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अनेकान्त
[वर्ष १४
सुप्पसण्ण-राउ परई वेह, भणु कवणु दुवार-कवाड देह । अवमिय वय पलिया चातुरंग, धण-कण-कंचण-संपुरण चंग । घर समुह एंत पेच्छि वि सवारु, भणु कवणु बप्प झपड दुवारु । चिंतामणि-हाडय-निवड-जडित, पज्जहह कवणु सई हत्थ-चडिउ । घर-रगुप्पण्णउ कप्परुक्खु, जले कवगु न सिंचइ जणिय-सुक्खु । मयमेव पत्त घरु कामधेनु, पज्जहह कबणु कय-सोखसेणु । चारण-मुणि तेए जित्त-भवइ, गय णाउ पत्त किर को ण शवह । पेऊस-पिंड करे पत्तु भवु, को मुयइ निवे (इय)-जीवियन्तु । मह विज्जक्खर-गुण-मणि-णिहाणु, पवयण-वयणामय-पय-पहाणु । घर-धम्मिय-णर-मण [घो] हणत्यु, वर-कहणा विरहउ परम सत्थु । प्रमेव लड-मह-पुरण-भवणु, अवगएमाणरु धीमंतु कवणु।
तहो अभयबालु तणुरुहव हूड, वणि-पट्ट किय-भालयल-रूड णरवइ-समज्ज-सर रायहंसु, महमंत-धविय-चरहाण-वंसु । सो अभयवाल-परणाह-रज्ज, सुपहाणु राय-बावार-कज्ज । जिण-भवणु करायड ते ससेउ, केयावलि-मंपिय-तरणि-तेउ । कूडावीडग्गाइणा वोमु-कलहोय, कलस-कलवित्ति-सोमु । घउ सालउ तोरणु सिरि जणंतु, पड-मंडव-किंकिणिनण-झणंतु । देहरूहु तासु सिरि साहु सोदु, जाइड-गरिंद-सहमंत-पोतु ।
धत्ता
इह महियले सोधण्णट, पुण्ण-पउरणास जसु थामें सुपसाहमि। चितह लक्खण-
कण्णा, सोहण-महणा कम्ब-रयणु विवाहमि ॥६॥ इह चंदुवाडु जमुणा-तढत्यु, इंसिय-विसेस गुण-विविह-वस्थ । चाउ हह हहन्धर-सिरि-समिद्ध, चउ बरखासिय-जैश-रिद्धि-रिख । भुवालु तत्य सिहि मरहवालु. शिय-देस-गाम-पर-रखवालु साहि-लंबकंचु कुल-गयण-भाणु, हल्लणु पुरवह सव्वह पहाणु । नरनाह-महा-मंडणु जणिट्ट, जिब-सासन-परिण पुराण-सिद्ध ।
सभूयउ तहो रायहो, लच्छि सहायहो पढम जण मणाणंदणु । सिरि बल्लालु परेसरु, स्वें जिय-सरु सुद्धासउ महणंदणु ॥
जो साहु सोदु तहि पुर-पहाणु, जण-मण-पोसणु गुण-मणि-णिहाणु । तहो पढम पुत्तु सिरि रयणवालु, बीयउ कण्हडु अद्धिदु-भालु । सो सुपसिद्धउ मल्हा-तणूउ, तस्साणु मणा जिउ सुद्धरूड .)। उद्धरिय जिणालय-धम्म-भारु, जिणसासण-परिणय-चरिय-चारु । गंधोवएण दण दिण पवित्तु, मिच्छत्त-वसण-वासण-विरत्तु । अरिराय-गाइ-गोवाल-रज्ज, बल्लालएव-गरवहंसमज्ज । सम्वहं सम्वेसरु रयण-साहु, वावरई परम्गलु चित्त-गाहु । सिवदेउ तासु हुड पढमु सूर्ण, सिरि दाण (वंतु) ण गंध-शृणु । परियाणह रिहिस-कला-कलाउ, विरणाश-विसेसुज्जल-सहाउ । मह महा-पंडिड वि (3)-सियासु, भवगमिय-णिहिल-विज्जा विलासु ।