SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राचार्य श्रीजुगलकिशोरजी मुख्तारकी ८०वीं वर्षगांठ सानन्द सम्पन्न मगमिर सुदी ११ ता. १३-१२-५६ को जैन का ध्यान रखा जायगा । अनन्तर बा० छोटेलाल जी ममाज के सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक विद्वान श्री जुगल कलकत्ताने यह प्रस्ताव रखा कि आगामी वर्ष जयंती किशोर जी मुख्तारकी ८०वीं वर्षगांठ कलकत्ता के अवमर पर मुख्तार सा० को उनकी सेवाओंके निवासी श्रीमान सेठ मोहनलालजी दगड़के उपलक्ष्यमं एक अभिनन्दन ग्रंथ भेंट किया ज सभापतित्वमें बड़े समारोहके साथ मनाई गई। यह प्रस्ताव सर्व सम्मति से पास हुआ। आज मुग्न्तार सा० को श्रद्धांजलि देने के लिए नगर अंतमें मुख्तार सा० ने अपनी लघुता प्रकट के अनेक गण्य मान्य व्यक्ति उपस्थित थे, जिनमें करते हए सवका आभार माना और जैन माहित्य राय सा० लाला उल्फतराय जी, लाला मक्खनलाल और इतिहामके खोज-शोधकी आवश्यकता बतलाई। जी ठेकेदार ला० नन्हेंमल जी, ला. जुगलकिशोरजी आपने कहा कि हमाग बहुत अधिक साहित्य अभी कागजी, वैद्यराज महावीर प्रसादजी, बाबू रघुवर भी भंडारांमें दवा पड़ा है, जिसके छान-बीनकी दयाल जी, श्रीजेनेन्द्र जी, श्रीअक्षयकुमार जी अत्यन्त आवश्यकता है। मेरा विश्वास है कि सम्पादक नवभारत टाइम्स, लाला तनसुखराय जी, भडारांकी छान-चीनसे अनेकों अलभ्य, अदृप्ट और ला. राजकृष्ण जी, डा. एम. सी. किशोर, डाः अभूतपूर्व ग्रन्थ प्रकाशमें आवेंगे। कैलाशचन्द्र जी, बाबू महतावसिंह जी, पंडित अपने भाषणके अन्त में आपने कहा कि अब दरवारीलाल जी कठिया, बा. माईदयाल जी, बा. मेरी काम करनेकी शक्ति क्रमशः घट रही है, पन्नालाल जी अग्रवाल, श्रीमती कमला देवी और अतएव आप लोगोंको आगे आकरके काम संभाल श्रीमती मखमली देवा आदिक नाम उल्लेखनीय हैं। कर मुझे निश्चित कर देना चाहिए, ताकि मै अपने उपस्थित लोगोंके द्वारा श्रद्धांजलि समर्पित आत्मिक कार्यमें लग सकृ। किये जानेक बाद अध्यक्ष र.ठ सोहनलालजी दृगड़ने आपने अपने अपन भापणमें बा० छोटेलाल मुख्तार सा० को अपनी श्रद्धांजलि अपित करते हुए जीकी गुप्तदान और मृक सेवाओंका उल्लेख करते संस्कृतिक सम्बन्ध में अपना महत्वपूर्ण भाषण हा कहा कि आपने समय-समय पर वीरसवा दिया। आपने कहा कि मुख्तार मा० जैसे संवा- मन्दिरको दूसरोंसे तो आर्थिक सहायता दिलाई ही भावी संयमी विद्वानकी आयु आप सबने १२५ है, पर (वय भी हजारों रुपये चुपचाप आकर वर्षकी चाही. सी एसे संयमी पुरुपके लिए यह होना सामने रख दिये हैं और वीरसेवामन्दिर की कोई कठिन नहीं है । मुख्नार माहबकी जैन बिल्डिंग के लिए चालीस हजारमें जमीन खरीदकर संस्कृति की सेवा अपूर्व है। मुझे ऐसे महारथीके प्रदान की, और नीचे की मंजिलके लिए साहू शान्ति दर्शनकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई, और अनेक प्रमाद जी से ओर्थिक सहायता दिलवाई और उसके माहित्यकारों तथा विद्वानांसे मिलनेका मौभाग्य बनवानमें बड़ा परिश्रम उठाया, मै किन शब्दोंमें प्राप्त हुआ। मैं ग्रंथमालाके लिए. ५००) भट करता आपके इन उदारतापूर्ण कार्योकी प्रशंसा करूँ ? हूँ। इसे आप सहर्ष स्वीकार करें। आपने यह भी आपके ही प्रयाससे दिल्ली में वीरसेवामन्दिरके इस कहा कि ऐसे महान व्यक्तिकी जयन्तीका वड़ा आयो- भवनका निर्माण संभव हो सका है। जन किया जाना चाहिए था । आशा है भविष्यमे इस -परमानन्द जैन अनेकान्तके ग्राहकोंसे निवेदन अनेकान्तके ग्राहकोंसे निवेदन है कि जिन ग्राहकोंने अपना वार्षिक चन्दा ६) रुपया और उपहारी पोष्टेज २) कुल ७) रुपया मनीआर्डग्से अभी तक नहीं भेजा है, वे किरण पाते ही शीघ्र मनीआर्डरसे भेज दें अन्यथा छठी किरण उन्हें वी. पी. से भेजी जावेगी। जिससे उन्हें ।।-) अधिक देकर वी. पी. छुड़ानी होगी। आशा है प्रेमो ग्राहक महानुभाव १५ जनवरी तक वार्षिक मूल्य भेजकर अनुग्रहीत करेगे। मैनेजर अनेकान्त-वीर सेवामन्दिर, ०१ दरियागंज दिल्ली।
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy