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________________ १४० अनेकान्त [वर्ष १४ हो जाय । खास कर दुनियांके बड़े राष्ट्रों पर अब और हाईड्रोजन बमोको खत्म कर दिया जाय । यह जिम्मेदारी आ पड़ी है कि वे इम विपयमें उनके परीक्षणों पर पाबन्दी लगादी जाय । निर्णय करें । अन्यथा हर जगह प्रलय के दृश्य ३-अणु शक्ति का उपयोग विनाशमें नहीं, उपस्थित हो सकते हैं। मानव की भलाई के लिए किया जाय। ____ विश्व शांति के लिए जो अव्यर्थ उपाय हो ४-त्येक राष्ट्र पंच शील को मानने के लिए सकते हैं उनमें से कुछ यह हैं- प्रतिज्ञावद्ध किया जाय। १-कोईभी राष्ट्र अपने मातृ-प्रदेशके अति- ५-धर्मवाद, जातिवाद , और, वर्गवाद रिक्त किमी दृमरे गष्ट्रकी एक इंच जमीन पर भी कानूनी अपराध ठहराये जावे और संसारके सारे कब्जा न करे। अगर ऐमा कब्जा पहलेसे है तो राष्ट्र एक दमरेको अपना कुटुम्बी समझे। उसे बिना किमी हील हवालेके सद्भावना पूर्वक कर मंकेत हैं जो ममचे विश्व में स्थायी शांति तत्काल छोड्दें। कौन किमका मात्र प्रदेश है इसका स्थापित करने में माधकतम कारण हो सकते हैं। निर्णय एक चुनी हुई निष्पक्ष ममिति करे । पर यह निश्चित है कि इनकी सफलता मानव मन २-युद्धके सभी वैज्ञानिक शस्त्रांका निर्माण की अहिंमा, अनाग्रह और अपरिग्रहके मिद्धान्त सदाके लिए बन्द करदिया जाय। मौजूद अणुवम पर आधारित है। अहिंसा और अपरिग्रह (श्री भरतसिह, उपाध्याय) आधुनिक जीवन सर्वत्र परिग्रह-प्रधान है, जिसके ही अपरिग्रह के प्रयोगका एकमात्र क्षेत्र है, जीवनसे पास परिग्रह नहीं है, ममाज में उसका कोई म्यान अलग होकर अपरिग्रह कोई चीज नहीं रह जाती, नहीं है, उसका जीवन नगण्य है, अकिंचनता का उसका कोई अस्तित्व नहीं है। आजके जीवनमें श्राज समाज में आदर नहीं है, इसलिये अपरिग्रह- यदि अपरिग्रहकी प्रतिष्ठा दिखाई नहीं पड़ती और की पूजा आज पुस्तकोंक पन्नांम ही रह गई है, उसके अभ्यासके लिये अनुकूल परिस्थितियां और आधुनिक भौतिकतावादी युग वस्तुतः उन लोगोंक वातावरण नहीं मिलते, तो यह उन लोगोंके लिये लिये जो आन्तरिक साधना करना चाहते है घोर गहरी चिन्ताका विषय होना चाहिये जो अपरिग्रह निगशाओंसे भरा हुआ है, भृग्व-प्यासकी स्थूल की प्रशंसा करते हैं या उसे अपने जीवनमें साधना आवश्यकताओंकी निवृत्ति तकके लिये आज मनुष्य- चाहते हैं। इसीलिय मैं कहता हूं कि साधनाकी इच्छा करने वाले लोगोंके लिये यह युग घोर निरा. भयावह है, और पहलेके इतिहासमें इतनी मात्रामं शाओंसे भरा हुआ है, आज जबकि अर्थ और वह कभा नहीं देखा गया । ऐसा लगता है कि काम जीवनके मुख्य आधार बन गये हैं ज्ञान, धर्म भौतिक विज्ञानकी प्रगति और तज्जनित यान्त्रिक और दशन सबका आर्थिक और राजनैतिक सभ्यताके विकासने मनुप्यकी इस तत्रतत्राभिनन्दिनी मूल्यांकन हो रहा है, कौन अपनी वृत्तियों को अन्दर तृष्णाकी वृद्धि में योग दिया है और उसकी यह समेट कर अपरिग्रहकी साधना कर सकता है, भूख निरन्तर बढ़ती ही जारही है। यदि अपरिग्रह लोकसे अपनी आँखें मूंद सकता है। विश्व में एक कल्याणकारी वस्तु है तो उसके इस महत्त्व और साधकोंकी कमी हो सकती है, परन्तु उनका नितान्त उपयोगकी जांच जीवनमें ही हो सकती है, जीवन अभाव नहीं हो सकता। आज भी सकिचन और
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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