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किरण ५]
जैनग्रन्थ-प्रशस्तिसंग्रह
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रएकंतुणो (कण्णणो) दाणिणो सुकित्तो, जहासरण-भब्वस्स सम्मत्त वित्ती
पत्त
तासु सुलक्षण विहिय कुलक्कम अणुगामिर्माण तह जणमडिया तहि हुव वेणंदणण यणाणंदण हरिदेउ जि दिउराउ हिया ।।
पदाहियारि संपुण्ण-गत्तु, वियसिय-सरोय-संकास-वत्तु ।
आयुक्खए सो सिरि रयणवालु, गउ सग्गालए गुण-गण-विसालु । तहो पच्छए हुउ सिवएव साहु, पिउ-पट्टि बहट्टड गलिय-गाहु । अहमल्ल-राय-कर-विहिय-तिलउ, महयणहं महिउ गुण-गरुव-णिलउ । सो साहु पइटिउ-जणिय-सेउ,
सिवदेउ साहु कुल-स-केट । घत्ताजो कण्हडु पुष्वुत्तउ पुण्ण पउत्तड महिं माल विक्खायड आहवमल्ल-णरिदहु मणसा एंबहु मंतत्तण पइभायउ ॥८॥
पिया तस्य सल्लक्खणा लक्खणड्ढा, गुरूणं पए भत्ति काउं वियड्दा। स-भत्तार-पायारविंदाणुगामी, घरारंभ-वावार-संपुण्ण-कामी । सुहायार-चारित्त-चीरंक-जुत्ता, सुचेणयाण गंधोदएणं पवित्ता। स-पासाय-कासार-सारा मराली, किवा-दाण-मंतोसिया बंदिणाली । पसरणा सुवाया अचंचल-चित्ता, राम (रमा) राम-रम्मा मए वाल णित्ता (?)। खलाणं मुंहभोय-संपुण्ण-जुहा, पुरग्गो महासाह सोढस्स सुबहा । दया-वल्लरी-मेह-मुक्कंबुधारा, सहत्तत्तणे सुद्ध सोयावयारा। जहां चंदचूडाणुगामी भवाणी, जहा सम्ब-वेई हिं सम्वंग-वाणी । जहा गोत्त-णिहारिणो रंभ रामा, रमा दाणवारिस्स संपुषणकामा । जहा रोहिणी ओसहीसस्स सण्णा, महड्ढी सपुरणस्स सरस्स रण्णा । जहा सूरिणो मुत्तिवेई मणीमा, किसएशस्म साहा जहास्वमोसा (?)। जहा जागई कोसलेसस्स सारा, मुलीणस्स मंदाइणी सेयतारा।
अन्तिम भाग
सिरि लंबकंचु-कुल-कुमुप-चंदु, करुणावल्ली-वण-धवण-कंदु । जस-पसर-पऊरिय-बोम-खंड, अहियाह-विमण-कुलिस दंडु । प्रवराह-बलाहय-पलय पवणु, भब्वयण-वयण-मिरि-सयण-तवणु। उम्मूलिय-मिच्छत्तावणोउ, जिण-चरणचण-विस्यण-विणीउ । देसण-मणि-भूसण-भूसियंगु, तज्जिय-पर-सामंतिणि-पसंगु। पवयण-विहाण-पयडण-समासु, णिरुवम-गुण-गण-माणिक्क-कोसु । सपडि-परपयरि-सया-अणिदु, धण-दाण-धविय-बंदियण-विदु । संसाराडइ-परिभमण-भील, जिण-कन्वामय-पोसिय-सरारु । गुरु-देव-पाय-पुंडरिय-मत्तु, विणयालंकिय-वय-सोन-जुत्तु । महसह लक्खण तहु पाणणाहु, पुर-परिहायार-पलंघ-बाहु । कण्हडु वणिवह जण-सुप्पसिद्ध, अहमल्ल-राय-महमति रिद्ध । तहो पणय-वसेश वियक्मणेय, महमहणा करणा लक्खणेरण। साहुलहो परिणो जइता-सुएण, सुकइत्तणगुण-विज्जाजुएण। जायस-कुल-गयण-दिवायरेण, अणसंजमीहिं विहियायरेण । इह अणुवय-पय-पईउ कन्बु, विरयउ सत्ति परिहरि वि गवु ।