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किरण
जैनप्रन्थ-प्रशस्तिसंग्रह
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जिण पडिमालंकिउ गच्छमाणु,
अन्तिमभागःण केण वियंभिड सुर-विमाणु ।
मुणिवर-णयणंदि-मरिणबद्धं पमिन्द, जहिरामणंदि गुण-मणि-णिहाणु,
सयविहि-विहाणे पत्य कन्वे सुभग्वे । जयकित्ति महाकित्ति वि पहाणु ।
अरिह-पमुह-सुत्त-वुत्तु माराहणाए इय तिरिण वि परिमण-मई-मईब,
पणिउ फुडु संधि भट्ठावणं समोति ॥ मिच्छत-विडवि-मोडण-गइंद।
संधि ५८॥ (प्रति भामेर भंडार,सं. १५८०) पत्ता
१८ अणुवय-रयण-पईव (अणुवस-रत्न-प्रदीप) सिवपुर गच्छन तिहयणहोणं स्यणत्तय सोहण ।
-कवि लक्ष्मण, रचना कान सं० १३३
भादिभाग:दरसिय अहवीरें गणहरु, कलिकाल हो पडिबोहण ॥१॥
णत्त ण जिणे सिद्ध मायरिए पाढए य पम्वइदे । रामणंदि णत्तिउ मणि,
अणुवय-रयण-पईवं सर वुच्छे सिमामेह ॥ जहि जिवं णमंसि वि णिविउ ।
xxx तहिं णिए वि भब्वाहिणंदिणा,
इह जउँणा-णइ-उत्तर-तडस्थ, सूरिणा महारामणदिणा।
मह णयरि रायवडिय पसत्य । बालइंद-सीसेण जंपियं,
धण-कण-कंवण-वण-सरि-समिड, सयल-विहिणिहाणं मणप्पियं ।
दागुराणयकर-जण-रिद्धि-सिद्धि । कह दिणाई पारभिउ पुणों,
किम्मीर-कम्म-णिम्मिय रवगण, कीस-विट्ठसे-चितन्दुम्मणो।
सहल-सतोरण-विविह-वरण। तं सुणेवि णयदि बोल्लए,
पंडुर-पायारुण्णइ-समय, मणु करिंद-करणेव सोल्खए।
जहि सहदि खिरंतर-सिरि-निकेय । रहए कन्वे इयभत्तिणिज्झरा,
चउहद चच्चरुहाम जत्थ, कासु सत्ति लेहावणे परा ।
मम्गण-गण-कोलाहल-समस्य । कहा तासु सी भरहरिद्धए,
जहिं विवणे विकणे घस कुप्पभंड, वर वराडदेसे पमिद्धए।
हि कसिमा मिच्छ पिसंहि-खंड। कित्ति-लच्छि-सरमइ-मणोहरे,
हिस्विरम-दाण-संमाश-सोह, वाडगामि महि महिन-सेहरे ।
जहि वसहि महायण सुद्ध-बोह। जईि जिणिद-हर-पह-पराजिया,
बवहार-चार-मिरि-सुद्ध-बोय, चंद-सूर णहे जंत बज्जिया।
विदरहिं पसरण चउवरण बोय। तहि जिणागमुच्छव अलेवहि,
जहिं कणयचूर-मंडण-विसेस, वीरसेण-जिणसेण देवहि ।
सिंग्गार-सार-क्रय-निरवसेस । णाम धवल जयधवल सय,
सोहगा-लग्ग-जिम-धम्म-सील, महाबंधु तिरिणसिद्धत सिव-पहा ।
माणि -णिय-पइ-वय-वाहण-लील । विरहऊण भवियह सुहाविया,
जहिं पण्ण-परिय-पगण-साव, सिद्धिनमणि-हाराच्च दाविया ।
णायर-गरेहिं भूसिय विसाल। पुंडरोड जहिं कवि धणं जड,
थियजण विबुजल अणिय-सम्म, इउ सयंभू भुवणं पिजउ ।
कूडरिंग-भयावखि-रु-धम्म । पत्ता-तवसिरि-सरसइ-कठाहरण सिद्धतिय विक्सायहि ।
बड-मालुस्सय-तोरस-सहार, जहि तहिमि हि पणविय सहहिणं जिणु तिहुवण रायहिर
जहिं सहहिं सेब-सोहगा-बिहार।