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________________ किरण ३-४ ] कोऊहलु वाणु मऊर सूर, जिणसे जिलागम कमल सूर । वारायण वरणा विय वियड्ढ, सिरि हरि रायसेहरु गुणड्ढ । जसइंदु जए जयराम यामु जयदेव जणामणणंद कामु । पालित्तड पाणिणि पचरसेगु, पायंजलि पिंगलु वीरसेखु । सिरि सिंहणंदि गुण-सिंह-भड, गुणभद्द गुणिल्लु समंतभद्दु । कलंकुवि समवाई य बिहंडि कामरुद्द गोविंदु दडि । भम्मुह भारत्रि माह वि महंत, चमुह सयभु, कई पुप्फयतु । घसा - सिरिचन्दु पहाचन्दु वि बिबुह, गुण-गण-दि मयोहरु | कई सिरिकुमार सरसइ - कुमरु, कित्ति-विलासिणि सेहरु ॥६॥ इनके सिवाय, धवल, जयधवल और महाबध रूप सिद्धांत-प्रन्थोंका वीरसेन - जिनसेनके नामो - ल्लेख पूर्वक उल्लेख किया है । कवि धनंजयको पु ंडरीक, और स्वयंभूको लोकरजन करनेवाला बतलाया है। वे धनंजय कवि कौन थे और कब हुए हैं ? क्या कवेिका अभिप्राय द्विसंधान काव्यके कर्ता धनंजयसे है, या अन्य किसी धनंजय नामके कविसे ? यह बात विचारणीय है। तहिं जिणागमुच्छव प्रलेवहि, वीरसेण जिसे धारा और धाराके जैन विद्वान् [ee १२वीं शताब्दीका उत्तरार्ध हैं । श्रतः समयकी दृष्टिसे इन सिद्ध कविका उल्लेख विक्रम संवत ११०० के नयनन्दी द्वारा होना उचित नहीं जान पड़ता | X इससे ऐसा ज्ञात होता है कि नयनन्दीने किसी अन्य सिंह कविका उल्लेख किया है और जिनकी गुरुपरंपरा का उल्लेख अन्वेषणीय है । कविवर नयनन्दीने राजा भोज, हरिसिंह आदिके नामोल्लेख के साथ-साथ, बच्छराज, प्रभुईश्वरका नाम भा दिया है और उन्हें विक्रमादित्यका मांडलिक प्रकट किया है । यथा जहि बच्छराज पु पुछद्द वच्छु. हुंड पुह ईमरु सूनवत्थु । gigory पत्थरहरियराउ, मंडलिड विक्कम । इच्च जाउ । संधि २ पत्र ६ इसी संधिमें आगे चलकर अंबाइन, और कचीपुरका उल्लेख किया है कवि इस स्थान पर गये थे । इसके अनन्तर ही वल्लभराजका उल्लेख किया है जिसने दुर्लभ जिन - प्रतिमाओं का निर्माण कराया था, और जहां पर रामनन्दी जयकीर्ति और महाकीर्ति प्रधान थे। जैसा कि उनके निम्न पद्यसे स्पष्ट है"बाइकचीपुर विरत, बहिं ममहं भव्य भत्तिहिं पसन्त । जद्द वल्लभराएँ बहहे, कारावित किस दुल्लदेव । जिण पडिमालंकित गच्छुमाणु, यां केा विर्यभिङ सुरविमाणु । जहिं रामणंदि गुण मणि-खिद्दाणु, जयकित्ति महाकित्तिवि पहा । इथ तिथिवि परिमय-मई-मयद, मिच्छत्त-विडविमोढण-गहंद। इन पद्योंमें उल्लिखित रामनन्दी कौन हैं, उनकी गुरुपरम्परा क्या है और जयकीति महाकीर्तिका उनसे क्या सम्बन्ध है, ये सब बातें विचारणीय हैं। क्या प्रस्तुत रामनन्द श्रुतस्कंधके कर्त्ता ब्रह्म हेमचन्द्रके गुरुसे भिन्न हैं या अभिन्न ? इन दोनोंके समयादिका विचार करना आवश्यक है । क्योंकि आगे चलकर ग्रंथ- कर्ताने रामनन्दीको 'सूरिगा' वाक्यसे आचार्य सूचित किया है और देवहि । णाम धवल जयधवल सय महाबंध तिथिण सिद्धत - सियपहा । विरइऊण भवियहं सुहाविया, सिद्धि रमणि हाराच्च दाविया । 'डीठ जहिं कवि धरगंज, इउ सयंभू भुवय' पि रंजठ । कवि सिंहका उल्लेख भी महत्वपूर्ण है । देखो स ंघि २ । ये कविसिंह कौन हैं और कहाँ के निवासी हैं, इनकी गुरु परम्परा क्या है ? यह कुछ ज्ञात नहीं होता। सिंह नामके एक अपभ्रंश कविका X देखो, महाकवि सिंह और प्रद्युम्नचरित नामका लेख, अनेकान्त वर्ष ८, किरण १०-१: पृ०३८३ उल्लेख जरूर उपलब्ध होता है जो प्रद्युम्न चरित- कइसीहहं अग्गइ हउं कुरंगु, व्हावेक्खमि होंतड पयई भंगु । के उद्धारकर्ता हैं और जिनका समय विक्रमकी सपलविद्दि विद्दाणकन्य,
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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