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ॐ अहंम
स्वतत्त्व-रुघातक
विश्वतत्त्व-प्रकाशक
वाषिक मूल्य ५)
___एक किरण का मूल्य ॥)
नीतिक्रोिषध्यसीलोकव्यवहारवर्तकसम्यक् । परमागमस्यबीज भुवनेकगुरुर्जयत्यनेकान्तः॥
वर्ष १४ वीरसेवामन्दिर, २१, दरियागंज, देहली
दिसम्बर,५६ किरण, ५ । मर्गमिर, वीरनिर्वाण-मंवत २४८३, विक्रम संवत २०१३
** श्रीवर्धमान-जिन-स्तोत्रम् * जनन जलधि-मंकुदु:ख-विध्वंसहेतुर्निहित-मकरकेतुर्मारितानक्रमेतुः । जा-जनन-समस्तो नष्ट-निःशेप-धातुर्जयति जगति चन्द्रो धर्द्धमानो जिनेन्द्रः॥।। शम-दम-यमकर्त्ता सार-संमार-हर्ता, सकल-भुवननत्ती भूरि कल्याण-कत्ता । परम-सुख समर्ता सर्व-सन्देह-हर्ता जयति जगति चन्द्रो वर्द्धमानो जिनेन्द्रः ।।२।। कुगनि-पथ-विनेता मोक्षमाम्य नेता, प्रकृति-गमन-हन्ता तत्त्व-मन्तान-सन्ता। गगन-गमन गन्ता मोक्ष-गमा-रमन्ता, जयति जगति चन्द्रो वर्द्धमानी जिनेन्द्र ॥३॥ सजन-जल-निनादो निजिताशेपवादो, नरपति-नत-पादो यात तवं जगाद । जयभवकृतपादोऽनेक-क्रोधाग्नि-कंदो, जयति जति चन्द्रो वर्द्धमानो जिनेन्द्र ।। प्रबन-बल-करालो मुक्ति कान्ता-रसालो, विमल गुण-विशालो नीनि कल्लाल-मालः । ममवशरण-नीलो धारितानन्त-शीला, जयनि जगति चन्द्रो वर्द्धमानो जिनेन्द्रः ।। पिय-विप-विनाशो भूरि-भापा निवामो, हन-भव-भय-पाशः कीर्ति-वल्ली-निवामः । शरण मुख-निवामो वर्त संपूरिताशो, जर्यात जगति चन्द्रो वर्द्धमानो जिनेन्द्रः ।।।। मद-मदन-विहारी चारु-चारित्र-धारी नरकगति-निवारी मोक्षमार्ग-प्रसारी। नृ सुर-नयनहारी केवलज्ञान-धारी, जयति जगति चन्द्रो वर्द्धमानो जिनेन्द्रः ॥७॥ वचन रवन-धीरः पाप-धूली-ममीरः, कनक-निकर-गौरःकर-कारि-शूरः। कनुप-दहन नोर: पालितानन्तवीरों, जयति जगति चन्द्रो वर्द्धमानो जिनेन्द्रः ।।८।।
(पंचायती मन्दिर, दिल्लीके भण्डारसे प्राप्त)