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किरण ३-४ ]
एस विय पाच गुण वि चमक्किउ,
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चिरु कइ कन्वहं चिति विसंकिउ । जहिं वम्मीय वास सिरि हरिसहिं, कालियास पमुहहि कइ सरिसहि । वाण- मयूर-हलिय-गोविदहिं, मुहरु सयंभु कइंदहिं । पुप्फन - भूपाल - पहाणहिं, श्रवरेमि बहु सत्य वियाहि । विरईया कचइ णिसुप्पिणु, श्रम्हारिसह ग रंजइ बुहयणु । ६ तह विधिट्ठत्त पयासमि, सत्थ रहिउ अप्पर श्रायासमि । घत्ता - जइ सुरवइ करिमत्त, तो किं अवरु महन्वउ । जह दु दहि सुरुसह तो कि तूर म वज्जड ॥ ३ ॥ जह श्रायामं विणयासुउ गउ, तो किं श्रवरु म जाउ विहंगउ । जइ सुरधेणुय जणयादिणि, तो किं अवर गदिणि । दुज्झइ जइ कप्पर, मु फलइ मणोहरु, तो किं फलउ याहि श्रवरु वि तरु ।
जइ पत्रहइ सुर-परि मंथर गइ, तो कि अवर नाहि पवहउ गइ । जद्द कह पवरहि रहयइ कब्बई, सुदरई वहिमि उब्वइ ।
हमि किपि नियम शुरू, fare विलग्गउ काई बहुवे । जइ वि ए लक्खणु छंदु वियाणमि, श्रवर निघंटु याहि परियाणमि ।
णालंकारु कवि श्रवलोइड, वि पुराण-प्रायमु- मणु ढोयउ ।
महं पारंभिय तो वि जडते, चरक जिधम्महो अणुरतं ।
जैन ग्रन्थ- प्रशस्ति-संग्रह
पिसुत सुंदर मह दृसह, ही यि सुग्रण पोसह । धत्ता -- श्रह किं पच्छमि एहु, अन्भन्थि रोसालयो । जिम दुद्ध इंगालु, धोय धोयड कालभो ॥४॥
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किं करइ पिसु संगहिय पाउ, घुड महु सरसइ जोहग्ग थाउ । छुडीहरंतु सुदर पयाई. ललियाई बद्ध भासा - गयाई । गय-विरोहु संत प्रत्थु
ड होउ व सुंदरुपसत्धु । श्रायण्णहो बहुविहु-भय-भरिउ, हउ कद्दमि चिराणउ चारु चरिउ । वइयरेंहि त्रिचित्तु सुलोयणाहं, वि पुत्तहो मयणुक्कोवणाहें । वयवंति हिय मिच्छत्तियाहें, वर - दिढ सम्मत- पतियाहें । जगाद्दा- बंधे श्रासि उत्त सिरि कुकुंद - गणिण रुित्त । तं वहि पद्धडियहिं करेमि, परि कि पिन गूढउत्थु दमि । नेवि कवि उ संखा लहंति, जे अत्थु देखि साहिं घि (खि) वंति । बत्ता - कहियं जेय असंसु मिच्छत्ताउ प्रोहहह । श्रवरु वि बहुत्तव पाउ, तं जीवासिउ तुदृद्द ॥ ६॥
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इय सुलोयणाचरिए महाकच्वे महापुराणे दिट्ठिए गणि देवसेण विरइए पढमा परिच्छेश्रो सम्मत्तो ॥ १ ॥
चरमभागः
ias सुहरु जिदिहो सासगु, जय सुहयरु भव्वयण सामगु । दउ पयजें धम्मु पयामिउ, पाउ जेण सन्धु उवएसिउ । माहु-वग्ग - रयणत्तय धारउ, गंदर मात्र वय-गुण धारउ । दागु देह इंदिय बल - उमर, वेज्जाव करेउ मुणि-पवरहं ।
दारवइ सह परिवारें, पालिए शिरु यियायारं । दउ पय-पय मुच्च पात्रे, रंजिज्जउ जिण धम्म- पहावें । वीर से-जिरसेगा परियह, प्रायम-भाव-भय- बहु-भरियः ।