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जैन ग्रंथ-प्रशस्ति-संग्रह
पत्ता-अरियण तामर सायर सुहमण,
जण जाणिय जिणमइ जुवइ तासु । सायर दोसायर णायर तिलया।
ताहं गय सत्त पमुक्क तासु । वणि जिणयत्त कहतरु पुण्ण णिरंतर
पढमउ अल्हणु सुहि सरय सूरु, कह घिरइज्जह गुणणिलया ॥४॥
परिवार-गरह-परमास-पूरु ।
पवयण वयणामय-पाण-पोटु, णिक्कलंकु अकलंकु चउमुहो,
अवमेय महामह-दलिय,दुर्छ । कालियासु सिरिहरि सुकइ सुहो।
जिणवणचण-पूयण-सयत्तु, वय विलासु कइवासु असरिसु
अहिणाणि य णिहिल विणाय वित्त । दाणु वाणु ईसाणु सहरिसो।
मिच्छत्त चिय गच्चइल्लु, पुफ्फयंतु सुसयंभु भल्लयो,
गंभीर परम णिम्मय मइल्लु । बालमीउ मम्मई रसिल्लो ।
किल्लिल्ल-वल्लि शिल्लूर-णिल्लु, इह कईउ भीम इण दिदिया,
भायर सुउ लावण णेह-गिल्लु । फुरइ केम महो मह वरिठ्यिा ।
परिवार-भार-उद्धरण-धीरु, धाउलिंग गुण णउ गुण ण कारो,
जिण-गंथ-वारि-पावण-सरीरु। कम्मु करणु ण समासु सारो।
पवहिय-तियाल-बंदण-विसुद्धि, पय समिति किरिया विसेसया,
सुख सत्थभाव-भावण श्रमुद्धि । संधि छंदु वायरण भामया।
बहु-सेवय-पर-मिर-घट्ट-पाय, देष भाम लवणु ण तक्कयो,
वंदीयण दीणह दिण्ण चाय | मुर्णाम णेव श्रायहि गुरुक्कयो।
भायणिहि पयोपिय सूरिबंदु, महाधवलु जयववलु यदिट्ठो,
सउलामर-बह-कय चंदु-बंदु ? ण उर वप्प पयमिइ वरिटी । तह ण दिछ मिन्द्धन पाय............, तहोसोहणहो रसाल हो भ'यपराल हो कलकणिहत्य सहोयर
छवि महामह सोहण रिउबल मोहण गुणराहणविहियायर
गाहलु साहुलु माहण मइल्लु, इय जिणयत्तचरित्ने धम्मस्थ-काम-मोक्षवण्या गुब्भाव
तह ग्यणु मयणु सतणु जि छहल्ल । सुपवित्त सगुणमिरिमाहुलमुउ-लक्खण-विरहए भवसि
छहमहि भायर अल्हणाह भत्त, रिहरस्पणामंकिए जिणयत्तकुमारुप्पत्ति-वण्णणो णाम पढमो
छहमवि ताहा माणासत्त चिन । परिच्छेश्रो समत्तो ॥ संधि ॥
छहमवि ताहर पय पयरुह-हुरेह, अन्तिम भाग:
छहमाह मयणोवम-कामदेह । इह होतउ श्रासि विमाल बुद्धि,
साहु लहु सुपिय पिय यम मणुज्ज, पुज्जिय जिणवर ति-रयण विसुद्धि ।
वामंज्जय ताकय णिलय कज । जायस रहवंस उवयरण सिंधु,
ताह जि णंदणु लक्खणु सलक्लु, गुण गरुवाभल माणिक्क सिंधु ।
लक्खण-लक्खिउ-सयदल-दलक्खु । जायव परणाहहो कोसवालु,
विलसिय-विलास-रस-गलिय-गम्ब, जम्मरम मुद्दिय विक्चक्कवातु ।
ते तिहुअणगिरि शिवसंति सम्व । जसवालु तासु सुर मइ परालु,
सो तिहुवरि भग्गउ उज्जवेण, लाहाबव्हड लहलक्ख रातु।
वित्तउ बलेण मिच्छाहिवेण ।