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४] अनेकान्त
[वर्षे १४ हो, उससे तो पापका बन्ध होगा ही। जानते हो, तवार्थ- बनायो, सारे मन्दिरोंके द्रव्यको एकत्रित करो और पूंजीके सूत्र में क्या कहा है। चाहे ज्ञातभावसे क्रिया करो और चाहे विना आजीविका-हीन तथा पाकिस्तानसे पानेके कारण अज्ञातभावसे करो, पर पापका बन्ध तो होगा ही। मैं यह पाश्रय-विहीन गरीब जैनोंकी सहायता करो, उनका स्थितिविषपान कर रहा है ऐसा जान करके चाहे विष पियो और करण करो और उन्हें सुखी बनायो। 'न धर्मो धार्मिकैः चाहे अनजाने विषको पीलो, पर जानते हो दोनोंका क्या विना' और 'धर्मो रक्षति रक्षितः के सूत्रोंका मनन करो, फल होगा ? दोनों ही मरेंगे।
तब तुम्हें पता लगेगा, कि तुम्हारा श्राज क्या कर्तव्य है । अपना भाषण जारी रखते हुए प्राचार्य महाराज बोले- उस चातुर्मासमें प्रायः प्रतिदिन प्राचार्य महाराजने अपने सुम लोग अखबार पढ़ते हो, मालूम है, क्या समाचार बाते उपदेशोंके द्वारा प्रत्येक जैनको संबोधन कर-करके उन्हें उनके हैं आज अमुक स्थानकी मूर्ति चोरी चली गई, आज कर्तव्यों का ज्ञान कराया । अमुक स्थानके मन्दिरसे सोनेका छत्र-चंवर चोरी चला गया,
जिस समय महाराज उक्त प्रवचन कर रहे थे उस समय श्रादि । यदि बोग .भगवानको सोने चांदीका न बनवाते,
महाराजके नेत्रोंसे आंसू टपाटप गिर रहे थे, और वे अत्यन्त सोने-चांदीके छत्र-चंवर न चढ़ाते, तो कोई चुरा ही क्या ले
गद्गद स्वरसे अपना उपदेश दे रहे थे। उनके प्रवचनके जाता पहले सब जगह पाषाणकी ही मूर्तियां बनती थीं,
बाद मैंने महाराजके शब्दोंका खुलासा करते हुए कहा था, और उसीमें छत्र चँवर भामंडल आदि उकेरे रहते थे, तब
कि यदि प्राचार्यश्रीके सिवाय किसी अन्य गृहस्थ पंडितके कहीं चोरी होनेकी बात नहीं सुनी जाती थी । कोई चुराने
मुखसे उन शब्द निकले होते, तो पता नहीं, श्रोता लोग ही पाता, तो क्या चुरा ले जाता।पर आज तो उल्टी गंगा
उसकी कैसी दुर्गति करते । पर शाबाम है उन सब श्रोताओंबह रही है और लोग धर्मका विकृत रूप करते जारहे हैं।
को.जो इतने दिन बाद भी उसके कानों पर जूतक न रेंगी। मन्दिरोंको भी अब सोने-चांदीसे सजाते जारहे है । मैं कहता
और इसका प्राभास ही नहीं, प्रत्यक्ष प्रमाण मिला हमें
. हूँ, मेरी बात दिल्लीवाले लिखकर रख लें। सारे भारतमें
लालमन्दिरमें हुई उस दिनकी (२४-१०-५६ की) शोककम्यूनिष्ठ फैलते जारहे हैं, और वे बहुत जल्दी मन्दिरोंको
सभामें, जब लोग प्राचार्य महाराजके स्वर्गारोहथके उपलूट लेंगे और उनके पानेसे पहले सरकार ही ऐसी कानूनी
लषयमें उन्हें अपनी-अपनी श्रद्धाजलियां भेंट कर रहे थे। बनाती जा रही है कि जिससे सब मन्दिरोंका धन सरकारके
एक भाईने अपनी श्रद्धाञ्जलि भेंट करते हुए कहा कि मेरी पास चला जायगा । इसलिए हे दिल्लीवाले जैनियो मेरी
आप लोगोंसे प्रार्थना है कि श्राचार्य महाराजकी बात मानो-मन्दिरोंमें जितना सोना-चांदी है, उनके उप
स्मृतिको स्थायी रखनेके लिये एक फण्ड कायम किया जाए करण है, उन्हें बेचकर सब रुपया इकट्ठा करो और जो
और उसके द्वारा गरीब जैन बन्धुओंको पूजी देकर उनकी तुम्हारी समाजमें गरीब हैं, जीके लिए जिनके पास पैसा
आजीविकामें सहायता दी जाय । उक्र सज्जनके महाराजके नहीं है, उनको उनकी आवश्यकता और स्थितिके अनुसार
प्रवचनकी पुनरावृत्ति रूप इस सुझावको सुनकर भी सारी (जीके रूपमें उस रुपये को बांट दो और प्याजमें उनसे
दिल्लीके उपस्थित पंचों और मुखियोंने इस सामयिक प्रातः-सायंकाल देव-दर्शनकी तथा दिनमें न्याय-पूर्वक व्यापार
सुझावको यों ही उड़ा दिया और वक्राोंको २-२ मिनटका करनेकी प्रतिज्ञा ग्रहण कराओ। फिर देखोगे कि जब लोगों
समय देकर सभाकी कार्यवाही समाप्त कर दी गई। को यह मालूम हो जायगा कि जैनियोंने अपने मन्दिरोंका देवदव्य गरीबोंको बांट दिया है तब प्रथम तो तुम्हारे मन्दिरों
इस सम्बन्धमें मैं दिल्लीके ही नहीं, अपितु सारी पर कोई आक्रमण ही नहीं करेगा। और यदि इतने पर भी देश-विभाजनके बाद शरणार्थियोंकी समस्या उन लोग आक्रमण करें और लूटमारको भावेंगे, तो जिन लोगों- दिनों भयंकर रूप धारण कर रही थी और पाकिस्तानसे पाए को पूजी देकर उनकी आजीविका स्थिर की है, वे ही लोग हुए जैन बेघरवार और बेरोजगार होकर मारे-मारे फिर रहे मन्दिरोंकी रक्षाके लिए तन मन-धनसे लग जावेंगे और थे, अतः उनको लक्ष्यमें रखकर प्राचार्यश्रीने यह अत्यन्त उनकी रक्षा में अपनी जानोंकी बाजी जगा देंगे। दिल्ली- सामयिक, मौलिक और जैनियों पर भविष्यमें आनेवाले वालो, मेरा कहा मानो, सब लोग मिलकर एक पंचायत संकटोंसे उनकी रक्षा करनेवाला उपदेश दिया था।