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अनेकान्त
[ वर्ष १४
इण्हं चरितु जो को वि भन्छु, परिपढइ पढावइ गलिय-गब्दु । जो लिहइ लिहावइ परमु मुणइ, संभावह दावह कहइ सुणइ । जो दह दिवावह मुणिवराह, जह तह सम्म पंडिय पराह। सो चक्कट्टि पर प्राइ करिवि, पालिवि सरकत्तण लच्छि धरिति । अणुहुँज्जिवि संसारिय-सुहाइ, सवह दिव्बइ पयलिय-दुहाइ । उन्नहियाहिल सुहरस-पयासि,
पच्छइ गच्छइ णिवुइ णिवासि । धत्ताबारहसय सत्तरयं पंचोत्तरयं विक्कम कालवि इत्तउ । पढम पक्खि रविवारइ छठि सहारइ पूस मासे सम्मत्तउ ॥
लक्खणु सव्वाउ समाणु साउ, विन्थायउ विहिणा जणिय-राउ । सो इत्थ तत्थ हिंडंतु पत्तु, पुरे विल्लराम लक्खणु सु-पत्तु । मणहरु जिणहर तणुरुह पवित्तु । ते णिज्जिउ सिरिहरु परम मित्तु । विरदा णंदणु सम्माण घणउ, लक्खण हो समउ सो करइ पणउ । तहे जि मणेहु णिभरु महंतु, दिण दिण तं अइसय बुद्धि जंतु । भवए पवुठा मेहुणीक, अमराल-वारि पोमिय- मरीरु। जं एयारह मए मामि फारु, णिवडइ णहाफ उ णिम्भमत्त मारु। स्वर-कय पयंड-बम्हंड-पुरु, जं ट्ठिा गिट्ठरु तवइ सूरु । सुवणहो सुवणेसहु णाहु जजि,
चिरु वट्टइ भोकह चित्त तंजि । चत्ताजह अहिणव घण दंसणे ताव विहंसणे चंद कवडगं हुल्लियइ सिरिहरुसिरिसाहारउरय-परिहारउलक्खणणाणहर सुल्लियइ
णवरेक्कदिणम्मि महाणुभाउ, श्राभन्थि विल्लहो पत्थ-पाउ । पमणिउ भो बंधव अइ पवित्त , विरइबउ जिणयत्तहो चरित्त । तहो वयणे मई विरइउ सबोज्ज, बणिणाहो ववसायउ मणोज । पद्धडिया बंधं पायडन्थ, प्राइहि जाणिज्जसु सुप्पसत्थु । मयलइ पद्धडिया एइ हुँति, सत्तरि णवज्जु दस य दुरिण संतु। एयइ गंथइ सहसइ चयारि, परिमाण मुणिहु अक्खर वियारि । हउ.."रक्वरु खलिय लज, ण वियाणमि हेयाहेय-कज्ज । पय-बंध णिबंधु ण मुणमि किंपि, मह-विरइड संपइ चरित तंपि ।
सम्महसण णाण णिक मम्मच्चरिय विमालु । तं स्यणतउ मिरिहरहो अहिरक्वउ चिरकालु ॥
-आमेर भंडार प्रति. सं० १६१ १४ सुलोयणाचरिउ (सुलोचनाचरित)
गर्माणदेवसेन आदिभागवय-पंच-तिबम्ब-णहरो पचयण-माया-सुदीह-जीहालो । चारित्त-केमरड्ढो जिणवर-पंचाणणो जयऊ ॥१॥ तिहवण-कमल-दिणेसु पिण्णामिय-घण तिमिर-भर । पडिमि चरिउ पसत्थु पणविवि रिसह-जिणेसरु ॥२॥
शिवमम्मलहो पुरि णिवमते, चारुट्ठाणं गुणगणवतें। गणिणा देवसणमुणिपवरे, भवियण-कमल-पवोहण-सूरें। जाणिय धम्माहम्म-विसेसें, विमलसेण मलहारिहि सीसे । मणि चिंतिउ किं सत्यम्भासें, णिफलेण णिरु वयणायासें । जन्य ण धम्म-जुत्त रंजिय सह, विरइज्जइ पसत्य-सुदर कह ।