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________________ १४६] अनेकान्त [वर्ष १४ D . नाम उल्लेखनीय हैं। ने अपने भाषण में कहा कि विश्व-संस्कृति में जैन सेमिनारका उद्घाटन ३० नवम्बरको ११ बजे संस्कृति का स्थान महत्वपूर्ण है। अहिंसा विश्व में श्राचार्य कालेलकरने किया। आपने अपने भाषणमें बढ़ती जा रही है और इसी से विश्व की समस्याओं भ. महावीर और म. बुद्धकी चर्चा करते हुये का समाधान हो सकता है। आपने यह भी कहा बतलाया कि उनके द्वारा उपदिष्ट मार्गसे ही आजके कि प्राचीन काल में श्रमण संघ इस प्रकार के तनाव तनावपूर्ण प्रशान्त वातावरण में शान्ति स्थापित की पूर्ण वातावरण को रोकने में सफल हुए थे। जा सकती है। जैनधर्म आत्मोन्नतिकी प्रेरणा देता आज सायंकाल ३ बजे सेमिनार की तीसरी है और अहिंसाके द्वारा मानव ही नहीं, प्राणिमात्रके बैठक डा०हरिमोहन भट्टाचार्य के सभापतित्व में कल्याणकी कामना करता है। आपने जैन सिद्धान्तों हुई, जिसमें अनेकान्त और स्याद्वाद पर अनेक की विशदरूपसे चर्चा करते हुए अनेकान्त आदि विद्वानों के महत्वपूर्ण भाषण हुए। सिद्धान्तोंके व्यवहार में लाने पर जोर दिया। इसी २ दिसम्बर के प्रातः || बजे से चौथी बैठक समय आ० देशभूपणजी और आ० तुलसीजीने भी डा• कालीदासनागको की अध्यक्षता में प्रारंभ हुई। अपने भाषणमें बतलाया कि आजके युगमें अने- आज का विषय 'विश्व शान्ति के उपाय' था। श्री कान्त दृष्टि ही विश्वको उवारने में माध्यम बन सकती रवीन्द्र कुमार जैनने बताया कि हमें जीवनके प्रत्येक है। अहिंसा और अपरिग्रहकी आराधना ही विश्व- पग में अहिंसा और अपरिग्रहको लेकर चलना मंत्रीका सच्चा रास्ता है। अपनी दुर्वलताओंको जीते होगा, तभी विश्व में शान्ति का वातावरण सम्भव बिना न हम स्वयं शान्ति प्राप्त कर सकते हैं और हो सकेगा। ललितपुर के व कालेज के प्रिन्सिपल न विश्वमें ही उसे प्रस्थापित कर सकते हैं। बी० पी० खत्री ने अपने वक्लव्य में कहा कि आज डा० कालीदास नागने अपने महत्वपूर्ण ओज- विश्व शान्ति के लिए जो पंचशील की योजना बनाई स्वी भाषणमें कहा-भारतके प्रति विदेशोंका जो गई है, उसमें जैन धर्मके सभी मूल सिद्धान्त परस्पर-संभापण और मैत्रीका सम्पर्क बढ़ रहा है, सन्निहित हैं। पं. जगन्मोहन लाल जी शास्त्री ने वह इस बातका प्रतीक है कि संसार भारतसे मिल कहा कि आज विश्व में अशान्ति का प्रधान कारण कर वह शान्तिपूर्ण वातावरण बनाना चाहता है, मानव ही है। यदि मनुष्य ने अपने आपको ठीक जिमका प्रचार बहुत पूर्व भ० महावीरने किया था। कर लिया, तो विश्व में शान्ति स्वयमेव स्थापित हो डॉ० इन्द्रचन्द्र शास्त्रीने जेनधर्मकी सस्कृति पर मह जायगी। पं० राजकुमार जी साहित्याचार्य ने बताया स्वपूर्ण भाषण दिया। अध्यक्ष पदस भापण देते कि हमें आवश्यकता है अपने चरित्र- निर्माण की। हुये साहू शान्तिप्रसादजी जैनने श्रमण संस्कृतिके यदि सदु-भाव के सूत्र से बंध कर अपने चरित्र को समस्त पुजारियांसे अनुरोध किया कि वे विश्व- विकसित कर लिया, तो हम शान्ति का एक आदर्श बन्धुत्वकी भावना और विश्वशान्तिके प्रचारके उप म्थत कर सकेंगे। श्री नरेन्द्र प्रकाश जैन ने लिये तैयार हो जावें। मुख्यतया तीन समस्यायें वताई-१ साम्राज्यवाद की दिसम्बर का प्रातः ॥ संमिनार की दूसरी लिप्सा, २ ईर्ष्या द्वेप घृणा और ३ आर्थिक विपमता। बैठक डा. हीरालाल जी की अध्यक्षता में हुई। इन तीनों बुराइयों का निराकरण हम अहिंसा उसमें डा. हरिमोहन भट्टाचार्य, पं० सुमेरचन्द्र जी सिद्धान्त के द्वारा कर सकते हैं और विश्व में शांति दिवाकर, पं. महेन्द्र कुमार जी न्यायाचार्य, बा० अवश्य स्थापित हो सकती है। श्री मुनि फूलचन्द्र जी कामताप्रसाद जी, श्री अगरचन्द्र जो नाहटा, डा० ने बताया कि हमने यदि अहिंसा पर गंभीरता इन्द्रचन्द्र जो, बा. माईदयालजी ओर डा० पूर्वक विचार कर लिया तो विश्व में शान्ति अवश्य कालीदास नागके अहिंसा और अपरिग्रह पर स्थापित हो सकती है। अन्त में डा० कालीदास महत्त्वपूर्ण भाषण हुए । अन्त में डा० हीरालाल जी [शेष टाइटिल-पृष्ठ ३ पर]
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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