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________________ १४४] अनेकान्त [वर्ष १४ यह सौभाग्यका विषय है कि अतीतकी भाँति ही मार पारम्परिक ऐक्य एवं मदभाव मूत्रमें आबद्ध आज भी भारत विश्व में शान्ति स्थापित करनेके हो तथा अन्तर्गष्ट्रीय जगतमें मानवीय ऐक्यकी लिये प्रयत्न कर रहा है और आजकी जनताके लिये प्रतिष्ठा हो। यह गर्वका विषय है कि हमारे माननीय प्रधानमंत्री ८-अगण एवं उदजन जैसी शक्तियांका नियोजन पंडित नेहरू पंचशील जैसे मिद्धान्तोंके निर्माण में लोक कल्याणकारी कार्यों में किया जाय। क्रियात्मक योग देकर विश्वकी वर्तमान अशान्तिको -अनेकान्त मिद्धान्तके आधार पर विभिन्न दूर करनेका सराहनीय प्रयास कर रहे हैं । यद्यपि मत-मतान्तर-गत विद्वप एवं घृणाके भावोंको उनका यह प्रयाम अहिंसा और मत्यकी भावनासे समाप्त किया जाय । ही अनुप्राणित है फिर भी विभिन्न राष्ट्रोंकी पारम्प- १०-भौतिक प्रगति करता हआ भी व्यक्ति रिक लाभकी दृष्टिसे ऐक्य सूत्रमं आबद्ध करनेका आत्म-म्वातंत्र्य-गत विद्वप एव घृणाके भावोंकी यह नवीनतम प्रयास है। पर देखना यह है कि समाप्ति तथा आत्म-विकासको ही अपना चरम लक्ष्य क्या पंचशीलके आधार पर स्थापित विश्व शान्ति बनाय । सच्चे अर्थ में विश्व शान्तिका रुप ले सकेगी, ११- प्रत्येक गष्ट्रकी भौतिक प्रगतिका विनियोग हमाग उत्तर है कि इस प्रकार भी वास्तविक विश्व भी म्व पर-कल्याण में ही हो। शान्ति असम्भव है। इसका यह अर्थ नहीं है कि १२-सन्देह एवं घृणा विद्व प और प्रतियागिता पंचशील सिद्धान्तकी उपयोगिताक सम्बन्ध में हम की भावना पर प्रतिष्टित आधुनिक राष्ट्रीयताका संदिग्व हैं। पंचशीलकी स्वीकृति विभिन्न राष्ट्रांकी समूल उन्मूलन किया जाय। इस प्रकार जब विश्वकी अशान्निका निराकरण ऐक्य एवं सद्भावके सूत्र में आबद्ध कर सकनेम तो व्यक्तिक आत्म विकाममं निहित है, तब आवश्यक सफल रहेगी ही और इस प्रकार इस रूपमं विश्व है कि हम सब मिलकर अपने चरित्रका निर्माण शान्ति प्रतिष्ठित करने में भी उसकी सफलता अक्षुण्ण करें और अपने अन्त करणको इतना निर्मल बना रहेगी। परन्तु इससे व्यक्तिके चरित्र निमारणमें लें कि हमसे पुनः भूमंडलके अधिवासा मानवीय निश्चय रूपसे प्रेरणा नहीं मिल सकेगी। चरित्र सीग्वनेके लिये उत्कंठित हो मकें और हम हमारी सम्मतिमें विश्व शान्तिके निम्न उपाय हैं इसके अधिकारीके रूप में विश्व में स्थायी शान्ति १-यत विश्व, मूलतः व्यक्ति-समप्टि पर प्रतिष्ठित कर सके । अतः कविवर पन्तक शब्दांमें आधारित है. अतः व्यक्ति-विकास सर्व प्रथम अप- शान्ति-स्थापनका प्रश्नक्षित है। राजनीतिका प्रश्न नहीं रे आज जगतके सम्मुख, २-व्यक्तिविकासका अर्थ है उसके चरित्रका अर्थ-साम्य भी मिटा न सकता मानव जीवनक दुग्व। निर्माण । आज बृहत सांस्कृतिक समस्या जगक निकट उपस्थित ३-अहिसा, अपरिग्रह, सत्य अचार्य एवं ब्रह्म- खंड मनुजताको युग युगको होना है नव निर्मित ॥ चर्यके आदर्शको सम्मुख रखकर व्यक्तिका चरित्र राजनीति, आर्थिक समानता और राष्ट्रीयताका निर्माण किया जावे। प्रश्न नहीं है वरन् खंडोंमें विभाजित मानवीय Y-प्रस्तुत चरित्र-निर्माण व्यक्तिक शेशव-काल- सांस्कृतिक एकताके नव निर्माणका प्रश्न है। अतः से किया जाय और प्रयत्न-पूर्वक किया जाय । हम सब ऊपर बताये गये सिद्धान्तांका पालन करते -व्यक्तिके चरित्र निर्माणका पूर्ण दायित्व हो पनत नवनिर्मागाका वन लें । विश्व | राष्ट्र उठाये और उसकी सुव्यवस्था करे। यही सर्वोत्तम मार्ग है। . ६-व्यक्तिमें वर्ग, जाति और राष्ट्र भेदकी सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। कल्पना अंकुरित न हो सके। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग भवेत् ॥ ७-विश्वका राष्ट्र-मंडल पंचशील योजनाके अन ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः। मागा.
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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