SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण ३-४] धारा और धाराके जैन विद्वान् [१०१ प्रभाचन्द्रका उल्लेख भी किया गया है। जो प्रभाचंद्र टिप्पण प्रन्थ, समाधितन्त्र टीका ये सब प्राथ धाराधीश्वर राजा भोज-द्वारा पूजित थे और न्याय- राजा जयसिंहदेवके राज्यकालमें रचे गए हैं। शेष रूप कमलसमूहको विकसित करने वाले दिनमणि, ग्रन्थ प्रवचन-सरोज-भास्कर, पंचास्तिकाय प्रदीप, और शब्दरूप अब्जको प्रफुल्लित करने वाले रोदो- आत्मानुशासनतिलक, क्रियाकलापटीका, रत्नकरण्ड मणि (भास्कर) सहश थे। ओर पण्डितरूपी कमलों- श्रावकाचार टीका , वृहत्स्वयंभूम्तोत्र टीका, शब्दाको विकसित करने वाले सूर्य तथा रुद्रवादि दिग्गज म्भोजभास्कर और तत्वार्थवृत्ति पदविवरण तथा विद्वानोंको वश करनेके लिये अंकुशके समान थे तथा प्रतिक्रमण पाठ टीका, ये सब ग्रन्थ कब और किसके चतुमुखदेवके शिष्य थे । राज्यकालमें रचे गये हैं यह कुछ ज्ञात नहीं होता। ___ इन दोनोंही शिलालेखोंमें उल्लिम्बित प्रभाचन्द्र बहुत सम्भव है कि ये सब ग्रन्थ उक्त ग्रन्थोंके बाद एकही विद्वान् जान पड़ते हैं। हां, द्वितीयलेख (५५) ही बनाए गये हों। अथवा उनमेंसे कोई प्रन्थ उनसे में चतुर्मुखदेवका नाम नया जरूर है, पर यह संभव पूर्व भी रचे हुए हो सकते हैं। प्रतीत होता है कि प्रभाचन्द्रकं दक्षिण देशसे धारामें अब रही समयकी बात । ऊपर यह बतलाया आनेके पश्चात् देशीयगणके विद्वान् चतुमुखदेव जा चुका है कि प्रभाचन्द्रने प्रमेयकमलमार्तण्डको भी उनके गुरु रहे हो तो कोई आश्चर्य नहीं, क्योंकि राजा भोजके राज्यकालमें बनाया है। राजा भोजका गुरु भी तो कई प्रकारके होते हैं-दीक्षागुरु, विद्या- राज्यकाल विक्रम संवत् १०७० से १११० तकका गुरु आदि। एक-एक विद्वान्के कई-कई गुरु और बतलाया जाता है। उसके राज्यकालके दो दानपत्र कई कई शिष्य होते थे। अतएव चतुमुखदेव भी सवत् १०७६ और १०७६ के मिले हैं।। प्रभाचन्द्रके किमी विषयमें गुरु रहे हो, और इसलिए आचार्य प्रभाचन्द्रने तत्त्वार्थ वृत्तिके विषम-पदोंवे उन्हें समादर की दृष्टिसे देखते हों तो कोई आप- का विवरणात्मक एक टिप्पण लिखा है। उसके प्रारंभ त्तिकी बात नहीं, अपनेसे बड़ेको आज भी पूज्य में अमितगतिके सस्कृत पंच-समह का निम्न संस्कृत और आदरणीय माना जाता है। पद्य उद्धृत किया है:आचार्य प्रभाचन्द्रने उक्त धारा नगरीमें रहते हुये वर्गः शक्रिः समूहोसारणूनां वर्गणोदिता। केवल दर्शनशास्त्रका अध्ययन ही नहीं किया, प्रत्युत वर्गणानां समूहस्तु स्पर्घ स्पर्धकापहैः॥ धाराधिप भोजके द्वारा प्रतिष्ठा पाकर अपनी विद्ध- अमितगतिने अपना यह पचसंग्रह मसूतिकापुरमें तका विकाम भी किया। साथ ही विशाल दार्शनिक जो वर्तमानमें 'मसीद विलौदा' ग्रामके नामसे टीका ग्रन्थों के निर्माणके साथ अनेक ग्रन्थोंकी रचना प्रसिद्ध है वि०म० १०७३ में बना कर समाप्त किया की है। प्रमेयकमलमार्तण्ड ( परीक्षागुख-टीका) है। अमितगति धाराधिप मुजकी सभाके रत्न भी नामक विशाल दाश निक ग्रंथ मुप्रसिद्ध राजाभोजके थे। इससे भी स्पष्ट है कि प्रभाचन्द्रने अपना उक्त राज्यकाल में ही रचा गया है और न्यायकुमुदचन्द्र टिप्पण वि० सं०१०७३ के बाद बनाया है। कितने (लघीयस्त्रय टीका) आराधना गद्य-कथाकोश, पुष्प- बाद बनाया है यह बात अभी विचारणीय है। दन्तके महापुराण (आदिपुराण-उत्तरपुराण) पर न्यायविनिश्चय विवरणके कर्ता आचार्य वादि- श्रीधाराधिप-भोजराज मुकुट-प्रोताश्म-रश्मि च्छटा राजने अपना पार्श्व पुराण शक सं०६४७ (वि० सं० छाया कुकुम-पंक-लिप्नचरणाम्भोजात नमीधवः । १०८२) में बना कर समाप्त किया है। यदि राजा न्यायाङजाकर-मराहने दिनमणिश्शब्दाज-रोदोमणि:- * मूडबिद्रीक मठकी समाधितन्त्र प्रन्धको प्रतिमें स्थेपास्पण्डित-पुण्डरीक-तरणिः श्रीमान् प्रभाद्रमा ॥१७ पुष्पिका-वाक्य निम्न प्रकार पाया जाता है-'इति श्री श्री चतुमुपदेवानां शिष्योऽप्यः प्रचादिभिः। जयसिंह देवराज्ये श्रीमद्धारानिवासिना परापरपरमेष्ठि-प्रणापरिहतः श्रीप्रभाचंद्रो रुद्रवादि-गजांकुशः ॥15॥ मोपार्जितामजपुण्यनिराकृताखिलमजकलंकेन श्रीमत्प्रभा -जैनशिलालेख संग्रह भाग १ पृ० ११८ चन्द्रपण्डितेन समाधिशतकटीका कृतेति ॥"
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy