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________________ जैनकला-प्रदर्शनी और सेमिनार गत नवम्बर मासमें भारतकी राजधाना दिल्ली द्वीपका मंडल, रथ, पालकी और वेदी से प्रदर्शनी में अनेक सांस्कृतिक ममारोह हुए, जिनमें यूनेम्का वस्तुतः प्रदर्शनीय बनी हुई थी। मम्मलन, बुद्ध जयन्ती और बौद्ध कला-प्रदर्शनी प्रमुख प्रदर्शनीके मध्य भायमें मैसूर, अजमेर, जयपुर, थ। इसी अवमर पर जैन समाजकी ओरसे जैन बीकानेर आदि अनेक शास्त्र-भण्डारांसे आय हये कला-प्रदर्शनी और सेमिनारका भी आयोजन किया प्राचीन एवं रंगीन चित्र शास्त्र शोकेशांमें सजाकर गया । स्थानीय सम्र हाउसके प्राङ्गणमें जैन-कला रखे गये थे। हस्तलिखिते शास्त्रोंमें १२वीं शताब्दीसे प्रदर्शनीका उद्घाटन भारत सरकारके खाद्यमंत्री लेकर १६वी शताब्दी तकक अनेक दर्शनीय ग्रन्थ श्री अजितप्रमादजी जनक द्वारा २५ नवम्बरको थे। इनमें अनेक ग्रन्थ स्वर्ण और रजतमयी स्याहीसे दिनक ११ बजे किया गया। इस अवसर पर अनेक लिखे हुए थे। मचित्र ग्रेन्में ताड़पत्रीय कल्पसूत्र मंत्रियों और संसद्-सदस्योंके अतिरिक्त स्थानीय और कालिकाचाय-कथानकके अतिरिक्त कागज पर और बाहरसे आये हुये हजारों व्यक्ति उपस्थित थे। लिये गये ग्रन्थ भी पयाप्त सख्या में विद्यमान थे, उद्घाटनसे पूर्व स्वागत-समारोह के अवमर पर जिनमें जयपुरका चित्र भक्तामरस्तोत्र, आदिपुराण, श्री० साहू शान्तिप्रसाद जी, ला. राजेन्द्रकमारजी. यशोधरचरित्र, त्रिलोकमार और वीरसेवान्दिरकी श्री. अजितप्रसादजी जैन और आकिलोजिकल रविव्रत कथा उल्लंग्वनीय हैं। इन ग्रन्यांक चित्रांने डिपार्टमेन्टके डायरेक्टर जनरल डॉ. श्रीरामचनले दर्शकांको विशेपरूपसे अपनी ओर आकृष्ट किया। भापण हुए । डॉ. रामचन्द्रनने जैनमतिकलाकी ग्रन्थराज धवल-मिद्धान्तके हजार वर्ष प्राचीन ताड़प्राचीनता और महत्ता पर प्रकाश डालते हा कहा पत्रोंक वीरसेवामन्दिर-द्वारा लिये गये फोटो भी कि जैन तीर्थकरीकी दिगम्बर मूतियाँ अहिमा और प्रदर्शनीकी श्रीवृद्धि कर रहे थे। कपड़ों पर बने हुए शान्तिकी प्रतीक हैं और उनके द्वारा हमें यात्मिक- अनेक चित्र भी मनमोहक थे। प्राचीन काल में जैन शान्ति प्राप्त करनेका एक मृक सन्देश प्राप्त हाना माधु जिन उपकरणांक द्वारा ग्रन्थ लिखते थे-वे है। आपने अपने भापगमें हम-घाटी. हडप्पा प्राचीन उपकरण भी अनेक भण्डारांसे लाकर प्रदआदि प्राचीन ऐतिहासिक स्थानांसे उपलब्ध जैन- शनीमें यथास्थान रखे हुये थे। मत्तियोंकी विशेपताका बहतहीसन्दर परिचय दिया। यह प्रदर्शनी २५ मवम्बरसे २ दिसम्बर तक ___ प्रदर्शनीकी सजावट बहुत ही आकर्षक और दर्शकों के लिए खुली रही और देश-विदेशांक हजारों मनोरम थी। प्रचीनता और एतिहासिकता क्रमसे व्यक्तित्याने उसमे जाकर भारतीय जैनकलाका अव. सारी वस्तुएं यथास्थान रखी गई थी। हड़प्पा, लाकन उसकी मुक्तकण्ठसे प्रशंसा की। उदयगिरि-खंडागर, मथुरा, श्रावणवेलगुल, खजु इसी अवमर पर ३० नवम्बरस २ दिसम्बर तक राहो. आबू, चित्तौड़गढ़ आदि स्थानांके अनेक एक समिनार (गोष्ठी) का भी आयोजन किया ऐतिहासिक विशाल चित्र, देवगढ और पार्श्वनाथ गया। जिमके लिय स्थानीय विद्वानांके अतिरिक्त किला (बिजनौर ) की भव्य मूत्तियाँ चौदहवीं बाहरसे आय हुए व्यक्तियाम डॉ० कालीदास नाग, शताब्दीकी बनी लकड़ीकी कलापर्ण वेदियॉ. मित्त- डॉ. हरिमोहन भट्टाचार्य, बा. छोटेलालजी जैन नवामल (दक्षिण भारत) के सरम्य रंगीन चित्र कलकत्ता, डॉ० हीरालालजी वंशाली प० जगन्मोहन भगवान महावीरक पाँचों कल्याणकांक प्रदर्शक लालजी कटनी, पं० महन्द्रकुमारजी न्यायाचार्य सुरम्य चित्र अठारह भापामें उत्कीर्ण देवगढ़का बनारम, ६० मुमेमचन्द्रजी दिवाकर मिवनी, श्री० पापाण-शिलालेख, अजमेरकी स्वणिम अष्टमंगल- अगरचन्द्र जी नाहटा बीकानेर, श्री० करतचन्द्रजी द्रव्य और मोलह स्वप्नोंसे मंडित सुन्दर बन्दनवार, काशलीवाल एम. ए. जयपुर, पं० पद्मनाभजी मैसूर, तीन लोक और बाहुबलीके विशाल चित्र, अढ़ाई- पं० राजकुमारजी साहित्याचार्य, बड़ात आदिके
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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