, कत्तिय-मामम्मि असेय-पक्व । ललियर करई-कसण-रोमालि । सत्तमि दिण गुरूवारे समाए, अंग-पुब्ब उरू-णिभंतिए, भट्टमि रिक्खे साहिज्ज-जोए। पय-विहत्ति-लीलई पय-दितिए । नवमास यंते गयडत्यु, विमल-महागुण-णह-मा-मासुर, सम्मत्तड कम कम एहु सत्थु । णव-रस-गहिर-वीण तंतीसर। पत्ता हिम्मल-जस-भूसिय-संयंवर, विस्थकर वयगुरुभव, विहुशिय-दुम्भवजण-वल्लह परमेसरि। पविमल-पंचयाण सुहकय कर। कम्ब-करण मइ पाषण, सुइसरिदावण,महुउवण उ वाणुसरि। पता इय अणुपय-यण-पईव-पत्थे महासावयाण सुपसरण- मह उप्परि होड पसरण मण मोह-पखल-णिण्णासणि । परम तेवण्ण-किरिय-पयडय-समस्थे मुगुण सिरि-माहुल- तियरण सुद्धिय तहणविचिपय-जिय मुह-कमल णिवासिणि॥२ सुव-लक्षण-विरइए भग्व-सिरि-यहादरच-याकिए गुज्जरदेस मज्झि यय-वहण, सावयार-विहि-समत्तयो याम अटुमो परिच्छेउ समतोमा वसइ विउलु पल्हणपुरु पहणु। 'प्रति सं० १५३५, वीसलएउभाउ-पय-पालउ, (जैनसिद्धान्त भास्कर भाग , ३ से) कुवनय मंडणु सयलुव मालउ ।
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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