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________________ अनेकान्त [ वर्ष १४ जैन परम्परा में कहीं कोई उल्लख नहीं मिलता। यही वजह है कि इस ग्रन्थका अपना विशिष्ट अतः यह ग्रन्थभारतीय आगम-ग्रन्थों में सबसे स्थान है। इम ग्रंथकी महत्ताका वे ही मूल्य आंक पुरातन लिग्बी जाने वाली प्रथम रचना है। जिसका सकेंगे, जो उसके मनन और चिन्तन द्वारा कसायभगवान महावीरकी वाणीसे साक्षात् सम्बन्ध है। शत्रु को विनष्ट करने में यत्नशील होंगे। कविवर ठकरसी और उनकी कृतियाँ ( पं० परमानन्द शास्त्री) जीवन-परिचय और रचनाएँ कृपणचरित्र विक्रमकी १६वीं शताब्दीके विद्वान कवियों में सजीव है और कविने उसे ३५ पद्योंमें रखनेका कविवर ठकुरमीका नाम भी उल्लेखनीय है । कवि यत्न किया है रचना सरस और प्रामाद गुगसे युक्त ठकुरसी कविवर घेल्हके पुत्र थे । उनकी माता बड़ी है। और उसे वि० सं० १५८० के पोप महीनेकी ही धर्मिष्ठा थी । गोत्र पहाड्या था और जाति पंचमीके दिन पृर्ण किया गया है। उक्त घटनाका खण्डेलवाल तथा धर्म दिगम्बर जैन था। आप संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है:उस समयके अच्छे कवि कहे जाते थे; और कविता एक प्रसिद्ध कृपण व्यक्ति उमी नगर में रहता था नक प्रकार से आपकी तक सम्पत्ति थी। जहाँ कविवर निवाम करते थे । वह जितना अधिक आपके पिता भी अच्छी कविता करते थे; परन्तु कृपण था उसकी धर्मपत्नी उतनी ही अधिक उदार अद्यावधि उनकी कोई रचना मेरे देखने में नहीं आई। थी । वह दान-पूजा, शील आदिका पालन करती हो सकता है कि वह अन्वेषण करनेपर प्राप्त होजाय । थी, किन्तु उस कृपणने सम्पदाको बड़े भारी यत्न कविवर ठकुरसीकी इस समय चार कृतियांका और अनेक कौशलोंसे प्राप्त किया था। धन संचयपता चला है । ये सभी कृतियाँ अभी तक की लालसा उसकी बहुत बढ़ी हुई थी, वह जोड़ना श्रप्रकाशित हैं। इनका अवलोकन करनसे जहाँ जानता था, खर्च करने में उसे भारी भय लगा कविको काव्य शक्तिका परिचय मिलना है वहाँ रहता था। वह रातदिन इमी चिन्तामें रहता था उनकी प्रतिभाका भी दर्शन हुए बिना नहीं रहता। कि किमी तरह से सम्पत्ति सचित होती रहे, परन्तु रचनाओं में स्वभावतः माधुर्य और प्रासाद है, उन्हें कभी दान, पूजा यात्रा आदि धर्मकार्यामें खर्च नहीं पढ़ते हुए जीमें अमचि नहीं होती; किन्तु शुरु करने किया था। माँगनेवालांको कभी भूलकर भी नहीं पर उसे पूरी किये बिना जी छोड़ने को नहीं देता था, और न किसी देवमन्दिर गोठ या सहचाहता। आपकी कृतियों के नाम हैं,-कृपण भोजम ही धनका व्यय करता था। भाई, बहिन, चरित्र, मेघमालावयकहा, पंचेन्द्रियवेल, यारनेमि- बुआ, भतीजा, और भाणिजी आदिके न्योता पाने राजमतीवेल । इनमेंसे पाठक प्रथम रचनाक नामसे पर कभी नहीं जाता था किन्तु रूखा सा बना रहता परिचित हैं क्योंकि उसका किंचित परिचय पं० था उसने कभी सिरमें तेल डालकर स्नान नहीं किया नाथूरामजी प्रेमी बम्बईने अपने हिन्दी साहित्यक था, धनके लिये झूठ बोलता था, भूठा लेख जन इतिहासमें कराया था। जिखाता था, कभी पान नहीं खाता, न खिलाता था, प्रस्तुत 'कृपणचरित्र'की एक प्रतिलिपि मेरे पास और न कभी सरस भोजन ही करता था, और न कभी है जिसे मैने जयपुरके किसी गुटके परसे कुछ वर्ष चन्दनादि द्रव्यका लेप ही किया, न कभी नया कपड़ा हुए नोट की थी। कविन इसमे अपनी आंखों देखी पहिनता था, कभी खेल-तमाशे देखने भी न जाता एक घटनाका विस्तृत परिचय कराया है. घटना था और न गीतरस ही सुहाता था, कपड़ा फटजाने * जिसु कृपणु इकु दातु तिसो सुण तासु बखाण्यौं। के भयसे उन्हें कभी धाता भी न था, कभी किसी
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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