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________________ D अनेकान्त [वर्ष १४ बालचन्दके शिष्यने कहा कि सकलविधिविधान महत्वपूर्ण दार्शनिक कृतियोंका ही उल्लेख किया है, काव्य अविशेपित है। संभव है कि वे कृतियाँ नयनन्दीके अवलोकनमें भी • कविवर नयनन्दीने उसे कुछ दिनोंके बाद बनाना न आई हों और न माणिक्यनन्दीके अन्य अनेक प्रारम्भ किया। क्योंकि किसी कारण-विशेपसे उनका विद्याशिष्यांका भी कोई उल्लेख या संकेत उन्होंने चित्त उद्विग्न (उदास) था, चित्तकी अस्थिरतामें किया है। इससे ऐसा जान पड़ता है कि उस समय ऐसे महाकाव्यका निर्माण कैसे बन सकता है। जब नयनन्दीधारानगरी में नहीं थे, किन्तु यत्र तत्र देशोंमें विहारकर जिनधर्मका प्रचार-कार्य कर रहे थे। इस कुछ दिनोंके पश्चात कविकी उद्विग्नता दृर हुई और चित्तमें प्रसन्नताका प्रादुर्भाव हुश्रा, तभी कविने इस कारण उस समय वे धाराक विद्वानों आदिका स्पष्ट ग्रन्थके रचनेका विचार स्थिर किया। उक्त ग्रन्थको उल्लख नहीं कर सके । फलतः वे प्रभाचन्द्रकी महत्वकविने भक्तिमें तत्पर हाकर बनाया है। अन्यथा किस पूर्ण कृतियोंसे भी अपरिचित ही रहे जान पड़ते हैं। की शक्ति है जो इतने विस्तृत महाकाव्यको लिखने में अन्यथा वे उनका उल्लेख किये विना न रहते।। समर्थ होता। माणिक्यनन्दीक अन्य विद्याशियों में प्रभाचंद्र कविवर नयनन्दीकी यह रचना कितनी बहुमूल्य भी प्रमुख रहे हैं। वे उनके 'परीक्षामुख नामक है और उनमें हेयोपादय विज्ञानकी कथनी कितनी सत्रग्रन्यके कुशल टीकाकार भी हैं। और दर्शन साहित्यके अतिरिक्त वे सिद्धान्तके भी विद्वान थे। चित्ताकर्पक है यह सब ग्रन्थका पूरा अध्ययन करने ये प्रभाचन्द्र श्रवणबल्गोलके शिलालेख नं०४ के पर ही पता चल सकता है। आशा है समाजको अनुसार मूलसंघान्तगत नन्दीगगाके भेदरूप देशीयकोई मान्य संस्था इस ग्रन्थ के प्रकाशनका भार लेकर गणके गोल्लाचार्यके शिष्य एक अविद्धकर्म कौमार साहित्य-संसारमें उसकी सारभको बखरनेका यत्न व्रती पद्मनन्दी सैद्धान्तिकका उल्लेख है जो कर्गवेध करेगी। संस्कार होनेसे पूर्व ही दीक्षित हो गए थे, उनके · नयनन्दीने अपने समकालान विद्वानोंमें प्रभा शिष्य और कुलभूषणके सधर्मा एक प्रभाचन्द्रका चन्नका नाम भी लेस्बिन किया है। जो उनके उल्लेख पाया जाता है जिसमें कुलभूषणको चारित्रसहाध्यायी भी रहे हों तो कोई आश्चयकी बात सागर और सिद्धान्तसमुद्रके पारगामी बतलाया नहीं है। ये दोनों ही माणिक्यनन्दीके शिष्य और त्रैलोक्यनन्दी के प्रसिष्य थे। माणिक्यनन्दी दर्शन गया है, और प्रभाचन्द्रको शब्दाम्भोरुह भास्कर तथा प्रथित तर्क-ग्रन्थकार प्रकट किया है । इस शिलाशास्त्रके महान विद्वान थे। उनके अनेक विद्या लेखमें मुनि कुलभूषणकी शिष्य-परम्पराका भी शिष्य थे। चूकि नयनन्दीने अपनेको माणिक्यनन्दी. _उल्लेख निहित है। का प्रथम विद्याशिष्य सूचित किया है, अतः यह 'अविद्धकर्णादिक पदमनन्दी सैदान्तिकास्य्योऽजनि यस्य लोके। अधिक संभव है कि उस समय प्रभाचन्द्रने दर्शन कौमारदेव प्रतिता प्रसिद्धि यात्तु सम्ज्ञाननिधिः सधीरः। शास्त्रका पठन-पाठन प्रारम्भ न किया हो ; किन्तु उनके कुछ समय बाद दक्षिण देशसे वहाँ पहुँचने तच्छिप्यः कुलभूपणाख्ययनिपश्चारित्रवारांनिधिःपर उन्होंने विद्याध्ययन शुरू किया हो। इसीसे प्रभा सिद्धान्ताम्बुधिपारगो नतविनेयस्तसधर्मो महान् । चन्द्रने अपनेको माणिक्यनन्दीका शिष्य तो सूचित शब्दाम्भोरुद्दभास्करः प्रथिततर्कप्रन्धकारः प्रभाकिया, पर कहीं भी प्रथम या द्वितीय विद्या-शिष्य चम्दाख्यो मुनिराजपंडितवरः श्रीकुन्दकुम्दान्वयः॥ नहीं लिखा। हो सकता है कि उस समय तक नय- तस्य श्रोकुलभूषमाख्यसुमुने रिशष्यो विनेयस्तुतनन्दी विद्याध्ययन कर स्वतन्त्र विहार करने लगे हों। सवृत्तः कुलचन्द्रदेव मुनिपस्मिद्वान्तविद्यानिधिः ॥' और प्रभाचन्न विद्या अध्ययन कर रहे हों, यही श्रवणवेल्गोलके ५५वें शिलालेग्वमें मुलसंघ देशीकारण है कि उन्होंने प्रभाचन्द्रके सम्बन्धमें और यगणके देवेन्द्र सैद्धान्तिक शिप्य, चतुर्मुखदेवके कुछ भी उल्लेख नहीं किया। और न कहीं उनकी शिष्य गोपनम्दी और इन्हीं गोपनन्दीके सधर्मा एक
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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